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जब हों हताश-निराश, तो सबसे पहले जायें अपने करीबियों के पास

-हर समस्‍या का है समाधान, आपको नहीं मिल रहा तो लें दूसरों की मदद  

-विश्‍व आत्‍महत्‍या रोकथाम दिवस पर डॉ सुनील पाण्‍डेय का संदेश

डॉ सुनील पाण्‍डेय

लखनऊ। जीवन में जल्द से जल्द सब कुछ हासिल कर लेने की तमन्ना और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में आज लोग मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। इस होड़ में जरा सी नाकामयाबी अखरने लगती है तो लोग अपनी जिन्दगी तक को दांव पर लगा देते हैं। इसके अतिरिक्‍त कोरोना काल में भी लॉकडाउन के चलते तमाम लोगों की नौकरियां चलीं गयीं, लोगों को अपनी रोजी-रोजगार छोड़कर वापस गाँव लौटना पड़ा। लोग शुरू में इसे लेकर तनाव में थे लेकिन अपनों के बीच बैठकर जब समस्या रखी तो उसका कोई न कोई रास्ता जरूर निकला। इसलिए जब भी हताशा-निराशा में कोई भी गलत कदम उठाने की बात दिमाग में आये तो सबसे पहले अपनों के करीब जाएं।

यह सलाह उत्‍तर प्रदेश के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी व मनोचिकित्‍सक डॉ सुनील पाण्‍डेय ने देते हुए कहा है कि  हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद आत्महत्या को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना है। इसके जरिये यह सन्देश देने की कोशिश की जाती है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस) की इस वर्ष की थीम है- “आत्महत्या रोकने को मिलकर काम करना ”

डॉ सुनील पाण्‍डेय बताते हैं कि कोरोना काल में मीडिया में ऐसी कई खबरें आयीं कि कोरोना उपचाराधीन ने डर के कारण आत्महत्या कर ली,  इसमें पढ़े लिखे लोग भी शामिल थे।  कुछ लोगों ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का सीधा जुड़ाव मानसिक स्वास्थ्य से है।

विश्‍व में हर 40 सेकंड में एक आत्‍महत्‍या

इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन के अनुसार विश्व में   आठ लाख लोग हर साल आत्महत्या करते हैं, यानि हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में आत्महत्या की दर 2.4 प्रति लाख जनसंख्या है मतलब यह है कि एक लाख की आबादी पर लगभग दो लोग आत्महत्या करते हैं, वहीं राष्ट्रीय दर 10.4 प्रति लाख जनसंख्या  है।

डा. सुनील पाण्डेय  ने बताया,  यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से हीन भावना से ग्रस्त है अथवा आत्महत्या करने की सोच रहा है तो वह एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। मानसिक अस्वस्थता के कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है, उचित परामर्श और चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इसका उपचार किया जा सकता है। आज कोरोना के दौर में आत्महत्या की जो ख़बरें मीडिया में आई हैं वह इस बात की और इशारा करती हैं कि लोगों में इस बीमारी के प्रति डर बहुत अधिक है तथा बहुत से लोग आर्थिक असुरक्षा से ग्रसित हैं।  इसमें मीडिया का अहम् रोल है।

मीडिया को रखना चाहिये इन बातों का ध्‍यान

प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार मीडिया आत्महत्या के स्थान का विवरण न दे। वह आत्महत्या के मामलों की ख़बरों में सनसनीखेज सुर्खियाँ का उपयोग न करे, व ऐसी ऐसी भाषा का उपयोग ना करें जो आत्महत्या को सनसनीखेज़ या सामान्य करती हैं, या इसे समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आत्महत्या के लिए उपयोग की गई विधि के वर्णन या आत्महत्या के प्रयास में प्रयुक्त विधि का विवरण समाचार में न दें। आत्महत्या के मामले की रिपोर्टिंग या समाचार प्रकाशन के दौरान फोटोग्राफ, वीडियो फुटेज या सोशल मीडिया लिंक का उपयोग आदि न करें।

आत्‍महत्‍या करने वाले मरना नहीं चाहते, सिर्फ चाहते हैं अपनी पीड़ा को मारना

डा. पाण्डेय का कहना है कि जब व्यक्ति अवसादग्रस्त या तनाव में होता हैं तो वह चीजों को वर्तमान क्षण के परिप्रेक्ष्य में देखता है। एक सप्ताह अथवा एक माह के बाद यही चीजें भिन्न रूप में दिखाई देने लगती हैं। जो आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं, वह मरना नहीं चाहते बल्कि केवल अपनी पीड़ा को मारना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें अकेले उस स्थिति का सामना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने परिवार के किसी सदस्य या मित्र अथवा किसी सहयोगी से बात भर कर लेने पर उसका समाधान मिल सकता है।

डा. पाण्डेय के अनुसार- आत्महत्या प्रवृत्ति वालों की पहचान आसानी से नहीं कर सकते, लेकिन कुछ असमान्य लक्षण से पीड़ितों की मनोस्थिति के बारे में जाना जा सकता है। जैसे उन्हें ठीक से नींद नहीं आती, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है, वे अपने मनोभावों को व्यक्त करने में भ्रमित रहते हैं, उनकी खानपान की आदतों में अचानक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है या तो वे बहुत कम खाते हैं या बहुत ज़्यादा। आमतौर वे अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं, उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं, धीरे-धीरे वे लोगों से कटने लगते हैं। कई बार वह खुद को नुक़सान भी पहुंचाते हैं। इस स्थिति में परिवार का योगदान महत्वपूर्ण हो जाता है, वे वस्तुस्थिति को समझकर उनका खयाल रखें एवं जरूरत पड़ने पर उनका उपचार कराएं ।

क्या करें यदि मन में ऐसे विचार आते हों?

डॉ पाण्‍डेय बताते हैं कि यदि मन में आत्‍महत्‍या के विचार आयें तो  जीवनशैली में बदलाव लाएं, ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें, खानपान को संतुलित करें, नियमित रूप से कुछ समय व्यायाम या योग करते हुए बिताएं। नकारात्मक सोच को बाहर का रास्ता दिखाएं। सबसे महत्वपूर्ण बात अकेले न रहें, परिवार और दोस्तों के संग रहें, सकारात्मक होकर कार्य करें। याद रखें, हर एक ज़िंदगी महत्वपूर्ण है इसे भरपूर जियें और  तनाव से दूर रहें।

फोन पर भी उपलब्‍ध है सहायता

सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन नम्बर 1075 पर पर भी इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं।  निमहंस (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस) के टोल फ्री नम्बर – 080-46110007 पर कॉल कर परामर्श ले सकते हैं।  इसके अलावा बीती 7 सितम्बर को मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने किरन  हेल्पलाइन न.- 1800-500-0019 जारी किया है, इस पर परामर्श लिया जा सकता है।