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भजन और भोजन

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 50 

डॉ भूपेन्द्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 50वीं कहानी –  भजन और भोजन

एक भिखारी, एक सेठ के घर के बाहर खड़ा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था।

सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी, आ रही हूं। रोटी हाथ में थी पर फ़िर भी कह रही थी कि रुको, आ रही हूं।

भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था, सेठ यह सब देख रहा था, पर समझ नहीं पा रहा था।

आखिर सेठानी से बोला – रोटी हाथ में लेकर खड़ी हो, वो बाहर मांग रहा हैं, उसे कह रही हो, आ रही हूं। तो उसे रोटी क्यों नहीं दे रही हो ?

सेठानी बोली, हां रोटी दूंगी, पर क्या है न कि‍, मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा हैं। अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा। मुझे उसका भजन और सुनना है।

यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नहीं सुन रहा हैं, तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही है।

इसलिये इंतज़ार करो, और प्रार्थना करते रहो। जीवन में कैसा भी दुख और कष्ट आये, पर भक्ति मत छोड़िए। क्या कष्ट आता है, तो आप भोजन करना छोड़ देते है? क्या बीमारी आती है, तो आप सांस लेना छोड देते है,नहीं ना ?

फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?

कभी भी दो चीज मत छोड़िये- “भजन और भोजन।” भोजन छोड़ दोंगे तो ज़िंदा नहीं रहोगे, भजन छोड़ दोंगे तो कहीं के नहीं रहोगे। सही मायने में “भजन ही भोजन” है।

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