लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय में आज केजीएमयू इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज द्वारा कैंसर के मरीजों को कीमीथेरेपी दिये जाने के दौरान बरतने वाली सावधानियों के बारे में एक सतत चिकित्सा शिक्षा सीएमई विद हैन्ड्स ऑन वर्कशॉप का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में थ्योरी के साथ ही पुतलों पर डिमॉन्ट्रेशन के जरिये वीनस एक्सेस यानी नसों में दवा डालने के लिए अपनाये जाने वाली विधियों के बारे मेें स्टाफ नर्स और पैरामेडिकल छात्र-छात्राओं को उपयोगी प्रशिक्षण दिया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने करते हुए कहा कि ज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है, ज्ञान प्राप्त करके उपयोग करते हुए मानव की सबसे बड़ी सेवा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसी कार्यशाला का आयोजन एक सराहनीय कदम है।
50 प्रतिशत तक कम हो सकती हैं समस्यायें
कार्यक्रम की जानकारी देते हुए आयोजन अध्यक्ष प्रो विनोद जैन ने बताया कि कैंसर का मरीज जो कि कैंसर के कारण पहले से ही दर्द सहता रहता है ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि उसके इलाज के दौरान सुई आदि से होने वाले घाव न हों और सुरक्षित तरीके से दवा शरीर में पहुंचे। उन्होंने बताया कि इस सीएमई का उद्देश्य पैरामेडिकल स्टाफ को कैंसर के मरीजों को दर्दरहित और सुरक्षित कीमोथेरेपी देने का प्रशिक्षण देना था। उन्होंने बताया कि अगर पैरामेडिकल स्टाफ ठीक से प्रशिक्षित नहीं होगा तब तक मरीज के उपचार में कहीं न कहीं चूक होने की संभावना बनी रहती है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षित नर्सें होंगी तो गड़बड़ी की संभावना कम से कम 50 प्रतिशत तक कम हो जायेगी।
आईवी कैन्यूला
प्रो. जैन ने बताया कि सीएमई में भाग लेने वाले प्रशिक्षार्थियों को विभिन्न वक्ताओंं द्वारा थ्योरी का ज्ञान दिया गया। इसके पश्चात एक वर्कशॉप के जरिये प्रशिक्षार्थियों को उसी थ्योरी में बतायी गयी बातों का प्रैक्टिकल कराया गया। इसके लिए पांच वर्क स्टेशन तैयार किये गये थे। इनमें पहला था आईवी कैन्यूला इसमें बताया गया कि किस तरह से कैंसर के मरीज की चौड़ी नस में दवा का इंजेक्शन लगाना होगा, इसमें क्या सावधानी बरतनी होगी कि नसें पंक्चर न हो, कई बार देखा जाता है कि नस में सूजन आ गयी ऐसा गलत तरीके से इंजेक्ट करने से होता है।
अल्ट्रासाउंड
दूसरे वर्क स्टेशन अल्ट्रासाउंड पर दिखाया था कि अल्ट्रासाउंड के सहारे देखा जा सकता है कि दी गयी दवा सही जगह जा रही है अथवा नहीं। दवा नस के बजाये इधर-उधर चली गयी तो वह दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को समाप्त कर देगी और वहां घाव पैदा हो जायेगा।
कीमोपोर्ट
इसी प्रकार तीसरे वर्क स्टेशन कीमोपोर्ट था। कीमोपोर्ट एक तरह की डिवाइस होती है जिसमें दवा इंजेक्ट कर दी जाती है जो सीधे हृदय में चली जाती है इसमें किसी तरह की नस ढूंढऩे की जरूरत नहीं पड़ती है। यहां एक पुतले में कीमोपोर्ट लगाकर सिखाया गया कि किस प्रकार दवा सीधे हृदय मेंं जाती है। यह डिवाइस एक साल तक काम कर सकती है। यानी कैंसर में कीमोथेरेपी करीब नौ माह तक चलती है तो एक बार यह डिवाइस लगवा लेने से ही काम चल जाता है।
पिक लाइन
चौथा वर्क स्टेशन था पिक लाइन, इसमें बताया गया कि किस प्रकार से एक छोटी सी डिवाइस को एक बार भुजा में लगा दिया जाता है इसकी नली का सीधा कनेक्शन हृदय से होता है। इसके जरिये बार-बार सुई चुभने के दर्द से मरीज बचा रहता है इसमें इस डिवाइस के जरिये दवा डाल दी जाती है। यह डिवाइस एक से तीन माह तक ही ठीक काम करती है उसके बाद फिर इसे बदलना पड़ता है। पांचवा वर्क स्टेशन था कीमोपोर्ट यूज इसमें भी कीमोपोर्ट को यूज करने के बारे में बताया गया था।
प्रो. जैन ने बताया कि प्रशिक्षार्थियों को प्रो एके त्रिपाठी ने कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव ओर उन्हें रोकने के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं, इसके बारे में जानकारी दी। इसके अलावा प्रशिक्षण देने में प्रो. तन्मय तिवारी, डॉ समीर गुप्ता, प्रो. नीरज रस्तोगी, डॉ गीतिका नंदा सिंह, डॉ. अक्षय अग्रवाल और प्रो.आनंद मिश्रा शामिल रहे।