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शोध : होम्‍योपैथिक दवाओं से ओवेरियन सिस्‍ट का सफल इलाज संभव

-गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथी रिसर्च ने रचा इतिहास
-एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी में प्रकाशित हो चुकी है यह रिसर्च
डॉ गिरीश गुप्ता

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। मानसिक तनाव से मस्तिष्‍क पर अनावश्‍यक बोझ पड़ता है, जिससे उसके द्वारा नियंत्रित हॉर्मोन प्रभावित होते हैं तथा उनका संतुलन बिगड़ जाता है। इसके परिणामस्‍वरूप शरीर के कई अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। स्त्रियों में ओवेरियन सिस्‍ट यानी अंडाशय की रसौली ऐसी ही एक बीमारी है जो विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाओं को हो सकती है। सामान्‍यत: लोगों में यह धारणा है कि इसका इलाज सिर्फ सर्जरी है। लेकिन विभिन्‍न प्रकार के रोगों का इलाज अपने शोध से कर चुके गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथी रिसर्च (GCCHR) के होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक डॉ गिरीश गुप्‍ता ने अंडाशय की रसौली का पूर्ण रूप से उपचार करने में सफलता प्राप्‍त की है। GCCHR डॉ गुप्‍ता ने 1995 में शुरू किया था। अंडाशय की रसौली पर किया यह शोध कार्य एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी के Vol. 2 No. 2(3) May-July 2008 अंक में प्रकाशित हो चुका है।

इस बारे में ‘सेहत टाइम्‍स’ से बातचीत में डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि मुख्‍य रूप से हॉर्मोन्‍स का संतुलन बिगड़ने से अंडाशय की रसौली होती है। अपने केंद्र पर किये गये शोध के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुप्‍ता ने बताया कि यह शोध 321 मरीजों पर किया गया था। इनमें 271 मरीजों पर दवाओं के परिणाम पॉजिटिव रहे यानी सफलता का प्रतिशत 84.42 रहा। इनमें 205 मरीज (63.86 प्रतिशत) ऐसे हैं जिनके अंडाशय की रसौली पूरी तरह समाप्‍त हो गयी जबकि 66 मरीजों (20.56 प्रतिशत) में आशातीत लाभ हुआ, 20 मरीजों (6.23 प्रतिशत) में यथास्थिति बनी रही जबकि 30 मरीजों (9.35 प्रतिशत) में कोई लाभ नहीं हुआ।

रिपोर्ट उपचार से पूर्व

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि इस रोग के मरीजों के मॉडल केसेज में एक की बात करें तो एक 22 वर्षीय युवती जब उनके पास आयी तो उसने बताया कि पिछले 4-5 माह से उसके पेट के दायीं तरफ कभी कम कभी ज्‍यादा दर्द होता है। उसके पीरियड नियमित तो थे लेकिन तेज, थक्‍केदार व दर्द के साथ होते थे। मरीज का कहना था कि हर माह पीरियड के पहले कभी गाढ़ा तो कभी पतला योनिस्राव भी होता है। एक प्रतिष्ठित लैब में करायी गयी अल्‍ट्रासाउन्‍ड रिपोर्ट में दायीं ओवरी में 34 x 31 एम.एम. की सिस्‍ट दिखायी गयी।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि मरीज ने इसके लिए हॉर्मोनल थेरेपी और होम्‍योपैथिक उपचार लिया था लेकिन उससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उसने उनके सेंटर GCCHR पर उनसे सम्‍पर्क किया। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि चूंकि होम्‍योपैथी में इलाज रोग का नहीं होता है, बल्कि रोगी का होता है, ऐसे में उसको होने वाली दिक्‍कतों को समझने से ज्‍यादा जरूरी होता है कि ये दिक्‍कत उसे क्‍यों हुईं है। मरीज से पूछताछ में उसके स्‍वभाव, क्‍या अच्‍छा लगता है, क्‍या नहीं, उसे कोई फोबिया है या नहीं, अगर है तो किस चीज से है आदि बातों को पता करके ही होम्‍योपैथिक दवा का चुनाव करना होता है।

रिपोर्ट उपचार के बाद
इस तरह किया गया दवा का चुनाव

इसी कारण इस युवती से रिश्तेदार की मौत से बीमारी, असफल प्रयासों के सपने, दुर्भाग्य का डर, लाइलाज बीमारी का डर, कैंसर का डर, संकीर्ण जगह का डर, किसी न किसी के साथ रहने की इच्छा, जल्‍द नाराजगी, चिड़चिड़ापन, अस्पष्ट, बहिर्मुखी, नीरसता, सोच की भिन्नता, संदेह आदि के बारे जानकारी ली गयी और उसके बाद इसके लिए दवाओं का चुनाव किया गया। उन्‍होंने बताया कि डेढ़ माह के इलाज के बाद जब पुन: उसी प्रतिष्ठित लैब से अल्‍ट्रासाउन्‍ड कराया गया तो उसकी ओवरी नॉर्मल थी।

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि स्त्रियों को होने वाले विभिन्‍न रोगों पर उनका शोध कार्य लगातार जारी है तथा इन शोध कार्यों के सम्‍बन्‍ध में वर्ष 2017 में एक पुस्‍तक Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology भी प्रकाशित हो चुकी है। इसमें मॉडल रोगियों के रूप में उनके द्वारा किये गये महिला रोगों के उपचार का विस्‍तृत विवरण दिया गया है।

पुस्तक Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology
यह है फर्क ओवेरियन सिस्‍ट के ऐलोपैथिक और होम्‍योपैथिक उपचार में

सर्जरी में अंडाशय से अगर सिर्फ सिस्‍ट निकाली जाती है तो भविष्‍य में दोबारा सिस्‍ट बनने की संभावना रहती है, जबकि होम्‍योपैथिक दवाओं से सिस्‍ट गायब होने पर दोबारा होने की संभावना नहीं है। इसी प्रकार ऐलोपैथी में अंडाशय को समूल निकालना पड़ सकता है ज‍बकि होम्‍योपैथी में इसे निकालने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। ऐलोपैथी में हॉर्मोनल चिकित्‍सा के अनेक दुष्‍परिणाम होते हैं जैसे मोटापा, शरीर पर अनिच्छित बाल, झाइयां, उलझन, बेचैनी, अनिद्रा, गर्मी लगना, घबराहट जबकि होम्‍योपैथी में चिकित्‍सा के दौरान या बाद में कोई दुष्‍परिणाम नहीं होते हैं।

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