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बच्‍चों का मानसिक व शारीरिक विकास प्रभावित हुआ है कोरोना के दौर में

-बच्‍चों की आदतों और दिनचर्या में बदलाव लाने पर ध्‍यान देना होगा अभिभावकों को : डॉ विजय कुमार

-सोशल मीडिया पर आने वाली नकारात्‍मक खबरों से दूर रखना चाहिये बच्‍चों को : डॉ अलका रानी

डॉ विजय कुमार, प्रधानाचार्य,  राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज अयोध्या

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

अयोध्‍या/लखनऊ। लगभग डेढ़ वर्ष से चल रही वैश्विक महामारी कोरोना ने बच्चों के जीवन पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाला है जिससे उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। बच्चों के लिए यह परिस्थिति एक नई परिस्थिति के जैसी है। हमें इस परिस्थिति के लिए बच्चों को मानसिक तौर पर तैयार करना होगा और उनकी आदतों और दिनचर्या में बदलाव लाने होंगे।

यह कहना है राजश्री दशरथ मेडिकल कॉलेज अयोध्या के प्रधानाचार्य डॉ विजय कुमार का। वे कहते हैं कि संभावित तीसरी लहर जिसके बारे में कहा जा रहा है कि जो बच्चों को प्रभावित कर सकती है, एक चिंता का विषय है और हम सबको उससे बचाव के लिए सोचना होगा। इसमें सर्वाधिक अहम भूमिका बच्‍चों के माता-पिता की होगी।

उन्‍होंने कहा कि बच्चों के व्यवहार में इस आवश्यक बदलाव के लिए माता पिता को अनुशासित तरीके से कोरोना से बचाव के नियमों जैसे हैंड हाइजीन, सोशल डिस्टेंसिंग एवं मास्क का उपयोग, इन सब को अपनी जीवन शैली में उतारना होगा जिससे बच्चे उचित रूप से इस व्यवहार का अनुकरण कर सकें।

डॉ अलका रानी, बाल दंत रोग विशेषज्ञ,  राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज, अयोध्या

इसी मेडिकल कॉलेज की बाल दंत रोग विशेषज्ञ डॉ अलका रानी कहती हैं कि बच्‍चों के साथ हमें बहुत ही ध्‍यान रखकर चलना होगा, क्‍योंकि हमारी थोड़ी सी लापरवाही देश के इन भविष्‍य को खतरे में डाल सकती है। माता पिता के द्वारा कुछ मुख्य सावधानियां बरतनी होगी जैसे बच्‍चा जब घर के बाहर जा जाकर मैदानों में खेले, लोगों से मिलते-जुलते समय उन पर नजर रखें। इसके अलावा भी नियमित साफ-सफाई पर भी ध्यान देना होगा जैसे हाथ धोकर खाना खाना, किसी भी वस्तु को स्पर्श करने के बाद हाथ धोना, किसी व्यक्ति के घर आने पर मास्क को उपयोग में लाना, ज्यादा भीड़ भरे स्थानों पर न जाना इन सब का अपनी और बच्‍चों की जीवन शैली में समावेश करना होगा।

डॉ विजय बताते हैं कि इस महामारी के अगर लक्षणों की बात करें तो बच्चों में कुछ सामान्य लक्षण ही दिखाई देते हैं, जैसे सामान्य जुकाम, खांसी और बुखार का आना, उल्टी और दस्त का लगना, डायरिया होना पेट में दर्द होना, आंखों का लाल होना, त्वचा पर चकत्ते पड़ना इत्यादि। डॉ विजय कुमार ने कहा कि क्योंकि बच्चों में इस बीमारी की गंभीरता नहीं देखी गई है इसलिए परिवार के अन्य व्यक्ति कोरोना को लेकर अनदेखी कर देते हैं और ऐसा करने से बच्चों के द्वारा परिवार के अन्य सदस्य को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।  

डॉ विजय कुमार का कहना है कि इसी कारण को देखते हुए बच्चों को कोरोना के लिए सुपर स्‍प्रेडर भी कहा गया है, हमें इस मुख्य बिंदु पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे संक्रमण की दर को रोका जा सके। बच्चों में कोरोना के प्रारंभिक लक्षणों को गंभीरता से लेते हुए चिकित्सकों के परामर्श के द्वारा इस बीमारी की गंभीरता को रोका जा सकता है। उनका कहना है कि बच्चों को सोशल मीडिया पर आने वाली नकारात्मक खबरें नहीं दिखानी चाहिए, उनको घर के कार्यों में सम्मिलित करना चाहिए जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास हो सके, साथ ही नकारात्‍मक खबरों की तरफ उनका ध्‍यान ही न जाये।

डॉ अलका बताती हैं कि अभी तक जितने बच्चों में कोरोना के संक्रमण को देखा गया है, उनमें से काफी कम प्रतिशत में बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता पड़ी है। इसमें मुख्यत वही बच्चे हैं जिनको एम एस आई डी (मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी डिजीज ऑफ चिल्ड्रन) हुआ है।  डॉ अलका रानी का भी सुझाव है कि ररकार को अभी स्कूल नहीं खोलने चाहिए, जिस से संक्रमण को रोका जा सके और कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप से बचा जा सके। ज्ञात हो ‘सेहत टाइम्‍स‘ ने भी पिछले दिनों सरकार से यह अपील की है कि जब तक 80 प्रतिशत लोगों को वैक्‍सीन न लग जाये यानी हर्ड इम्‍युनिटी डेवलेप न हो जाये तब तक स्‍कूल खोलने का जोखिम नहीं उठाना चाहिये।  

डॉ अलका कहती है कि हम सब लोगों को ज्ञात है कि बच्चों के लिए अभी वैक्सीन नहीं बनी है और वैक्सीन बनाने के लिए दिल्‍ली एम्‍स और पटना एम्‍स में परीक्षण किए जा रहे हैं, संभावित रूप से कुछ महीनों के बाद बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध होने की संभावना है, लेकिन तब तक हमें कोरोना से बचाव के नियमों को गंभीरता से लेना होगा और बच्चों को इस बीमारी के संक्रमण से बचाना होगा।