-अंग प्रत्यारोपण पर भारत की प्राचीन उपलब्धियों को दुनिया के देश खंगाल रहे
– केजीएमयू के सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस पर छह दिवसीय शैक्षणिक कार्यक्रम के दूसरे दिन दी गयीं अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाना, रावण के दस सिर होना जैसी घटनाओं से युक्त माइथोलॉजी की बातों को हमने भुला दिया है। जबकि अंग प्रत्यारोपण को लेकर दुनिया हमारी यानी भारत की पुरानी पद्धतियों को देख रही है, हमारे लिटरेचर पढ़ रही है जानने की कोशिश कर रही है कि आखिर मानव शरीर पर हाथी का मस्तक लगाने में हम कैसे सफल हुए थे जबकि अब हम अपनी पद्धतियों को खंगालने की कोशिश न करते हुए दुनिया की तरफ देख रहे हैं, अगर हम अपनी जड़ों की ओर चले जायें तो सफलता की दिशा दिखा सकती है।
यह बात बरेली के एसआरएमएस इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ अनिल नेगी ने यहां केजीएमयू के सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस के मौके पर स्टूडेंट्स से अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में रिसर्च का आह्वान करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इस दिशा में अभी बहुत काम किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि चूंकि नये स्टूडेंट ही भारत के कर्णधार हैं, ऐसे में इस ओर इनका रुझान रहना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी बाधा प्रत्यारोपित किये गये अंग का सरवाइव करना है क्योंकि मनुष्य का शरीर कोई भी बाहरी चीज स्वीकार नहीं करता है ऐसे में यह सोचिये कि हम तो मनुष्य का अंग मनुष्य को नहीं लगा पा रहे हैं जबकि आखिर कौन सी टेक्नोलॉजी से हाथी का सिर गणेश जी के सफलतापूर्वक लगा दिया गया था। डॉ अनिल नेगी ने ट्रान्सप्लान्ट के मरीज में होने वाली समस्याएं जैसे कि प्रतिरोधक क्षमता का कम हो जाना, खान-पान में कमी एवं उसमें क्या सावधानियां करनी चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया।
इससे पूर्व छह दिवसीय शैक्षणिक कार्यक्रम के द्वितीय दिवस का शुभांरभ सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो0 अभिनव अरुण सोनकर के मार्गदर्शन में सुबह साढ़े आठ बजे आरम्भ हुआ आयोजन सचिव डा0 संदीप कुमार वर्मा ने बताया कि आज का पूरा दिन गैस्ट्रोइन्टसटाइनल सर्जरी से सम्बन्धित रहा जिसमें लिवर, अग्नाशय, पित्ताशय व पित्त की नली की विभिन्न बीमारियों के निदान पर चर्चा हुई।
के0जी0एम0यू0 सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रो0 समीर गुप्ता ने पित्त की थैली के कैंसर के ऑपरेशन के बारे में बताया। सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अभिनव अरुण सोनकर एवं एसोसिएट प्रोफेसर डा0 पारीजात सूर्यवंशी ने मुंह के कैंसर से संबन्धित विषय पर जानकारी देते हुए उसके लक्षण एवं उपचार पर चर्चा की।
डा0 शिवराजन, के0जी0एम0यू0 ने खाने की नली के कैंसर के बारे में सर्जरी के छात्रों को मार्गदर्शन दिया। उन्होंने बताया कि भोजन निगलने में समस्या या भोजन निगलने के तुरन्त बाद उल्टी इस बीमारी के प्राथमिक लक्षण है। शुरुआत में इण्डोस्कोपी कराकर बीमारी का पता चल जाता है।
डा0 लव कक्कड, पूर्व प्रोफेसर गैस्ट्रोसर्जरी, के0जी0एम0यू0 ने छात्रों को आमाशय, पित्त की थैली व पैंक्रियाज के कैंसर के मरीजों के निदान की बारीकियाँ समझने में मदद की तथा यह बताया कि इस बीमारी में शुरुआत में पीलिया होती है तथा पेट में गांठ होती है। इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रो0 विशाल गुप्ता ने एक्यूट पैंक्रियाटाइटिस के बारे में छात्रों का ज्ञानवर्धन किया। अचानक से पेट में तेज दर्द होना बीमारी का प्राथमिक लक्षण तथा शराब से इसको बढ़ावा मिलता है। यह एक जानलेवा बीमारी है।
ऑन्कोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 अरुन चतुर्वेदी ने पेट की गांठ के बारे में बताया। पेट में कोई भी गांठ अगर किसी को प्रतीत होती है तो तुरन्त उसको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि यह कैंसर हो सकता है।
डॉ बिजूपोटाकट ने पित्त की नली की क्षति (बाइल डक्ट इंजरी) के बारे में छात्रों का ज्ञानवर्धन किया। ऑपरेशन के गुण सिखाये। भोजन निगलने के एक से दो घंटे बाद उल्टी तथा वजन का कम होना एवं खून की बीमारी इसके प्राथमिक लक्षण हैं। डा0 प्रदीप जोशी ने क्रोनिक पैनक्रीयटायटिस के उपचार संबन्धित वीडीयो प्रस्तुत किया। प्रो0विजय कुमार ने आमाशय के कैंसर के उपचार के बारे में बताया।
डॉ अभय वर्मा ने बिना सर्जरी के ऊपरी आंत के रक्तस्त्राव के इलाज के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत में सबसे ज्यादा 50 से 60 प्रतिशत लोगों में खून की उल्टी आने का कारण लिवर में खराबी होती है जबकि विदेशों में खून की उल्टी का सबसे बड़ा कारण अल्सर है।
डॉ विवेक गुप्ता ने लिवर ट्रांसप्लांट से सम्बन्धित लिवर की एनॉटमी की बारीकियों के बारे में जानकारी दी। के0जी0एम0यू0 के डॉ अजय कुमार ने वाइरल हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीजों की सर्जरी संबन्धित जानकारी दी।