-पेरीअपाइकल पेरियोडोंटाइटिस रोग की स्थिति के बारे में आईएफईए के महासचिव ने दी जानकारी
-विश्व एंडोडॉन्टिक दिवस पर केजीएमयू में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन, इंटरनेशनल स्पीकर्स का ऑनलाइन सम्बोधन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। भारत के प्रोफेसर डॉ गोपी कृष्ण जो इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एंडोडॉन्टिक एसोसिएशन (आईएफईए) के महासचिव भी है, के अनुसार दुनिया भर मे आधी वयस्क आबादी का कम से कम एक दांत पेरीअपाइकल पेरियोडोंटाइटिस (एपी) से पीड़ित है। ये चौंकाने वाला निष्कर्ष भारत सहित 40 से अधिक देशों मे किये गये एक ग्लोबल अध्ययन से पिछले साल इंटरनेशनल एंडोडॉन्टिक जर्नल मे प्रकाशित हुआ है।
विश्वव्यापी दंत चिकित्सक समुदाय 16 अक्टूबर को विश्व एंडोडॉन्टिक दिवस के रूप मे मना रहा है, ताकि एंडोडॉन्टिक रोगों से उत्पन्न दंत स्वास्थ्य चुनौतियों के बारे मे जन जागरूकता बढ़ाई जा सके और जनता को दंत चिकित्सकों और एंडोडॉन्टिस्टों द्वारा उठाए गए विभिन्न निवारक और चिकित्सीय उपायों के बारे मे समझाया जा सके। इसी क्रम में यहां किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के दंत संकाय में कार्यक्रम आयोजित किया गया।
डॉ गोपी कृष्ण ने अपने मैसेज में आगे कहा कि भारत में हमारी टीम द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि भारत की लगभग दो-तिहाई (65 प्रतिशत) वयस्क आबादी मे कम से कम एक दांत पेरीअपाइकल पेरियोडोंटाइटिस से पीड़ित है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस बीमारी को कम करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान और प्रयास की आवश्यकता है ताकि हर भारतीय इस बीमारी तथा इसके दुष्प्रभाव से अवगत हो सके।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एंडोडॉन्टिक एसोसिएशन और इंडियन एंडोडॉन्टिक सोसाइटी विश्व एंडोडॉन्टिक दिवस अभियान के माध्यम से इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक विश्वव्यापी अभियान चला रहे हैं।
आईईएस के अध्यक्ष प्रो0 संजय मिगलानी के अनुसार इस धीरे धीरे बढ़ने वाली दांतों की महामारी के बारे में सार्वजनिक जागरूकता के विस्तार के लिए 16 अक्टूबर को विभिन्न कॉलेजों और संस्थानों द्वारा एक समन्वित राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम किया जा रहा है। प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रोफेसर डॉ एपी टिक्कू ने कहा कि प्राकृतिक दांतों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है और समय-समय पर दांतों की जांच और अच्छी मौखिक स्वच्छता बनाए रखना मौखिक स्वास्थ्य को बनाए रखने का सबसे सरल उपाय है। उन्होंने आगे कहा कि भारत मे मौखिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता बनाने मे सामूहिक प्रयास की आवश्यकता को उजागर करने के लिए विश्व एंडोडॉन्टिक दिवस एक महत्वपूर्ण दिन है।
इस अवसर पर कंजर्वेटिव डेंटिस्ट्री और एंडोडॉन्टिक्स विभाग केजीएमयू के प्रो रमेश भारती, जो कि आईईएस कार्यकारणी के भी सदस्य हैं, ने रेजिडेंट्स और स्नातक छात्रों द्वारा नुक्कड़ नाटक, केस प्रेजेंटेशन, रंगोली और पोस्टर प्रतियोगिताओं जैसी गतिविधियों का जनमानस को दांतों की बीमारियों के बारे मे जागरूक करने के लिए आयोजन किया। डॉ रमेश भारती ने बताया कि दांतों की ठीक से सफाई न होने के कारण कीड़ा लग जाता है, जब दर्द होता है तो आमतौर पर लोग दर्द निवारक दवा ले लेते हैं जिससे तात्कालिक आराम मिल जाता है, जबकि कीड़ा अपनी जगह ही बना रहता है और दांतों को नुकसान पहुंचाता रहता है, धीरे-धीरे यह कीड़ा दांतों की जड़ तक नुकसान पहुंचा देता है, इसके बाद दंत चिकित्सक और एंडोडॉन्टिस्ट आरसीटी (रूट कैनाल थेरेपी) करते हैं, आरसीटी से हर साल लाखों दांतों को बचाया जाता है।
उन्होंने बताया कि दंत क्षय सबसे आम दंत रोगों में से एक है, जो बच्चों और वयस्कों दोनों को प्रभावित करता है, इसका समयबद्ध इलाज किया जाना चाहिए और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी रोकथाम के समुचित प्रयास किये जाने चाहिए। यह एक खामोश बीमारी है जो बढ़कर बेहद दर्दनाक स्थिति में बदल सकती है।
आईएफईए के डॉ. जेम्स एल गटमैन ने डेंटिस्ट्री की हिस्ट्री के बारे में ऑनलाइन लेक्चर लिया और बताया कि आज कल डेंटिस्ट्री बहुत एडवांस हो गई है और इलाज बहुत आसान हो गया है। आईएफईए के एक अन्य स्पीकर प्रो लार्स एंडरसन ने भी ऑनलाइन बताया कि एक्सीडेंट में दांत फ्रैक्चर होने के बाद भी उनका इलाज किया जा सकता है, उन्होंने डेंटिस्ट से अपील की कि हमें यथासंभव प्राकृतिक दांत बचाना चाहिए।
डेन्टल कांउसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ0 अनिल कोहली ने कहा दांतों के सड़ने से भोजन को ठीक से न चबाना और अपच की समस्या होती है, जिसका सीधा संबंध जीवन की गुणवत्ता में कमी से होता है।
इस पूरे कार्यक्रम के दौरान डॉ प्रोमिला वर्मा, डॉ राकेश कुमार यादव, डॉ रमेश भारती, डॉ रिद्म, डॉ विजय कुमार शाक्या, डॉ प्रज्ञा पाण्डे, डॉ निशी सिंह के साथ ही पीजी स्टूडेंट्स ने भी विभिन्न गतिविधियों के प्रबंधन मे सक्रिय रूप से भाग लिया। जागरूकता के लिए स्टूडेंट्स ने पोस्टर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिन्हें प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार दिये गये।