Sunday , June 22 2025

दुनिया में पैर पसारती जंग को शांत करने की ताकत रखता है योग

11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून 2025) पर विशेष लेख

डॉ सूर्य कान्त

भगवान शिव को आदि योगी और आदि गुरु की संज्ञा दी गई है क्योंकि भगवान शिव ही योग विज्ञान के प्रथम गुरु हैं। उन्होंने योग की सबसे पहली शिक्षा अपनी पत्नी देवी पार्वती को दी, तत्पश्चात लोगों की भलाई के लिए यह योग ज्ञान प्राचीन ऋषियों को दिया, जिन्होंने इस ज्ञान को आगे बढ़ाया। महर्षि हिरण्यगर्भ उन ऋषियों में से एक हैं, जिन्हें योग परंपरा का मूल प्रवर्तक माना जाता है।

योग शब्द संस्कृत की ‘युज’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – बाँधना, युक्त करना, जोड़ना, ध्यान को नियंत्रित या केंद्रित करना। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित भगवद्गीता के छठे अध्याय में, जो कि योगदर्शन का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रमाण है, श्रीकृष्ण अर्जुन को योग का अर्थ वेदना और दुःख से मुक्ति बताते हैं

–असंयतात्मना योगो दुष्प्राप्य इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः॥

भगवद्गीता कर्म योग पर भी आधारित है, जिसके अनुसार – ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ अर्थात् कर्म की कुशलता ही योग है। सम्पूर्ण भगवद्गीता में योगतत्त्व समाहित हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 1947 में स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया था –“दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना ही स्वास्थ्य है।” समग्र स्वास्थ्य के अंतर्गत शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य भी सम्मिलित हैं। आज जब दुनियां में रूस-यूक्रेन, इजराइल-हमास, इजराइल-ईरान जैसे भयंकर युद्ध चल रहे हैं, ऐसे में योग शांति स्थापित करने के लिए बहुत उपयोगी है, जो लोग योग का नियमित अभ्यास करते हैं, उनके मन में शांति रहती है, योगाभ्यास करने वालों का मन विचलित नहीं होता, उनके मन में करुणा, दया और क्षमा समाहित होती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से जब संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया, तब भारत की प्राचीन जीवन पद्धति योग ने वैश्विक पहचान हासिल की। यह निर्णय न केवल भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता का प्रतीक बना, बल्कि योग को एक वैश्विक स्वास्थ्य आंदोलन में परिवर्तित कर गया। वर्ष 2025 में 11वाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग” की थीम के साथ मनाया जा रहा है, जो यह संदेश देता है कि योग केवल व्यक्ति का नहीं, पूरी मानवता और पृथ्वी के स्वास्थ्य का माध्यम है।

विश्व में वर्ष 2008 के करीब डेढ़ करोड़ लोग योग करते थे, लेकिन 2016 में यह संख्या बढ़कर 3.67 करोड़ पर पहुंच गई थी और वर्तमान में यह 10 करोड़ के आस-पास है। योग अब स्वस्थ रहने के प्रभावी उपाय के साथ-साथ कारोबार भी है। ब्रिटेन में पहला योग स्कूल भारत में ब्रिटिश राज के एक अधिकारी रह चुके सर पास ड्युक्स ने 1949 में एपिंग में खोला था। विश्व की श्रेष्ठ नौकरियों की सूची में योग शिक्षक-प्रशिक्षक भी शामिल हैं। आज तमाम देशों में योग प्रशिक्षकों के लिए नौकरी के मौके बढ़ रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में योग सीखने वालों की संख्या करीब 25 करोड़ है। अमेरिका में एक अनुभवी योग टीचर की औसतन सालाना कमाई 42 हजार डालर से अधिक होती है। भारत में योग का बाजार 490 अरब रुपये का हो चुका है। एक शोध के अनुसार यह जल्द ही 875 अरब डालर तक पहुंच सकता है। अपने देश में ही योग ट्रेनिंग का कारोबार करीब तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है। विश्व में योग परिधानों का बाजार करीब 31.1 अरब डालर का और योग मैट का कारोबार 13 अरब डालर का है। योग में वेलनेस टूरिज्म, योग रिट्रीट आदि को 915 अरब डालर का कारोबार है। इसके अलावा योग को लेकर दुनिया भर में तरह-तरह के एप विकसित कर लिए गए हैं, जिनसे अच्छी कमाई हो रही है। योग की बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित होकर संस्कृत और हिंदी सीखने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। कुल मिलाकर योग स्वास्थ्य के साथ-साथ पूंजी निर्माण का भी साधन बन चुका है।

