Friday , October 20 2023

किशोर विद्यार्थियों के स्‍वास्‍थ्‍य की कीमत पर वर्चुअल क्‍लासेज उचित नहीं

-शोध बताती हैं कि रोजाना 5 से 6 घंटे मोबाइल देखने के शारीरिक-मानसिक दुष्‍परिणाम
-छूटा हुआ कोर्स तो एक्‍स्‍ट्रा क्‍लासेज से पूरा हो जायेगा : डॉ महेन्‍द्र नाथ राय
-वर्चुअल क्‍लास की तैयारी में अभिभावकों के लिए आर्थिक दुष्‍वारियां भी कम नहीं
डॉ महेन्‍द्र नाथ राय

लखनऊ। कोरोना महामारी को देखते हुए लॉक डाउन में विद्यालय भी बंद हैं। सीबीएसई, आईसीएससी बोर्ड के निजी विद्यालयों में वर्चुअल क्लास की होड़ लगी है, इनको देखा देखी उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उत्तर प्रदेश परिषद से संचालित विद्यालयों में भी वर्चुअल क्लास लेने का आदेश जारी किया है। ऑनलाइन क्लास लेने के लिए मोबाइल, टेबलेट या लैपटॉप की आवश्यकता नेट कनेक्टिविटी के साथ छात्रों एवं शिक्षकों दोनों के पास होना आवश्यक होगा। इसका छात्रों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर बिना विचार किए हुए आदेश जारी कर दिया गया है।

यह कहना है उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ चंदेल गुट के प्रदेशीय मंत्री एवं प्रवक्‍ता व प्रत्याशी सदस्य विधान परिषद लखनऊ खंड शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र डॉ महेन्‍द्र नाथ राय का। डॉ राय ने एक बयान में कहा कि  वर्चुअल क्लास के लिए आर्थिक दशा के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक दशा पर भी विचार करना आवश्यक था। कई मनोवैज्ञानिक शोधों द्वारा बताया गया है कि अगर बच्चे 5 से 6 घंटे मोबाइल देखेंगे तो उन पर कई मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों का असर हो सकता है। उनमें आत्म संयम की कमी, जिज्ञासा में कमी, भावनात्मक स्थिरिता न होना, ध्यान केंद्रित ना कर पाना, आत्मकेंद्रित होना, सामाजिक अलगाव आदि समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा आंखों पर भी खराब प्रभाव पड़ सकता है, आंखों में लालिमा, जलन, पानी आना, सूखापन के अलावा उनकी दृष्टि भी कमजोर पड़ सकती है।

डॉ राय कहते हैं कि इसके अलावा मोबाइल में इंटरनेट से अन्य कई समस्याएं और भी उत्पन्न होती हैं। कई बार शोधों में पाया गया है कि इंटरनेट के प्रयोग से कई गलत आदतें बच्चों व किशोरों में उत्पन्न हो सकती है। छात्रों को जब मोबाइल मिल जाएंगे, वह भी इंटरनेट सुविधायुक्त तब वह अभिभावक से चोरी छुपे गलत साइटें भी खोल सकते है, आगे चलकर वह न केवल अपने लिए बल्कि परिवार व समाज के लिए भी संकट पैदा कर सकते हैं। निर्भया केस में भी देखा गया है कि जो भी अपराधी थे उस में नाबालिग भी थे और उनके अंदर जो मानसिक दूषिता आई थी वह मोबाइल के कारण ही आई थी, इसी प्रकार अभी ब्लू व्हेल गेम के कारण लोग आत्महत्या करने लगे थे जिसके कारण पूरे विश्व में उसे प्रतिबंधित करना पड़ा। इस तरह के दुष्प्रभाव बच्चों पर आसानी से देखने को मिल सकता है। एक बार जब छात्रों को मोबाइल की लत लग जाएगी तब उसको छुड़ाना आसान नहीं होता फिर वह चोरी-छुपे नेट का प्रयोग करेंगे और इसके लिए चोरी करना भी सीखेंगे।

डॉ राय का कहना है कि इस तरह वर्चुअल क्लास से छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। अभी बच्चों के अंदर गलत और सही का फैसला करने की क्षमता नहीं होती है वह जल्दी गलत आदतों के शिकार हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार गरीब मजदूर और किसानों को आर्थिक मदद कर रही है। 1000 रुपये पाने वाले मजदूर एवं 2000 रुपये पाने वाले किसान के बच्चे ही उत्तर प्रदेश शिक्षा परिषद के विद्यालयों में पढ़ते हैं इस महामारी में जब उनको खर्च चलाने के लिए पैसे नहीं है तब वह कैसे अपने बच्चों को एंड्रायड फोन खरीद कर दे पाएंगे? इसके अलावा कम से कम 200 रुपये का महीने में नेट पैक डलवाने का पैसा भी उनके पास कहां से आयेगा? क्या सरकार ने इस पर भी विचार किया है?

डॉ राय का कहना है कि अभी नया सत्र शुरू हुआ है, अभी इतना लेट नहीं हुआ है कि विद्यालय खुलने पर एक्स्ट्रा क्लास लेकर कोर्स पूरा न किया जा सके। इसलिए कान्वेंट विद्यालयों का अंधानुकरण करने की जगह ग्रामीण परिवेश में स्थित विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक दशा का अध्ययन करके विशेषज्ञों की सलाह लेकर के ही इस तरह का निर्णय लेना चाहिए। कहीं  छात्रों का भविष्य सुधारने की जगह हम उनके भविष्य को बिगाड़ने का वाहक ना बन जाए। इसलिए वर्चुअल क्लास के निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना आवश्यक है।