यूनीसेफ ने नवजात शिशु सप्ताह के मौके पर पत्रकारों को दी जानकारी
बच्चों के लिए किये जा रहे कार्यों के प्रति यूनीसेफ ने प्रतिबद्धता दोहरायी
लखनऊ। अनेक प्रयास के बावजूद अब भी भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश में नवजात की मृत्युदर बहुत ज्यादा है। उत्तर प्रदेश की नवजात मृत्यु दर 30 प्रति 1000 जीवित जन्म है इनमें से पैदा होने के कुछ घंटों के अंदर जहां 36.9 प्रतिशत बच्चों की मृ्त्यु हो जाती है वहीं एक दिन के नवजात की मृत्यु का प्रतिशत 7.4, दो दिन के नवजात कीमृत्यु का प्रतिशत 10.1, तीन दिन का प्रतिशत 6.6, चार दिन का प्रतिशत 5.1, 5 दिन का प्रतिशत 3.4 और छह दिन के शिशु दिन का प्रतिशत 3.5 है जबकि एक सप्ताह के शिशु की मृत्यु दर 72.9 है। इसे रोकने के लिए सार्थक प्रयास किये जाने की जरूरत है। इसके कारणों के बारे में अगर बात करें तो पाया गया है कि थोड़ा-थोड़ा ध्यान अगर इससे जुड़े लोग रख लेंगे तो इन नवजातों की मौत की दर को थामने में बड़ी मदद मिल सकती है।
यह जानकारी यूनीसेफ के लखनऊ कार्यालय में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में यूनीसेफ की डॉ कनुप्रिया ने देते हुए बताया कि यद्यपि ये आंकड़े पूर्व के आंकड़ों से बेहतर हैं लेकिन अभी भी बहुत ज्यादा है, इसके कारणों के पीछे जायें तो देखा गया है कि नवजात की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण समयपूर्व प्रसव होना है, ऐसा 43.7 प्रतिशत शिशुओं में पाया गया है। इसके अतिरिक्त लेबर रूम में साफ-सफाई न होना भी शिशु में संक्रमण पैदा करता है जो मृत्यु का कारण बनता है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में 21 प्रतिशत और भारत में 27 प्रतिशत का कम उम्र (किशोरावस्था) में मां बनना, उत्तर प्रदेश में 52 प्रतिशत तथा भारत में 53 प्रतिशत गर्भवती माता में खून की कमी होना भी इस समस्या को जन्म देता है।
उन्होंने बताया कि इसी प्रकार संस्थागत प्रसव यानी कि अस्पताल में डिलीवरी कराने का आंकड़े की बात करें तो 10 में से 3 की डिलीवरी घर पर ही होती है, इसी प्रकार गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार डॉक्टर के पास जाकर जांच करानी चाहिये जो कि चार में से सिर्फ 1 गर्भवती स्त्री ही चार बार डॉक्टर के पास जांच कराने जाती है।
डॉ कनुप्रिया ने बताया कि इसके अलावा जन्म के एक घंटे के अंदर मां का पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाना अनिवार्य होता है लेकिन विडम्बना यह है कि अस्पताल में होने वाली डिलीवरी में भी चार में एक प्रसूता एक घंटे के अंदर अपने बच्चे को दूध पिलाती है। जबकि इसके लिए अस्पताल की डॉक्टर से लेकर नर्स तक को यह जानकारी होती है।
उन्होंने बताया कि महिलाओं की पढ़ाई में कमी होना, उन्हें निर्णय लेने का अधिकार न होना तथा सफाई न होना भी बड़े कारण हैं जिसके चलते शिशु की देखभाल में कमी रह जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है। डॉ कनुप्रिया ने बताया कि शिशु को कम तापमान से बचाने के लिए जहां उपकरणों के जरिये उसे गर्मी दी जाती है वहीं कंगारू मदर केयर भी एक बेहद कारगर उपाय है। इसके तहत माता या पिता के शरीर से शिशु के शरीर को चिपका कर रखा जाता है जिससे शिशु को शरीर की गर्मी मिलती रहे।
लड़का और लड़की के बीच भेदभाव के बारे में अहम् जानकारी देते हुए डॉ कनुप्रिया ने बताया कि भारत में आज भी शिशुओं की मृत्यु दर में मेल चाइल्ड की अपेक्षा फीमेल चाइल्ड की संख्या ज्यादा है। यही नहीं जिलों में खुली सिक नियोनेटल केयर यूनिट (एसएनसीयू) में भर्ती होने वाले शिशुओं में लड़कियों का प्रतिशत सिर्फ 37 प्रतिशत है जबकि इसे 50 प्रतिशत होना चाहिये यानी 50 प्रतिशत लड़के और 50 प्रतिशत लड़कियां की भर्ती होनी चाहिये।
नेशनल हेल्थ मिशन के जनरल मैनेजर चाइल्ड हेल्थ डॉ अनिल वर्मा ने इस मौके पर बताया कि यूनीसेफ की सलाह पर एनएचएम द्वारा वर्ष 2008 में पहली एसएनसीयू ललितपुर में शुरू की गयी थी, इनकी संख्या वर्ष दर वर्ष बढ़ते हुए 2017-18 तक 77 एसएनसीयू तक पहुंच गयी हैं। उन्होंने बताया कि नवजात की नाल पर तेल आदि कुछ नहीं लगाना चाहिये, इससे संक्रमण होने की आशंका रहती है। इसी प्रकार शिशु का समय पर टीकाकरण बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि जन्म के 48 घंटों तक शिशु को नहलाना नहीं चाहिये। वरना उसे सर्दी लग सकती है। इसी प्रकार पैदा होने के बाद शिशु की जांच होनी जरूरी है।
इस मौके पर यूनीसेफ की ओर से गीताली त्रिवेदी ने यूनीसेफ के कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि किस प्रकार यूनीसेफ अपने कार्यक्रमों के माध्यम से ज्रागरूकता के साथ ही समस्या के समाधान के लिए प्रयास करता है। इस मौके पर डॉ अनिल वर्मा और डॉ कनुप्रिया ने पत्रकारों के इस विषय पर पूछे गये सवालों के जवाब भी दिये तथा पत्रकारों द्वारा दिये गये सुझावों को आगे की योजना में शामिल करने की बात भी कही।