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अनेक शारीरिक रोगों का सीधा सम्बन्ध है मानसिक सोच से, होम्योपैथी में इसका सटीक इलाज

-नैनीताल में जुटे विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक साक्ष्य के साथ पेश किये त्वचा और गर्भाशय में गांठ के सफल उपचार के केस


-आयुष मेडिकल एसोसिएशन के सेमिनार में डॉ गौरी शंकर, डॉ निशांत श्रीवास्तव व डॉ गौरांग गुप्ता को होम्यो गौरव अवार्ड

सेहत टाइम्स

लखनऊ। रोग को जब तक जड़ से नहीं समाप्‍त किया जायेगा तब‍ तक वह बार-बार उभर कर परेशान करता रहेगा। होम्‍योपैथिक दवाओं से इलाज में भी यही बात अति महत्‍वपूर्ण है कि रोग का कारण क्‍या है क्‍योंकि ज्‍यादातर शारीरिक रोग के कारण भी मन यानी माइंड में मिलते हैं, इसलिए जब मन:स्थिति को केंद्र में रखकर दवाओं का चुनाव किया जाता है तो रोग जड़ से समाप्‍त हो जाता है।

4 एवं 5 नवम्बर को नैनीताल में होटल विक्रम विंटेज इन में आयुष मेडिकल एसोसिएशन द्वारा आयोजित नेशनल होम्योपैथिक साइंटिफिक सेमिनार में उपस्थित वक्ताओं ने मनोस्थिति के कारण होने वाले शारीरिक रोगों पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये। सेमिनार में लखनऊ के तीन डॉक्टर्स डॉ गौरी शंकर, डॉ निशांत श्रीवास्तव और डॉ गौरांग गुप्ता ने व्याख्यान प्रस्तुत किये। डॉ निशांत श्रीवास्तव ने चर्म रोगों पर और डॉ गौरांग गुप्ता ने गर्भाशय में गांठ पर केसेस प्रेजेंट किये जबकि डॉ गौरी शंकर ने दवा का चुनाव कैसे करें, बीमारी को किस प्रकार पहचानें, के बारे में विस्तार से बताया। सेमिनार में तीनों चिकित्सकों को होम्यो गौरव अवार्ड से सम्मानित किया गया।

डॉ निशांत श्रीवास्तव ने चर्म रोग होने के कारणों में मन की स्थिति की अहम् भूमिका बताते हुए सोरियासिस, विटिलीगो के केस प्रस्तुत किये उन्होंने बताया कि इन रोगों के उपचार के लिए मन की स्थिति के अनुसार दवाओं का चुनाव किया गया, जिसके परिणाम सकारात्मक रहे। डॉ गौरांग गुप्ता ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि महिलाओं में होने वाला यूट्राइन फाइब्रॉयड यानी गर्भाशय में गांठ रोग भी ऐसा ही है, जिसका कारण मन:स्थिति है। उन्होंने बताया कि उनके सेंटर गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जी सी सी एच आर) में हुई रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि गांठ छोटी हो या बड़ी, एक हो या दो, बिना सर्जरी कराये होम्‍योपैथी में स्‍थायी इलाज मौजूद है।

डॉ गौरांग ने बताया कि जीसीसीएचआर पर हुई रिसर्च बताती है कि यूट्राइन फाइब्रॉयड का कारण मन:स्थिति है। इच्‍छाएं-आकांक्षाएं पूरी न होना, डर, भ्रम, घबराहट, दुखद घटना, किसी को खोने का गम, उपेक्षा का शिकार, हादसा, विभिन्‍न प्रकार के स्‍वप्‍न आना जैसे अनेक बिन्‍दु हैं जिनके बारे में मरीज की हिस्‍ट्री लेते समय जानकारी ली गयी थी। उन्‍होंने बताया कि किन प्रकार की स्थितियां मन को प्रभावित करती हैं, जैसे सपने हमारे अनकॉन्शियस माइंड को, भ्रम सबकॉन्शियस माइंड को, डर कॉन्शियस माइंड को तथा व्‍यक्तित्‍व इनेट माइंड व अक्‍वॉयर्ड माइंड को प्रभावित करता है। मन प्रभावित होने पर दिमाग में बनने वाले हॉर्मोन्स का संतुलन बिगड़ जाता है, जिनका प्रभाव अंगों पर पड़ता है। उससे प्रभावित अंग में बीमारी बन जाती है जैसे ओवरी में सिस्ट, यूट्रेस में फाईब्रॉइड इत्यादि।

उन्होंने बताया कि होम्‍योपैथी में मन की स्थितियों के हिसाब से दवाएं मौजूद हैं। मरीज की हिस्‍ट्री के हिसाब से दवा का चुनाव किया जाता हे। क्‍लासिकल होम्‍योपैथी का सिद्धांत ही यही है कि इसमें इलाज मर्ज का नहीं, मरीज का होता है, क्‍योंकि जब मरीज ठीक होगा तो मर्ज भी ठीक हो जायेगा। उन्‍होंने जीसीसीएचआर में हुई यूट्राइन फाइब्रॉयड पर स्‍टडी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 630 मरीजों पर हुई स्‍टडी के अनुसार इनमें 415 मरीजों को पूर्ण अथवा आंशिक लाभ हुआ जबकि 215 मरीजों को फायदा नहीं हुआ। इस शोध का प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल्‍स एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी तथा द होम्‍योपैथिक हेरिटेज में हो चुका है।

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