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अब फोन की एक घंटी खोलेगी कोरोना मरीजों की डुप्‍लीकेसी की पोल

-अलग-अलग मोबाइल नम्‍बर लिखाने से एक मरीज की गिनती दो बार हो रही

-मरीजों के रिकॉर्ड में आधार नम्‍बर दर्ज हो तो तुरंत आ सकता है पकड़ में

डॉ संजय भटनागर

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। राजधानी लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में दो दिन पूर्व सामने आये कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्‍या के सच ने विभाग को हिला दिया है। सिर्फ एक क्षेत्र में की गयी पड़ताल से 38 ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनका नाम संक्रमितों की सूची में दो बार लिखा है। यह बात तो सिर्फ एक क्षेत्र की है, पूरे जिले, पूरे प्रदेश, पूरे भारत बात करें तो इस तरह की डुप्‍लीकेसी हो रही होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए आवश्‍यक है कि इसकी पड़ताल हो और उससे भी ज्‍यादा आवश्‍यक है कि ऐसी व्‍यवस्‍था बने कि अब आगे से ऐसा न हो सके। इस डुप्‍लीकेसी का दूसरा पहलू जो अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण है, वह है तनाव जो हर व्‍यक्ति झेल रहा है, इसलिए ज्‍यादा मरीज ज्‍यादा तनाव, कम मरीज कम तनाव वाली थ्‍योरी के तहत तनाव कम तो हो ही सकता था।

दरअसल यह त‍ब हुआ जब बढ़ते केसों की वजह जानने के लिए नये मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी डॉ संजय भटनागर ने पड़ताल शुरू की। डॉ भटनागर ने अलीगंज स्थित बीएमसी में जाकर पड़ताल शुरू की तो पता चला कि मरीजों का विवरण दर्ज करने वाले पोर्टल पर 38 नाम ऐसे हैं जिन्‍होंने बीएमसी में टेस्‍ट करवाया और जब रिपोर्ट पॉजिटिव आ गयी तो उसे कन्‍फर्म करने के लिए प्राइवेट लैब में जांच करा ली। डॉ भटनागर का कहना है कि वे अब सभी मरीजों की जांच करा रहे हैं, जिससे डुप्‍लीकेट मरीजों का पता चलेगा। उन्‍होंने बताया कि फि‍लहाल तो यह निर्देश दिये गये हैं कि जिन मरीजों में संदिग्‍ध लगे उनके दिये हुए नम्‍बर पर फोन कर के देख लिया जाये कि एक ही मरीज है या अलग-अलग।

क्‍यों पकड़ में नहीं आयी खामी

दरअसल कोविड मरीजों का रिकॉर्ड रखने के लिए कम्‍प्‍यूटर में एक प्रोफार्मा सेट है, इसमें किन सूचनाओं की प्रविष्टि की जानी है, इसका निर्धारण भी केंद्र स्‍तर पर किया गया है, इसमें जो सिर्फ फोन नम्‍बर का कॉलम ऐसा है, जिससे पता चलता है कि व्‍यक्ति का नाम दोबारा सूची में तो नहीं लिखा जा रहा। हुआ क्‍या कि जब पहली बार सरकार द्वारा टेस्‍ट किया गया तो उसका नाम और मोबाइल नम्‍बर कम्‍प्‍यूटर में दर्ज हुआ। इसके बाद जब उसी व्‍यक्ति का टेस्‍ट दोबारा निजी लैब में होने के लिए गया तो उस व्‍यक्ति का मोबाइल नम्‍बर दूसरा लिखवा दिया गया ऐसे में सॉफ्टवेयर में डुप्‍लीकेसी शो नहीं हुई और वही मरीज फि‍र से सूची में शामिल हो गया।

क्‍या हो सकता है समाधान

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए जो भी तरीके बने है, उनके दिशानिर्देश केंद्र स्‍तर पर जारी होते हैं, ऐसे में मरीज के विवरण वाले प्रोफार्मा में अगर मरीज का आधार नम्‍बर डाल दिया जाये तो डुप्‍लीकेसी को रोकने में सफलता मिल सकती है। हालांकि उसकी कुछ व्‍यवहारिक कठिनाइयां हैं, लेकिन जब एक सिस्‍टम बन जाता है तो कठिनाइयां भी दूर हो जाती हैं। इस व्‍यवस्‍था से मरीजों की सही संख्‍या पता चलने में सहायता मिलेगी, योजना बनाने में मदद मिलेगी।

एक बार जांच कराने के बाद दूसरी जगह कोविड जांच की जरूरत नहीं

सरकार और प्रशासन स्‍तर पर जो करना है वह तो है ही, लोगों को सबसे पहले जागरूक होना पड़ेगा कि वह इस पर लगाम लगायें। सीएमओ डॉ संजय भटनागर का कहना है कि मरीज और उनके परिजनों को चाहिये कि वह स्‍वयं ही दूसरी जगह जांच न कराये, यानी अगर सरकारी स्‍तर पर जांच हो गयी है तो प्राइवेट लैब में कराने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने कहा कि‍ आईसीएमआर भी यही कहता है कि एक बार जांच में पॉजिटिव आने के बाद 10 दिन तक दोबारा जांच की जरूरत ही नहीं है, अगर दस दिन में सब कुछ ठीक रहता है तो जांच कराने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने सभी से अपील की है कि इस कार्य में सहयोग दें, क्‍योंकि इस महामारी पर सभी के सहयोग से ही विजय मिलेगी। इसे लेकर जो जिन लोगों के मन में दहशत बैठी हुई है, वह भी कम होगी। ज्ञात हो निजी लैब वाले तो मरीज का आधार कार्ड लेते हैं लेकिन सरकार वाले प्रारूप में आधार कार्ड का प्रावधान ही नहीं है, अगर होता तो डुप्‍लीकेसी फौरन पता चल जाती।