लखनऊ। हमारे देश में चिकनपॉक्स जिसे बोलचाल की भाषा में छोटी माता भी कहा जाता है, बच्चों एवं शिशुओं को होने वाला रोग है इसका आक्रमण ज्यादातर दस वर्ष तक के बच्चों में ज्यादा देखा जाता है परन्तु बड़ों में भी इसकी सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वैसे तो यह सामान्य रोग समझा जाता है परन्तु यदि सही और समय पर उपचार न हो तो बच्चे में अनेक गम्भीर शारीरिक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। कभी-कभी चिकनपॉक्स के बाद इसका वायरस शरीर में सुप्तावस्था में पड़ा रहता है और लम्बे समय के बाद हरपीस जॉस्टर के रूप में प्रकट हो सकता है। यह जानकारी वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा ने दी।
क्या कारण होते हैं चिकनपॉक्स के
डॉ वर्मा ने बताया कि चिकनपॉक्स वैरिसिला नामक वायरस द्वारा होता है जो रोगी के रक्त में पाया जाता है तथा फुन्सी के फूटने से निकले द्रव्य द्वारा स्वस्थ बच्चों में संक्रमण फैलाता है। यह बिस्तर एवं कपड़ों के माध्यम से भी फैलता है। रोगी के शरीर में उद्भेद (फुन्सी) निकलने के एक घण्टे बाद से ही संक्रमण फैलने लगता है। इसलिये इसे रोक पाना कठिन होता है। चिकनपॉक्स के शरीर में प्रविष्ट होने से रोग के पूरे लक्षण उत्पन्न होने में लगभग तीन सप्ताह का समय लगता है। चिकनपॉक्स निकलने के 6 दिन बाद रोगी बच्चा दूसरों के साथ घूम खेल सकता है क्योंकि चेचक की तरह पपड़ी पड़े दानों में संक्रमण नहीं होता है।
क्या लक्षण हो सकते हैं चिकनपॉक्स में
उन्होंने बताया कि चिकनपॉक्स के प्रारम्भ में हल्के बुखार के साथ उद्भेद निकलते हैं जो मेकुलोपेपुलर रूप में नोकदार होते हैं। इसके साथ बच्चे में उल्टी एवं ऐंठन आदि के लक्षण भी पाये जाते हैं। शरीर पर फैले हुये उद्भेद जल्दी ही पक जाते हैं। उद्भेद सबसे पहले धड़ पर निकलते हैं इसके बाद पैर एवं शरीर पर फैल जाते हैं। उद्भेद शरीर के खुले हुए भागों की अपेक्षा ढंके हुये हिस्सों पर ज्यादा निकलते हैं। यह चार-पांच दिनों तक निकलते हैं। और हर बार बुखार आता है। उद्भेद चेहरे, हथेली, तलवे, श्लेष्मिक झिल्ली पर भी हो सकते हैं जो फूटने के बाद रोगी को खाने एवं निगलने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी उद्भेदों को खुजलाने से अन्य संक्रमण भी हो जाते हैं जो घाव को बढ़ा देते हैं। रोग की गम्भीरता का अनुमान उद्भेदों की अधिकता से लगाया जा सकता है। चिकनपॉक्स के कारण रोगी में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है तथा शरीर पर दाग पड़ जाते है, जो कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं।
क्या जटिलतायें हो सकती हैं रोग से
जटिलताओं के बारे में बताते हुए डॉ वर्मा ने कहा कि चिकनपॉक्स की वजह से रोगी में यद्य़पि बहुत गम्भीर जटिलतायें नही उत्पन्न होती हैं परन्तु कभी-कभी पर्याप्त उपचार एवं देखभाल के अभाव में लैरिन्जाइटिस, एक्यूट ब्रांकइटिस, एक्यूट नेफ्राइटिस, आथ्र्राइटिस, आंखों की झिल्ली पर पॉक्स जैसी जटिलतायें उत्पन्न हो जाती हैं जो रोगी के शरीर में समस्याएं उत्पन्न कर देती हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
