जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 25
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 25वीं कहानी –निंदा का फल
राजा पृथु एक दिन सुबह-सुबह घोड़ों के तबेले में जा पहुंचे। तभी वहां एक साधु भिक्षा मांगने आ पहुंचा। सुबह सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुए बिना विचार किये ही तबेले से घोड़े की लीद उठाई और उस के पात्र में डाल दी, साधु भी शांत स्वभाव का था।
साधु भिक्षा ले कर वहां से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिए जंगल में गए। राजा पृथु ने जब जंगल में देखा कि एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है। उन्होंने देखा कि यहां तो न कोई तबेला है, और न ही दूर-दूर तक कोई घोड़े दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्य चकित हो कुटिया में गए और साधु से बोले। “महाराज! आप हमें एक बात बताइए यहां कोई घोड़ा भी नहीं है, न ही यहां कोई तबेला है तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहां से आई! “साधु ने कहा” राजन्! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है, अब समय आने पर यह लीद उसी को खानी पड़ेगी।
यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई, वह साधु के पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगा। उन्होंने साधु से प्रश्न किया हम ने तो थोड़ी-सी लीद दी थी, पर यह तो बहुत अधिक हो गई है? साधु ने कहा “हम किसी को जो भी देते है, वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौट कर आ जाता है, राजन! यह उसी का परिणाम है।” यह सुन कर पृथु की आंखों में अश्रु भर आये। वह साधु से विनती कर बोला “महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए। आइन्दा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा।” मुझे कृपया कोई ऐसा उपाय बताए जिस से मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूं!” राजा की ऐसी दुखमयी हालात देख कर साधु बोला “राजन्! एक उपाय है, आप को कोई ऐसा कार्य करना है, जो देखने मे तो गलत हो पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आप को गलत देखेंगे, तो आप की निंदा करेंगे। जितने ज्यादा लोग आप की निंदा करेंगे, आप का पाप उतना ही हल्का होता जाएगा। आप का अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।
यह सुन राजा पृथु ने महल में आ कर काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह ही उस ने शराब की बोतल ली और चौराहे पर बैठ गया। सुबह सुबह राजा को इस हाल में देख कर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि कैसा राजा है, कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है। क्या यह शोभनीय है आदि! पर निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करता रहा। इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुंचे तो लीद के ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख कर आश्चर्य से बोला “महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहां गायब हो गया!”
साधू ने कहा “राजन! यह आप की अनुचित निंदा के कारण ही हुआ है। जिन-जिन लोगों ने आप की अनुचित निंदा की है, आप का पाप उन सब मे बराबर-बराबर बंट गया है। गुरु जी कहते हैं, जब हम किसी की बेवजह निंदा करते हैं, तो हमें उस के पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है तथा हमे अपने किये गए, कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। अब चाहे हंस के भुगतें या रो कर, हम जैसा किसी को देंगे, वैसा ही लौट कर उस से वापिस भी आएगा! इस लिये सदेव अच्छे कर्म करें और किसी की निंदा से बचें। साधु संगत की सेवा करें, सत्संग सुने और सत्संग में बताये गए वचनों को अपने हृदय में बिठाएं। किसी की यूं ही निंदा कर के अपने बुरे कर्मों को मत बढ़ाइए। दुनिया में जो करता है, उसे उस का फल जरूर मिलता है। इस लिए हम अपने आप को देखें, अपने अंदर झांकें न कि दूसरों की निंदा करें, चुगली करें। अगर हम किसी की निंदा चुगली करने से नहीं हटते है, तो हमारे बुरे कर्मों का ढेर भी उस लीद के ढेर की तरह बढ़ता जाएगा। इस लिए अच्छे कर्म करें, अच्छे कर्म करना ही जीव का कर्तव्य है और इसी से जीवन सफल हो सकता है।