लखनऊ। गंभीर दुर्घटना में घायल मरीज के लिए शुरुआत का एक घंटा उसके जीवन के लिए बहुत खास होता है, इस सुनहरे घंटे में उसे विशेष तरीके से मैनेज करने की आवश्यकता होती है, इस विशेष तरीके से मैनेज करने के लिए डॉक्टरों और नर्सों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। अगर घायल को प्रॉपर ट्रॉमा ट्रीटमेंट मिल गया तो समझ लीजिये कि उसका जीवन बच जायेगा। यही नहीं बचने की दशा में चोट के चलते शरीर के किसी भाग में जीवन पर्यन्त आने वाली विकलांगता से भी घायल को बचाया जा सकता है। गोल्डन आवर में मिलने वाले इस ट्रीटमेंट से करीब 30 प्रतिशत जानें बचायी जा सकती हैं। इस विशेष कोर्स का प्रशिक्षण अब तक भारत में करीब छह हजार डॉक्टर प्राप्त कर चुके हैं।
एटीएलएस डॉक्टरों के लिए एटीएनएस नर्सों के लिए
अंतरराष्ट्रीय स्तर की यह ट्रेनिंग एटीएलएस चिकित्सकों के लिए तथा एटीसीएन नर्सों के लिए देश के 11 संस्थानों में दी जा रही है। इनमें से एक किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय भी है। इस ट्रेनिंग में एबीसीडी यानी एयरवेज, ब्रीदिंग, सरकुलेशन और डिसेबिलिटी को मैनेज करने की ट्रेनिंग देते हुए बताया जाता है कि किस तरह से घायल व्यक्ति को सांस लेने मे तकलीफ न हो, बिना रुकावट सांस ले सके, उसके खून का बहाव रुक जाये तथा उसे किस तरह उठाया और लेटाया जाये जिससे किसी प्रकार की विकलांगता न आने पाये।
देश भर में 11 संस्थानों में है इस ट्रेनिंग की सुविधा
केजीएमयू आये हुए इस कोर्स के नेशनल कोऑर्डीनेटर एम्स नयी दिल्ली के सुरेश चंद्र सांगी ने सेहत टाइम्स से एक विशेष भेंट में बताया कि अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जन्स के एडवांस्ड ट्रॉमा लाइफ सपोर्ट कोर्स की भारत में शुरुआत नयी दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में वर्ष 2009 में हुई थी। इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है, नयी दिल्ली में वर्ष 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों के समय जब गेम्स के आयोजन के लिए एटीएलएस प्रशिक्षणयुक्त डॉक्टर होने की शर्त अनिवार्य बतायी गयी तो इसकी आवश्यकता को पूरा करने के लिए इस कोर्स की शुरुआत भारत सरकार के निर्देश पर की गयी थी। इसके लिए डॉक्टरों की ट्रेनिंग अमेरिका में हुई। उन्होंने बताया कि इस समय एम्स ट्रॉमा सेंटर, दिल्ली के साथ ही, दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल, कोट्टायम, अहमदाबाद, पुणे, मुम्बई, चेन्नई, पांडिचेरी, गोवा और केजीएमयू लखनऊ में इसके तीन-तीन दिन के कोर्स चलते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में इस कोर्स के प्रोग्राम डाइरेक्टर डॉ एमसी मिश्र तथा प्रोग्राम कोऑर्डीनेटर डॉ सुबोध कुमार हैं।
250 चिकित्सकों का पैनल है प्रशिक्षण देने के लिए
उन्होंने बताया कि देश भर में अब तक करीब 6000 डॉक्टर तथा 700 नर्सों को यह विशेष ट्रेनिंग दी जा चुकी है। उन्होंने बताया ट्रेनिंग लेने वालों में बीएसएफ, सीआरपीएफ सहित अनेक राज्यों के सरकारी व गैर सरकारी चिकित्सक व नर्सें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस ट्रेनिंग की मान्यता पूरे विश्व में है। उन्होंने बताया कि इस ट्रेनिंग में देश भर में मौजूद करीब 250 प्रशिक्षक ऐच्छिक सेवा करते हुए प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देते हैं। इनमें प्रशिक्षकों में वे ही होते हैं जो पहले हमारे ही कार्यक्रम में प्रशिक्षण प्राप्त किये रहते हैं।
मानव के पुतलों पर कराया जाता है प्रैक्टिकल
प्रशिक्षण के दौरान दो दिन अलग स्किल स्टेशन बनाकर मरीज के पुतलों पर विस्तार से प्रैक्टिकल कराते हुए प्रशिक्षण दिया जाता है। मानव शरीर की तरह बने इन पुतलों पर उसी तरह सिखाया जाता है जैसे किसी घायल व्यक्ति का इलाज किया जा रहा हो। इसके बाद तीसरे दिन कोर्स पूरा होने पर एक परीक्षा का आयोजन किया जाता है उस दिन जीवित व्यक्तियों को चोटिल दिखाने का मेकअप करके उन्हें ऐसा दिखाया जाता है जिससे वे हूबहू घायलों की तरह लगें। उसके बाद प्रशिक्षण प्राप्त लोगों से इन कृत्रिम घायल व्यक्तियों का इलाज करने को कहा जाता है। जब प्रशिक्षण पाये लोग सही तरह से ट्रीटमेंट करके दिखा देते हैं तभी उन्हें ट्रेनिंग पूरी करने का सार्टीफिकेट जारी किया जाता है।
इस वर्ष की दूसरी ट्रेनिंग : डॉ विनोद जैन
केजीएमयू में चल रहे ट्रेनिंग प्रोग्राम के कोर्स डायरेक्टर प्रो विनोद जैन ने बताया कि केजीएमयू में इस साल का यह दूसरा प्रशिक्षण है। तीन दिवसीय यह ट्रेनिंग केजीएमयू में आज 27 अप्रैल से शुरू हुई है। इससे पहले फरवरी में हुई थी। है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में पांच कोर्स हुए थे। उन्होंने प्रशिक्षण के लिए बनाये गये स्किल स्टेशनों का दौरा कराते हुए दिखाया कि किस तरह से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। केजीएमयू में चल रहे तीन दिवसीय प्रशिक्षण देने वालों में डॉ. संदीप साहू, डॉ विनोद जैन, डॉ. संदीप तिवारी, डॉ.समीर मिश्र, डॉ क्षितिज श्रीवास्तव, डॉ हेमलता, डॉ कर्नल मैथ्यू जैकब, डॉ पीयूष रंजन हैं तथा कोर्स कोऑर्डीनेटर शालिनी गुप्ता हैं।