उन्होंने बताया कि चिकनपॉक्स बहुत ही संक्रमणशील रोग है इसलिये इससे बचाव के लिए रोगी को स्वस्थ बच्चों से अलग रखना चाहिये तथा उसका बिस्तर अलग रखना चाहिये उसके बिस्तर एवं कपड़ों को दूसरों द्वारा प्रयोग नहीं करना चाहिए। रोगी को तरल पदार्थ ज्यादा देना चाहिए तथा भोजन में नमक की मात्रा कम कर देनी चाहिये जिससे दानों में खुजली कम हो। रोगी को स्वच्छ व हवादार कमरे में रखना चाहिये एवं पूर्ण विश्राम करना चाहिये।
रोगी को मौसमी फल, सलाद, रसभरी एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिये। ठण्डे भोजन एवं ठण्डक से बचाना चाहिये।
होम्योपैथिक उपचार
डॉ वर्मा ने बताया कि चिकनपॉक्स के उपचार में होमियोपैथिक औषधियां काफी लाभकारी हैं, परन्तु रोगी के व्यक्तिगत लक्षणों के आधार पर ही औषधि का चयन किया जा सकता है। चिकनपॉक्स के उपचार में एकोनाइट, एन्टिम क्रूड, एपिस मेल, बेलाडाना, जेल्सिमियम, मर्क सॉल, रस टॉक्स, सल्फर आदि दवाइयां प्रमुख रूप से उपयोग की जाती है परन्तु औषधियों का उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिये। साधारणत: दवा की 30 शक्ति प्रयोग करना चाहिए।
एकोनाइट – जब बच्चे की प्रारम्भिक अवस्था में बुखार, बेचैनी, प्यास, चिन्तातुर स्थिति व नाड़ी तेज कड़ी तथा भारी हो तथा हाथ गर्म एवं पैर ठण्डे हों ऐसी स्थिति में एकोनाइट औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
एन्टिम क्रूड – जब बुखार के साथ मिचली एवं जीभ पर सफेद पर्त हो एवं बच्चा चिड़चिड़ा, डरा तथा देखने व छूने से चिढ़ता हो तब एन्टिम क्रूड का प्रयोग किया जा सकता है।
एन्टिम टार्ट – जब बुखार के साथ-साथ ऐंठन हो, बच्चा निढाल व कमजोर हो, जीभ पर सफेद पर्त, अधिक पसीना, चेहरे पर पीलापन एवं सीने में खडख़डाहट के लक्षण हों तब एन्टिम टार्ट का प्रयोग करना चाहिए।
एपिस मेल – जब दानों में खुजली हो जो जरा सी गर्मी से बढ़ जाए तब एपिस मेल का प्रयोग किया जा सकता है।
बेलाडोना – जब बुखार के साथ सिर दर्द हो तथा बच्चे की आंखे लाल हों तब बेलाडोना का प्रयोग किया जा सकता है।
जेल्सिमियम – जब साधारण बुखार के साथ बच्चा सुस्त, निढाल हो तथा प्यास कम लगती हो ऐसे लक्षणों में जेल्सिमियम का प्रयोग करना चाहिए।
मर्कसॉल – जब दानों में मवाद आने लगे तथा रोगी के मुंह से बदबू आती हो। जबान मोटी, गीली, पीली एवं दांत में निशान हो तब मर्कसॉल का प्रयोग किया जा सकता है।
रस टॉक्स – जब अत्यधिक खुजली एवं जलन हो। रोगी अपनी स्थिति बदलता रहता हो। मुंह का स्वाद कड़वा तथा पैर-हाथों में ऐंठन एवं दर्द के लक्षण हों तब रस टाक्स का प्रयोग किया जा सकता है।
स्वस्थ लोग बचाव के लिए ले सकते हैं दवा
डॉ वर्मा बताते हैं कि जब आसपास रोग फैल रहा हो तो वेरियोलिनम 200 शक्ति की होम्योपैथिक औषधि चिकित्सक की सलाह से प्रयोग कर रोग से बचाव किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त चिकनपाक्स से प्रभावित बच्चे को अन्य स्वस्थ बच्चों से अलग रखना चाहिए तथा पूरी तरह स्वस्थ हो जाने पर ही स्कूल भेजना चाहिए।