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भारत के अनुकूल चिकित्‍सा शिक्षा का नया प्रारूप तैयार किया जा रहा

-विभिन्‍न संस्‍थानों के विशेषज्ञों का केजीएमयू में जमावड़ा
-सभी उपचार पद्धतियों को शामिल करते हुए एकात्‍म पाठ्यक्रम का सुझाव
विभिन्न पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं को माध्यम के रूप में अधिकाधिक प्रयोग करने का सुझाव
-आये अनेक सुझाव, सहमति के लिए भेजे जायेंगे केंद्र सरकार को

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। भारतीय चिकित्‍सा शिक्षा के भारतीयकरण करने के लिए किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में शनिवार को अनेक संस्‍थानों के प्रतिनिधियों का एक सेमिनार आयोजित किया गया। इसका उद्देश्‍य चिकित्‍सा शिक्षा का भारतीय प्रारूप तैयार करने के लिए विशेषज्ञों के सुझाव लेना था। विभिन्‍न विशेषज्ञों के सुझावों को अब भारत सरकार को भेजा जायेगा जिससे नयी चिकित्‍सा शिक्षा का प्रारूप तैयार हो सके। इस सेमिनार में मुख्य रूप से शामिल होने वाले लोगों में व्यास विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एचआर नागेंद्र, केजीएमयू के कुलपति प्रोफेसर एमएलबी भट्ट भी शामिल रहे।

सेमिनार के आयोजन सचिव डीन पैरामेडिकल डॉ विनोद जैन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सेमिनार में जो सुझाव दिये गये उनमें हमारे वातावरण में अनुकूल उद्देश्य, नीति तथा संरचना, पाठ्यवस्तु और शिक्षण विधि के आधार पर ‘आयुर्विज्ञान शिक्षा का भारतीय प्रारूप’ विकसित करेंगे। पूरे शास्त्रीय विधि से करने पर यह प्रारूप अन्य देशों के लिए भी प्रेरणादायी होगा।

इसमें कहा गया है कि सिद्धांतों के व्यावहारिक पक्ष का सही ज्ञान होने के उद्देश्य से शिक्षा के प्रारम्भिक वर्षों में ही निदान विधियों से परिचय करवायेंगे। इसके अतिरिक्‍त छात्रों के गण बनाकर उन्हें सेवा के लिए किसी बस्ती, गाँव अथवा क्षेत्र को गोद लेकर वहाँ पूर्ण स्वास्थ्य प्रकल्प के संचालन का दायित्व देने की व्यवस्था विकसित की जाये। इसे सही तरह से निभाया है या नहीं इसके लिए जो परिवारों या समुदायों की जिम्‍मेदारी जिन छात्रों को सौंपी जायेगी उसके स्‍वास्‍थ्‍य सुधार के आधार पर छात्र को गुणांक प्रदान किये जायेंगे।

प्रमाण आधारित दृष्टि के विकास के लिए छात्रों को प्रारम्भ से ही अनुसंधान के लिए प्रेरित किया जाये। परिचर्चा में सहभागी सभी संस्थाओं के योगदान से आरएफआरएफ नागपुर के ज्ञान संसाधन केंद्र में आवश्यक शोध क्षेत्र, ज्ञान निधि‍ तथा अध्ययन पाठ का संग्रह विकसित किये जाने की सिफारिश की गयी है।

एक और खास सुझाव है कि अध्‍ययन की अवधि केवल प्रातः 9 से सायं 5 बजे तक न मानते हुए इसके साथ छात्रावास, प्रत्यक्ष कार्यानुभव सहित पूर्ण दिनचर्या को निर्धारित किया जाये। वक्‍ताओं का कहना था कि  संस्कारक्षम वातावरण मनुष्य निर्माण कारी व्यावसायिक शिक्षा का प्रमुख अंग है, अतः शैक्षिक प्रक्रिया के प्रति अहर्निश दृष्टिकोण अपने स्तर पर विश्वविद्यालय, महाविद्यालय अथवा अपनी कक्षा में विकसित करेंगे। प्रयोगों का शास्त्रीय अभिलेखन कर शासन तथा नियंत्रकों को अनुशंसा करेंगे।

चिकित्सक की जीवन शैली समाज के लिए आदर्श बनें  इसके लिए आहारशास्त्र जैसे जीवन शैली से जुड़े विषयों का पाठ्यक्रम में समुचित अंतर्भाव कर सकारात्मक स्वास्थ्य की ओर प्रगति  करने का सुझाव है।

एक खास सुझाव यह भी है कि चूंकि हमारा समाज उपचार में विविध उपायों को मानता है, इसलिए सभी चिकित्सा पद्धतियों का समावेश करते हुए स्नातक और परास्नातक स्तर पर एकात्म पाठ्यक्रमों का विकास किया जाएगा। इसके लिए निम्‍हेंस (NIMHANS) जैसे संस्थानों में किए प्रयोग मार्गदर्शक हो सकता है।

हमारे बृहद स्वास्थ्य व्यवस्था में उपलब्ध प्रचंड जानकारी का प्रामाणिक अध्ययन कर विकृति शास्त्र तथा शरीर रसायन के भारतीय मानक विकसित किये जायें।

सर्वेसंतुनिरायमा: के भारतीय आदर्श के द्वारा समस्त मानवता के स्वास्थ्य के अंतिम गंतव्य को प्राप्त करने हेतु व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय तथा ज्ञान योगदान के स्तर पर शिक्षा के समग्र अधिगम फलित: सूचीबद्ध कर आयुर्विज्ञान शिक्षा के उद्देश्य को समग्रतापूर्वक छात्रों में अंकित करने का सुझाव है।

इसके अतिरिक्‍त अपने-अपने स्तर पर विश्वविद्यालय, महाविद्यालय अथवा कक्षा में विभिन्न पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं को माध्यम के रूप में अधिकाधिक प्रयोग किया जाये। यह क्रमशः पूरे आयुर्विज्ञान पाठ्यक्रम को भारतीय भाषा में विकसित करने में सहायक होगा।