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ईश्‍वर में विश्‍वास

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 18 

डॉ भूपेंद्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 18वीं कहानी – ईश्‍वर में विश्‍वास

एक सन्त कुएं पर स्वयं को लटका कर ध्यान किया करते थे और कहता थे, जिस दिन यह जंजीर टूटेगी, मुझे ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे।

 

उनसे पूरा गांव प्रभावित था। सभी उनकी भक्ति, उनके तप की तारीफें करते थे। एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि मैं भी ईश्वर दर्शन करूं।

 

वह रस्सी से पैर को बांधकर कुएं में लटक गया और कृष्ण जी का ध्यान करने लगा।

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जब रस्सी टूटी, उसे कृष्ण ने अपनी गोद में उठा लिया और दर्शन भी दिए।

 

तब व्यक्ति ने पूछा- आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने क्यों चले आये, जबकि वे संत महात्मा तो वर्षों से आपको बुला रहे हैं।

 

कृष्ण बोले, वो कुएं पर लटकते जरूर हैं, किंतु पैर को लोहे की जंजीर से बांधकर। उसे मुझसे ज्यादा जंजीर पर विश्वास है।

तुझे खुद से ज्यादा मुझ पर विश्वास है, इसलिए मैं आ गया।

 

आवश्यक नहीं कि दर्शन में वर्षों लगें। आपकी शरणागति आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य कराएगी और शीघ्र ही कराएगी।

प्रश्न केवल इतना है आप उन पर कितना विश्वास करते हैं।

ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हैं। शरीररूपी यंत्र पर चढ़े हुए सब प्राणियों को, वे अपनी माया से घुमाते रहते हैं,  इसे सदैव याद रखें और बुद्धि में धारण करने के साथ व्यवहार में भी धारण करें।