1990 के प्रारंभ में पश्चिमी देशों में हुए वैज्ञानिक शोधों से यह निकलकर आया था कि आधुनिक जीवनशैली के कारण होने वाली अनेक बीमारियों के प्रभावी उपचार में योग अचूक है। लेखक ने योग से होने वाले स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए रोगियों के हित पर अस्थमा से पीड़ित रोगियों हेतु योग से होने वाले लाभों पर शोध किया। साथ ही लेखक द्वारा योग के क्षेत्र में किए गए अन्य कार्यों योग व नेचुरोपैथी के क्षेत्र में रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, केजीएमयू लखनऊ अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विभाग में अब तक योग से संबंधित विभिन्न शोध कार्य हो चुके हैं व 25 शोध पत्र राष्ट्रीय वह अंतरराष्ट्रीय जनरल में प्रकाशित हो चुके हैं। लेखक के दिशा निर्देशन में जो अनुसंधान कार्य किया गया। वह विश्व का प्रथम अनुसंधान कार्य था। इस शोध को प्रख्यात अवार्ड चार्ल्स रिके प्राइज़ भी इंडियन कॉलेज ऑफ़ एलर्जी अस्थमा एंड इम्यूनोलॉजी द्वारा प्रदान किया जा चुका है। वर्तमान में विभाग में जलनेति पर अनुसंधान कार्य किया जा रहा है, जो इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च द्वारा अनुदानित है।

आधुनिक जीवनशैली ने जहाँ हमें आराम प्रदान किया है, वहीं अनेक बीमारियाँ भी दी हैं। आधुनिक युग में मानव जीवन दुःख व तनाव से परिपूर्ण है, अतः किसी भी व्यक्ति को पूर्णतः स्वस्थ कहना अत्यंत कठिन है। मोटापा, अनिद्रा, कब्ज, चिंता, उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) और श्वसन संबंधी रोग आज के समय में प्रमुख बीमारियाँ बन चुकी हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में जो बीमारियाँ सामान्यतः 40-45 वर्ष की आयु के बाद होती थीं, वे अब 25-30 वर्ष की उम्र में ही देखी जा रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप, 10 करोड़ मधुमेह (डायबिटीज), 10 करोड़ लोग सांस की बीमारी से ग्रसित हैं। कुछ लोग तो एक साथ अनेक बीमारियों से ग्रस्त हैं। इसका मूल कारण है – प्रकृति से दूरी। योग जीवनशैली में सुधार लाने का एकमात्र साधन है, जिससे सभी प्रकार की व्याधियों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है। आसन, प्राणायाम, ध्यान और अन्य शुद्धिकरण क्रियाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाती हैं और रोगों से लड़ने में शरीर को सक्षम करती हैं। योग चिकित्सा तीन रूपों में सहायक है – प्रमो‍टिव, प्रिवेन्टिव और क्यूरेटिव। योग इन तीनों में समान रूप से समन्वय बनाता है।

कई शोधों से यह निष्कर्ष निकल चुका है कि यदि योग को सह-चिकित्सा के रूप में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ सम्मिलित कर लिया जाए, तो कई रोगों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है। इससे व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता में सुधार होता है और वह अपने कार्यों को सुचारु रूप से करने में सक्षम होता है। यदि योग को जीवनशैली का एक अंग बना लिया जाए तो व्यक्ति काफी हद तक रोगमुक्त रह सकता है और एक स्वस्थ शरीर व स्वस्थ भारत की परिकल्पना साकार हो सकती है।

(लेखक डॉ सूर्य कान्त किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.