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उपचार का पायलट प्रोजेक्‍ट सफल, कम हुईं 40 प्रतिशत शिशुओं की मौतें

ग्रामीण क्षेत्रों में बाल रोग विशेषज्ञों की कमी और अभिभावकों की जिला अस्‍पताल न ले जाने की प्रवृत्ति से निपटने का कारगर उपाय

केजीएमयू की बाल रोग विशेषज्ञ के नेतृत्‍व में चार ब्‍लॉक के 780 गांवों में 21 माह चलायी गयी परियोजना

प्रो शैली अवस्‍थी

लखनऊ। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन द्वारा डेवलप की गयी उपचार प्रणाली को लागू किये जाने से गंभीर बैक्‍टीरियल संक्रमण से होने वाली शिशुओं की मौत में 40 फीसदी की कमी आ सकती है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय केजीएमयू की बाल रोग विशेषज्ञ प्रो शैली अवस्‍थी के नेतृत्‍व में राजधानी लखनऊ के चार ब्‍लॉकों में 21 माह तक इस प्रोग्राम को चलाकर देखा गया, जिसके बाद पाया गया कि शिशु मृत्‍यु दर 40 फीसदी कम हुई। अब इसे पूरे उत्‍तर प्रदेश में लागू करने की सिफारिश प्रो शैली अवस्‍थी ने की है।

 

 

इस बारे में जानकारी देते हुए प्रो शैली अवस्‍थी ने बताया कि गंभीर बैक्‍टीरियल संक्रमण की संभावना वाले शिशुओं को बाल रोग विशेषज्ञ की अनुपलब्‍धता वाले स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों, यहां तक कि घर पर ही इलाज मिले, इसके लिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन द्वारा डेवलप की गयी उपचार प्रणाली को लखनऊ के चार ब्‍लॉकों सरोजनी नगर, काकोरी, माल एवं गोसाईगंज में लागू कराया गया, इन ब्‍लॉकों के 780 गावों में कुल जनसंख्या 8.56 लाख है। इस क्षेत्र में 4 सी0एच0सी0 एवं 14 पी0एच0सी0 संचालित हैं। इन स्वास्थ्य केन्द्रों पर 57 चिकित्सक 142 ए0एन0एम0 और 780 आशा कार्यकत्री कार्यरत हैं। इन सभी को एच0बी0एन0सी0 (गृह आधारित नवजात देखभाल) कौशल प्रशिक्षण दिया गया तथा W.H.O. द्वारा आधारित सम्भावित गम्भीर संक्रमण (PSBI)  उपचार के लिए प्रशिक्षित किया गया। 21 महीनों तक चले इस इम्‍प्‍लीमेंटेशन प्रोजेक्‍ट के परिणाम बहुत ही सकारात्‍मक आये हैं।

 

 

आपको बता दें कि बड़ी संख्‍या में ऐसे मामले होते हैं जिनमें शिशु को बैक्‍टीरियल संक्रमण का प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों पर इलाज बाल रोग विशेषज्ञ की उपलब्‍धता न होने के कारण नहीं मिल पाता है। यही नहीं अनेक अभिभावक बच्‍चों को जिला अस्‍पताल रेफर किये जाने के बावजूद वहां नहीं ले जाते हैं नतीजा शिशु की जान पर बन आती है, इसी स्थिति को सुधारने के दृष्टिकोण से तैयार नये पैदा हुए बच्‍चे की घर पर आधारित देखभाल Home Base New Born care (HBNC) प्रोग्राम के अंतर्गत कुछ चुनी हुई दवाओं को उपचार में शामिल किया गया है। इस प्रोग्राम को बहुत से देशों में लागू भी किया जा चुका है। इसी क्रम में एक परियोजना के तहत इस प्रोग्राम को राजधानी लखनऊ के चार ब्‍लॉक्‍स में लागू किया गया। जिसमें परिजोजना के प्रिंसिपल इन्‍वेस्‍टीगेटर के रूप में किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय केजीएमयू की बाल रोग विशेषज्ञ प्रो शैली अवस्‍थी के साथ को-इन्‍वेस्‍टीगेटर कम्‍युनिटी मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर मोनिका अग्रवाल व लखनऊ विश्‍वविद्याल के सांख्यिकी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ जीजी अग्रवाल इस परियोजना में शामिल रहे।

 

 

यह परियोजना जुलाई 2017 से मार्च 2019 (21 माह) तक संचालित की गयी। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चार ब्‍लॉक में की गयी इस शोध के अच्‍छे परिणामों के बाद इस शोध के तहत किये जाने वाले उपचार को पूरे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किये जाने की सिफारिश भी प्रो शैली अवस्‍थी ने की है।

 

प्रो शैली अवस्‍थी के अनुसार नवजात को होने वाली गंभीर बीमारियों में ग्रामीण क्षेत्रों स्थित पीएचसी, सीएचसी द्वारा जिला अस्‍पताल को रेफर किये जाने की सलाह के बावजूद कई अभिभावक जिला अस्‍पताल नहीं ले जाते थे, फलस्‍वरूप अनेक शिशुओं की मौत हो जाती थी। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन से वित्‍त पोषित और भारत सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से एक शोध परियोजना के तहत किये गये शोध का परिणाम है कि जिन चार ब्‍लॉकों सरोजिनीनगर, काकोरी, माल और गोसाईगंज की 8.56 लाख की आबादी वाले के 780 गांवों में यह शोध किया गया।

 

