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विश्व में झंडा गाड़ने वाली भारतीय डीसीईआर तकनीक से केजीएमयू में हुई सीवी जंक्शन की लाइव सर्जरी

-सीवी जंक्शन में होने वाले दबाव के उपचार के लिए पहले करनी पड़ती थीं दो सर्जरी, अब सिर्फ एक

-न्यूरो सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस पर प्रोफेसर पी शरद चंद्रा ने प्रस्तुत किया दवे न्यूटन ओरेशन

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के न्यूरो सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस के अवसर पर एम्स नयी दिल्ली के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ पी शरद चंद्रा ने दवे न्यूटन ओरेशन प्रस्तुत किया। इस मौके पर उन्होंने क्रेनियो वर्टेब्रल (सीवी) जंक्शन की सर्जरी अपने शोध में इजाद डीसीईआर तकनीक से करते हुए लाइव वर्कशॉप भी प्रस्तुत किया। नयी तकनीक वाली इस भारतीय सर्जरी को विश्व भर में मान्यता मिल चुकी है। इस बीमारी के लिए पारम्परिक तरीके से होने वाली दो सर्जरी के स्थान पर इस नयी टेकि्नक में सिर्फ एक सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है।

यह जानकारी समारोह के दौरान आयोजित पत्रकार वार्ता में इस नयी सर्जरी के जनक डॉ शरद चंद्रा और केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो बीके ओझा ने दी। प्रो ओझा ने बताया कि न्यूरो की बीमारी क्रेनियो वर्टेब्रल (सीवी) जंक्शन की लाइव सर्जरी से उपसि्थत सर्जन्स ने बहुंत लाभ उठाया। उन्होंने बताया कि सर्जरी के दौरान डॉ शरद चंद्रा ने सर्जरी के बारे में जहां उपसि्थत लोगों को इसकी जानकारी दी, वहीं उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देकर उन्हें इस प्रकार की जोखिम वाली सर्जरी सीखने में मदद की। उन्होंने बताया कि सिर की हड्डी से बनी खोपड़ी यानी क्रेनियम और उसके नीचे स्पाइनल कॉर्ड को सुरक्षित करने वाला वर्टिब्रल कॉलम जहां पर जुड़ते हैं उसे एरिया को क्रेनियो वर्टेब्रल जंक्शन कहते हैं। भारत में क्रेनियो वर्टिब्रल जंक्शन की गड़बड़ी प्राय: देखने को मिल जाती है। क्रेनियो वर्टेब्रल जंक्शन की गड़बड़ी को दूर करने के लिए बहुत तरह के ऑपरेशन बताएं गए हैं परंतु इन विभिन्न प्रकार के ऑपरेशन में कई बार बहुत संदेह उत्पन्न होता है। डीसीईआर एक प्रकार की बहुत ही परिष्कृत तकनीक है जिसे पूरे विश्व भर में स्वीकृत किया जा चुका है।

आम स्पाइन सर्जरी से कई गुना ज्यादा क्रिटिकल

प्रो शरद चंद्रा ने बताया कि रीढ़ की हड्डी को गर्दन के पास जोड़ने वाली जगह सीवी जंक्शन बहुत क्रिटिकल जंक्शन होता है जिस पर 4 से 5 किलो के सिर का बोझ आता है, यहां पर कई प्रकार से लगातार मूवमेंट होता रहता है। इस जंक्शन पर पड़ने वाले दबाव से ही हाथ-पैर की कमजोरी के साथ बीमारी शुरू हो जाती है। उन्होंने बताया कि सीवी सर्जरी आम स्पाइन सर्जरी से कई गुना ज्यादा क्रिटिकल होती है, हल्की सी चूक मरीज के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है। उन्होंने बताया कि पारम्परिक तरीके से ऐसी सर्जरी करने के लिए पहले मुंह के रास्ते से लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की जाती है तथा बाद में गर्दन के पीछे से ओपन सर्जरी कर उपकरण फिट किये जाते हैं, लेकिन इस पारम्परिक सर्जरी की कुछ दिक्कतें भ्री हैं जैसे इसमें दो ऑपरेशन होने के कारण 9-10 घंटे का लम्बा समय लग जाता है, एक के बाद एक दो ऑपरेशन होने की वजह से एक तरह से यह मेेजर ऑपरेशन हो जाता है, तथा एक-दो सप्ताह तक मरीज को खाना भी नली से देना पड़ता है। ब्लड लॉस होने का डर भी रहता है।

