-फॉग्सी के महासचिव डॉ जयदीप टांक ने कहा, उम्मीद है कानून में संशोधन जल्दी होगा
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। गर्भपात कराने के लिए कानूनी रूप से सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने के केंद्र सरकार के फैसले पर फॉग्सी के महासचिव डॉ जयदीप टांक ने खुशी जताते हुए कहा है कि अभी इस पर कैबिनेट का फैसला आया है, इसे लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन करना होगा। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह एक अच्छा कदम होगा।
डॉ जयदीप ने यह बात यहां आशियाना स्थित मान्यवर कांशीराम स्मृति उपवन में चल रहे ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ़ आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी (एआईसीओजी 2020) में पत्रकारों से बातचीत में कही। उन्होंने कहा वर्तमान कानून एमटीपी एक्ट 1972 जिसके तहत गर्भपात किया जाता है, में बदलाव की जरूरत है। इसकी जरूरत दो कारणों से है, पहला यह कि जब गर्भवती महिला को पता चलता है कि बच्चे में कुछ असामान्य सी स्थिति है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि सोनोग्राफी की सुविधा पूरे देश में सब जगह न होने के कारण सोनोग्राफी देर से होने पर गर्भस्थ शिशु में खराबी का पता देर से चलता है, उन्होंने कहा कि कुछ ऐसी दिक्कतें हैं जो गर्भ के 20 सप्ताह बाद ही पता चलती हैं, ऐसे में अभी तक 20 सप्ताह के बाद गर्भपात करने के लिए कोर्ट से अनुमति लेनी पड़ती थी, इस प्रोसेस में देर लगना स्वाभाविक है, और यह देर गर्भवती के लिए खतरनाक हो सकती है। इसलिए जब भी एक्ट में संशोधन होगा तो यह बहुत अच्छी बात होगी।
डॉ जयदीप ने कहा कि गर्भावस्था की सारी दिक्कतें महिला झेलती है, स्वास्थ्य उसका प्रभावित होता है तो यह अधिकार और फैसला भी उसी का होना चाहिये कि वह प्रसव तक जायेगी अथवा नहीं। अगर मान लीजिये 22 सप्ताह के गर्भ के बाद पता चलता है कि शिशु के दिल में खराबी है, तो ऐसे में वर्तमान कानून के अनुसार अगर एबॉर्शन न हो तो एक असामान्य और जन्मजात बीमार बच्चे को जन्म देना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि गर्भस्थ शिशु की असामान्य स्थिति का पता चलने पर शिशु के भविष्य को देखते हुए गर्भपात प्रसव से पहले कभी भी कराना प्रसव कराने से ज्यादा सुरक्षित है, ऐसे में जितनी जल्दी एबॉर्शन होता है वह ज्यादा अच्छा है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार विभिन्न कारणों के चलते 45.6 मिलियन प्रेगनेंसी में 15.6 मिलियन एबॉर्शन होते हैं, यानी अभी भी एक तिहाई केस में एबॉर्शन कराये जाते हैं।