डॉ शैली के अनुसार अब वहां के प्राथमिक/सामुदायि‍क स्‍वास्‍थ्‍य केन्द्रों पर बीमार नवजात शिशुओं का परीक्षण एवं उपचार सभी चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है। उनका कहना है कि‍ इस परियोजना में स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों पर साधारण उपचार दिया गया,  यही नहीं अगर किसी अभिभावक द्वारा इलाज से मना किया गया तो उस बच्‍चे का इलाज उसके घर पर ही किया गया। रोग पहचानने संबंधी प्रशिक्षण देने के बाद अब आशायें नवजात शिशु की बीमारी घर पर ही पहचान कर लेती हैं।

 

प्रो शैली अवस्‍थी के अनुसार गंभीर स्थिति वाले बच्‍चों को भी एएनएम एवं चिकित्सक प्री रेफरल डोज लगाने के बाद ही रेफर करते हैं। इस शोध की सफलता का प्रमाण यह है कि चारो ब्लाकों में 40 प्रतिशत नवजात मृत्यु की दर में 2 वर्षो में कमी आयी।

 

इसके साथ-साथ 2017 में लखनऊ जनपद के सभी बाल रोग विशेषज्ञों को 3 दिन दिवसीय प्रशिक्षको का प्रशिक्षण  (TOT)  दिया गया। इस परियोजना के दौरान 24448 शिशु जीवित पैदा हुए। जो कि जन्म दर 19.1 के प्रति 1000 जनसंख्या पर आधारित है। गृह आधारित शिशु देखभाल कार्यक्रम में आशा कार्यकत्री शिशुओं के घर, गृह भ्रमण जन्म के प्रथम दिन (घर

पर पैदा होने वाले शिशुओं में) 3,7,14,21,28,42 वें दिन तक गृह भ्रमण करती हैं। इसके अनुपात में नवजात के प्रथम सप्ताह के भीतर गृह भ्रमण 78 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत हुई। बीमार शिशुओं की पहचान में यह अनुपात 4 प्रतिशत से बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया। यह हमारे प्रोजेक्ट स्टाफ के क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान आशाओं के कौशल वृद्धि के लिए सुधारात्मक पर्यवेक्षण द्वारा सम्भव हुआ। यह आशाओं के कार्य में आत्मविश्वास एवं प्रेरणा बृद्धि में सहायक सिद्ध हुआ।

यहां पर 1129 कुल PSBI के केस मिले, उनमें से 90.6 प्रतिशत आशा और ए0एन0एम0 द्वारा पहचाने गये और केवल 9.2 प्रतिशित ही स्वयं से सामुदायिक/प्राथमिक/उपकेन्द्र पर गये। इन सभी केसो को जिला अस्पताल इलाज हेतु संदर्भित किया गया, किन्तु इन 1129 में से 819 (72.5 प्रतिशत) इलाज हेतु जिला चिकित्सालय जाने को तैयार नहीं हुए। इन सभी को डब्‍ल्‍यूएचओ द्वारा निर्धारित साधारण उपचार द्वारा घर पर ही इलाज दिया गया। इस उपचार की प्रक्रिया में एक इंजेक्शन एवं एक कैप्‍सूल निश्चित मात्रा में निश्चित अवधि तक दिया गया। इंजेक्शन लगवाने के लिए अभिभावक अपने नवजात के साथ सीएचसी/पीएचसी पर आते थे तथा कुछ केस में एएनएम ने घर जाकर इंजेक्शन लगाया। इन 819 केस में सिर्फ 14 (1.4 प्रतिशत) की मृत्यु हुई।

 

यहां पर 118 अति गम्भीर बीमार शिशु जिनमें कुछ को झटके आये थे और कुछ दूध नहीं पी पा रहे थे और न ही उनमें कोई गतिशीलता नहीं थी, यह सभी जिला चिकित्सालय में इलाज हेतु तैयार हुए। इन 118 अति गम्भीर बीमार शिशुओं में से 18 (15.2 प्रतिशत) की मृत्यु हो गयी। 223 शिशु ऐसे थे जिन्हें किसी भी प्रकार का इलाज नहीं मिला या कुछ प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए गये लेकिन उन 223 शिशुओं में सभी की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार कुल 1129 PSBI  केस में से 139 की मृत्यु हो गयी। 24448 जीवित पैदा शिशुओं में से 276 शिशु जन्म से ही बीमार थे। इन 276 शिशुओं में से 213 (77 प्रतिशत) की मृत्यु Perinatal asphyxia एवं 55 की मृत्यु Premature delivery  होने के कारण हुई । इस प्रकार जो कुल 213 मृत्यु जन्म से ही बीमार शिशुओं की हुई उनमें से 139 की मृत्यु PSBI के कारण तथा 30 शिशुओं की मृत्यु अन्य बीमारी जैसे पीलिया, दस्त या अचानक हुई । यहां पर 382 नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई जिसमें कि नवजात शिशु मृत्यु दर 1000 जीवित जन्म पर 15.6 पाई गयी ।

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास खण्डों में नवजात शिशु मृत्यु के कारणः-

55.7 प्रतिशत (जन्म से ही बीमार- लगभग 3/4 Perinatal asphyxia

एवं 1/4 Prematurity  के कारण)

36.4 प्रतिशत PSBI के कारण

7.9 प्रतिशत अन्य कारणों से (जन्मजात विकृत, गम्भीर पीलिया, दस्ता और अचानक मृत्यु आदि)

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में वर्ष 2015 में नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित पैदा होने वाले शिशुओं में 26 थी। इस Birth Cohort  के अनुसार गणना करने पर लगभग 633 नवजात शिशु मृत्यु अनुमानित हुई। यद्यपि इस Birth Cohort  में केवल 382 नवजात शिशु मृत्यु हुए। इस प्रकार इस प्रोजेक्ट के द्वारा हमने 251 नवजात शिशु मरने से बचाए जो कि लगभग नवजात शिशुओं की मृत्यु में 40 प्रतिशत की कमी दर्शाता है।