उन्होंने बताया कि इन सभी परेशानियों को कम करने के लिए हमारी टीम ने इस सर्जरी के लिए एक नयी टेकि्नक पर सफल शोध किया है जिसमें गर्दन के पीछे से ही सर्जरी कर दी जाती है। आगे मुंह से सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत में की गयी इस रिसर्च को विश्व में स्वीकार कर लिया गया है। अज हमने यहां भी इसी टेकि्नक से सर्जरी की है।

इस समस्या के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह समस्या 15-16 साल की आयु में हो जाती है, ​जिसमें सीवी जंक्शन पर दबाव पड़ने से हाथ-पांव में कमजोरी आने लगती है और अगर ट्रीटमेंट नहीं हुआ तो बच्चा बिस्तर पर लेट जाता है। मूत्र से नियंत्रण समाप्त हो जाता है, सांस लेने में दिक्कत आने लगती है, और ट्रीटमेंट के अभाव में मरीज की मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी के कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि 80 प्रतिशत केसों में यह जन्म के समय से ही होती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यह आनुवांशिक बीमारी है। प्रेगनेंसी के दौरान ही दूसरे बहुत से कारणों से यह होती है।

डॉ वीएस दवे और डॉ जीबी न्यूटन के प्रयत्न आत्मसात करने योग्य

स्थापना दिवस के बारे में जानकारी देते हुए डॉ बीके ओझा ने बताया कि अत्यन्त खुशी के साथ मैं शेयर करना चाहता हूं कि केजीएमयू में न्यूरो सर्जरी विभाग अपना स्थापना दिवस मना रहा है, उन्होंने बताया कि केजीएमयू में न्यूरो सर्जरी की शुरुआत तो 1961 में हो गयी थी लेकिन इसे पृथक विभाग के रूप में दर्जा 1994 में मिला। इस तरह से यह 29वां स्थापना दिवस है। इसमें यहां के पुरातन छात्रों को आमंत्रित किया जाता है। उन्होंने बताया कि डॉक्टर वीएस दवे और डॉक्टर जीबी न्यूटन ने केजीएमयू के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के वर्क कल्चर में ऐसा परिवर्तन करने का सुझाव दिया जिसे फॉलो करने की वजह से आज हम अत्यंत संतुष्ट है। डॉ दवे और डॉ न्यूटन, दोनों लोगों की तरफ से न्यूरो सर्जरी विभाग को उत्थान पर ले जाने के लिए जो भी प्रयत्न किए गए वह पूरी तरह से आत्मसात करने योग्य हैं। इसीलिए प्रतिवर्ष दवे न्यूटन ओरेशन का आयोजन किया जाता है।

आज केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के एनुअल फाऊंडेशन डे के उपलक्ष में एम्स नई दिल्ली के प्रोफेसर पी शरद चंद्रा ने क्रेनियो वर्टेब्रल जंक्शन की गड़बड़ी से होने वाले लक्षणों को ठीक करने के लिए अपनी नई तकनीक डी सी ई आर का डेमोंसट्रेशन हम सभी लोगों के लिए किया और यह हम सभी लोगों के लिए अत्यंत सुखद है। डीसी ईआर तकनीक और उसके उपकरण को विकसित करने में डॉक्टर पी शरत चंद्रा ने बहुत मेहनत की है। इसे विकसित करने में आईआईटी और डीबीटी संस्थाओं का सहयोग लिया गया है।

अपनी इस खोज के लिए डॉक्टर पी शरद चंद्र विश्व भर में मशहूर है और उनके द्वारा इस ऑपरेशन का प्रशिक्षण हम लोगों के लिए बहुत ही लाभदायक है। उन्होंने बताया कि प्रो शरद चंद्रा के अतिरिक्त न्यूरो सर्जरी फाऊंडेशन डे के दूसरे दिन एनाटॉमी विभाग की डॉक्टर सबा, रेडियो डायग्नोसिस विभाग के डॉक्टर अनित परिहार, एनेस्थीसिया विभाग की डॉक्टर हेमलता एवं न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टर रजत वर्मा ने भी अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये।

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