-विदेशों में बन रही मैसेंजर आरएनए आधारित वैक्सीन पर हुआ है सफल ट्रायल
-संजय गांधी पीजीआई की प्रो इंदु लता साहू ने दीं महत्वपूर्ण जानकारियां
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। मौजूदा कोरोना लहर से हर वर्ग कराह रहा है, ऐसे में गर्भवती महिलाओं को अन्य की अपेक्षा ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है, हालांकि विदेश से एक अच्छी खबर मिली है कि कोरोना से बचने के लिए लगायी जा रही वैक्सीन अब गर्भवती महिलाओं को भी लग सकती है, लेकिन इसका लाभ अभी भारत में नहीं मिलने जा रहा है। हां भविष्य में इसके प्रति आशा जरूर की जा सकती है।
यह जानकारी देते हुए संजय गांधी पीजीआई के मैटरनल एंड रीप्रोडक्टिव हेल्थ विभाग की प्रोफेसर इंदु लता साहू ने बताया कि विदेशों में हुई स्टडी में देखा गया है कि गर्भ में पल रहे बच्चे पर वैक्सीन से बुरा असर नहीं पड़ता है। लेकिन यहां यह समझना आवश्यक है कि भारत में इस समय जो दो प्रकार की वैक्सीन लग रही हैं उन वैक्सीन का गर्भवती महिलाओं पर ट्रायल नहीं हुआ है। इसलिए भारत में गर्भवती महिलाओं को टीके के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि जिस स्टडी की बात हो रही है वह अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बन रही मैसेंजर आरएनए पर आधारित वैक्सीन पर स्टडी की हैं, उन देशों में मैसेंजर आरएनए वैक्सीन का ट्रायल करने के बाद गर्भवती महिलाओं पर लगायी जा रही है। हां यदि मैसेंजर आरएनए टेक्निक वाली वैक्सीन भारत में लगे या फिर भारत में जो वैक्सीन लग रही हैं उनका गर्भवती महिलाओं पर ट्रायल हो जाये तो कहा जा सकता है कि भारत में भी गर्भवती महिलाओं को कोरोना वैक्सीन लगायी जा सकती है।
प्रोफेसर इंदु लता ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को हालांकि वैक्सीन लगने के बावजूद सावधानी फिर भी रखने की आवश्यकता है क्योंकि जिस तरह वैक्सीन लगने के बावजूद अन्य व्यक्तियों को सभी तरह की सतर्कता बरतने का सुझाव दिया जाता है वही बात वैक्सीन गर्भवती महिलाओं पर भी लागू होती है।
प्रोफेसर इंदु लता ने बताया कि गर्भावस्था में संक्रमण का खतरा अधिक होता है इसका कारण उस समय महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होना होता है। इन बदलावों के दौरान इम्यूनिटी भी थोड़ी कमजोर हो जाती है जिससे संक्रमण के जल्दी फैलने की संभावना पैदा हो जाती है। प्रो साहू बताती हैं कि कोविड संक्रमण के बाद ऐसा देखा गया है कि 20 से 25% महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी हो सकती है क्योंकि संक्रमण होने पर फेफड़ों पर कुप्रभाव पड़ता है ऐसे में फेफड़े ठीक ढंग से काम करें इसके लिए प्रीमेच्योर डिलीवरी करवानी पड़ती है, यही नहीं कई बार महिलाएं स्वाभाविक तरीके से भी प्रीमेच्योर डिलीवरी की स्थिति में पहुंच जाती हैं।
प्रो इंदु लता बताती हैं कि इसके अतिरिक्त गर्भावस्था के शुरुआती 12 सप्ताह में शिशु के अंगों का निर्माण हो रहा होता है इसलिए दवायें नहीं दी जाती हैं, तो ऐसे समय में कोविड होने की स्थिति में दिक्कत पैदा हो सकती है। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं को पहले से ही ब्लड प्रेशर या डायबिटीज की परेशानी होती है उनमें कोविड होने पर प्रीमेच्योर डिलीवरी के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं।
प्रोफेसर साहू का कहना है कि बेहतर होगा कि गर्भवती महिलाएं घर से बाहर जाने से बचें जब तक बहुत आवश्यक ना हो तब तक अस्पताल जाने से भी बचें इसके साथ ही घर पर ऑक्सीमीटर, पल्स मीटर और थर्मामीटर से मॉनिटरिंग करती रहे। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान होने वाले रेगुलर चेकअप और जांचें अवश्य करवाते रहना चाहिए।
प्रोफ़ेसर इंदु लता बताती हैं कि अगर किसी वजह से गर्भवती महिला को कोरोना संक्रमण हो जाए तो या जिस घर में वह रह रही है उसके किसी सदस्य को कोरोना हो जाए तो महिला को एक कमरे में आइसोलेट हो जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अगर महिला को माइनर लक्षण है तो कोशिश करें कि घर पर रहकर ही उसका इलाज करवाएं और सुबह शाम पल्स रेट और टेंपरेचर मॉनिटर करती रहें इसके साथ ही अपने कमरे में हमेशा बेड पर लेटे न रहें। उन्होंने कहा कि अगर तेज बुखार हो या पहले से ब्लड प्रेशर या डायबिटीज हो तो किसी डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दवाएं लें।