Saturday , November 23 2024

रोटी

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 39 

डॉ भूपेंद्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 39वीं कहानी –  रोटी

रामेश्वर ने पत्नी के स्वर्गवास हो जाने के बाद अपने दोस्तों के साथ सुबह-शाम पार्क में टहलना और गप्पें मारना, पास के मंदिर में दर्शन करने को अपनी दिनचर्या बना लिया था।

हालांकि घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सभी उनका बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन आज सभी दोस्त चुपचाप बैठे थे। एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दु:खी थे” आप सब हमेशा मुझसे पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों माँगता हूँ ? आज बतला देता हूँ। “

कमल ने पूछा  “क्या बहू तुम्हें सिर्फ तीन रोटी ही देती है ?”

बड़ी उत्सुकता से एक दोस्त ने पूछा ? “नहीं यार ! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है।

असल में  “रोटी, चार प्रकार की होती है।”

पहली “सबसे स्वादिष्ट” रोटी “मां की “ममता” और “वात्सल्य” से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता ।

एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद मां की रोटी कम ही मिलती है।” उन्होंने आगे कहा  “हां, वही तो बात है ।

दूसरी रोटी पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और “समर्पण” भाव होता है, जिससे “पेट” और “मन” दोनों भर जाते हैं।”, क्या बात कही है यार ?” ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं !

फिर तीसरी रोटी किस की होती है ?” एक दोस्त ने सवाल किया ?

“तीसरी रोटी बहू की होती है, जिसमें सिर्फ “कर्तव्य” का भाव होता है जो कुछ-कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है”, थोड़ी देर के लिए वहां चुप्पी छा गई।

“लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?” मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा-

“चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे न तो इन्सान का “पेट” भरता है न ही “मन” तृप्त होता है और “स्वाद” की तो कोई गारंटी ही नहीं है”, तो फिर हमें क्या करना चाहिये यार ?

मां की हमेशा पूजा करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जियो, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी-मोटी ग़लतियां नज़रन्दाज़ कर दो बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा। यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो भगवान का शुक्र करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिए बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, बड़ी खामोशी से सब दोस्त सोच रहे थे कि वाकई,  हम कितने खुशकिस्मत हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.