-निजी चिकित्सा केंद्रों को सील करने के आदेश के बाद से असमंजस की स्थिति में हैं चिकित्सक
-इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश ऑर्थोपैडिक एसोसिएशन ने कहा, स्पष्ट गाइडलाइन दे सरकार

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोरोना वायरस के सामने दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए बहुत दिक्कतें आ रही हैं। खासकर ऐसी बीमारियों में जिनमें किसी प्रकार की जांच की आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार की बीमारियों के साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी दिक्कतें आ रही है उनका अल्ट्रासाउंड नहीं हो पा रहा है। चिकित्सा व्यवस्था में निजी क्षेत्र के अस्पतालों, क्लीनिक के साथ ही पैथोलॉजी, अल्ट्रासाउंड, एक्सरे जैसी जांच के केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सोमवार को मेडवेल हॉस्पिटल, चरक डायग्नोस्टिक सेंटर को सील करने की कार्रवाई के बाद से इन सेवाओं में परेशानियां और बढ़ गयी हैं। इस प्रकरण पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ की अध्यक्ष डॉ रमा श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश ऑर्थोपैडिक एसोसिएशन के सचिव डॉ अनूप अग्रवाल ने चिंता जतायी है।
डॉ रमा श्रीवास्तव ने कहा कि चिकित्सा प्रदान कर रहे संस्थानों में दो तरह के पैमाने लागू करना कहां तक उचित है। उन्होंने कहा कि संक्रमित मरीज के भर्ती होने के चलते ट्रॉमा सेंटर में जिस प्रकार से दोनों विभागों को विसंक्रमित करने की कार्रवाई की गयी उसी प्रकार से मेडवेल अस्पताल और चरक डायग्नोस्टिक सेंटर को भी सेनिटाइज कराने की बात करनी थी, जिस तरह ट्रॉमा सेंटर को नहीं सील किया गया उसी तरह से इन दोनों निजी संस्थानों को भी सील नहीं किया जाना चाहिये था। उन्होंने कहा कि चाहे ट्रॉमा सेंटर हो या निजी क्षेत्र के ये दोनों संस्थान, किसी को यह पता नहीं था कि मरीज कोरोना पॉजिटिव है, इसके साथ ही सभी का उद्देश्य गंभीर स्थिति वाले उस मरीज को शीघ्र उपचार देने का था, ऐसे में उनकी मंशा पर सवाल नहीं उठाये जा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आईएमए की प्रतिनिधि होने के कारण मेरे पास कल से अनेक चिकित्सकों के फोन आये हैं, इस कार्रवाई के बाद से निजी क्षेत्रों के डायग्नोस्टिक सेंटर्स, पैथोलॉजी और ज्यादा डर गये हैं। उन्होंने कहा कि संकट की इस स्थिति में कोरोना के अलावा अन्य गंभीर स्वास्थ्य मुद्दे हैं, बीमारियों का उपचार, बीमारी का निदान हमारी जिम्मेदारी के साथ-साथ हमारा कर्तव्य भी है। उन्होंने कहा कि यहां तक आलम यह है कि कई रेडियोलॉजिस्ट अल्ट्रासाउंड नहीं कर रहे हैं जिससे कि गर्भवती महिलाओं को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में निजी अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटर को सीलिंग और बंद करने के आदेश से स्थिति और मुश्किल हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि इस मामले में मेरा सुझाव यह है कि केंद्रों को निजी स्वास्थ्य देखभाल सुविधा और स्वास्थ्य प्राधिकरण की मदद से साफ किया जाना चाहिए था। स्टाफ की जांच की जानी चाहिए और उन्हें क्वारेंटाइन किया जाना चाहिये लेकिन नैदानिक केंद्र और अस्पताल को बंद करने और सील करने के आदेश ने उन केंद्रों को नकारात्मक संदेश दिया है जो इस परीक्षण के समय में आपातकालीन सेवाएं दे रहे हैं।
डॉ अनूप अग्रवाल का कहना है कि इमरजेंसी में आये हुए मरीज को देखने से पहले हम लोग इतना जरूर करते हैं कि उससे विदेश से आने या कोरोना पॉजिटिव के सम्पर्क में रहने संबंधी सरकार द्वारा निर्धारित की गयी गाइडलाइंस के अनुसार उसकी हिस्ट्री पूछ लेते हैं, लेकिन मान लीजिये किसी से इसकी जानकारी छिपा ली, बाद में वह पॉजिटिव निकल आया तो ऐसे परिस्थिति में हम लोग क्या कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा मानना यह है कि ऐसी स्थिति में सम्बन्धित चिकित्सा केंद्र को सेनिटाइज कराना और वहां के लोगों को क्वारेंटाइन करना ही उचित फैसला होगा, न कि केंद्र बंद करना, क्योंकि सेंटर बंद करने से भी मरीजों का ही नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिये कि इस बारे में स्पष्ट गाइडलाइंस जारी करे।
