-सावरकर जयंती पर आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता वीर चक्र विजेता रिटायर्ड कर्नल टीपी त्यागी ने समां बांधा
-मुख्य अतिथि स्वांत रंजन ने हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए सावरकर के प्रयासों सहित उनके जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण बातें बतायीं
-कार्यक्रम के आयोजक सावरकर विचार मंच के संयोजक वैद्य अजय दत्त शर्मा ने की गोष्ठी की अध्यक्षता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। ‘इस सच को स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिये कि वीर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, उन्होंने माफी इसलिए नहीं मांगी थी कि वह डर गये थे, माफी मांगना उनकी रणनीति का हिस्सा था, क्योंकि दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा कर दिया गया था लेकिन उनकी रिहाई अंग्रेजी हुकूमत नहीं कर रही थी। उनका मानना था कि जो आजादी की लड़ाई वह लड़ रहे थे, उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए कुर्बानी की नहीं, जिन्दा रहकर अंग्रेजों से लड़ने की जरूरत थी। कहा भी जाता है कि Live to fight tomorrow’।
यह बात वीर सावरकर की जयंती पर 28 मई को यहां गोमती नगर स्थित इंडियन इंडस्टीज एसोसिएशन भवन के सभागार में सावरकर विचार मंच द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में मुख्य वक्ता रक्षा विशेषज्ञ एवं प्रखर राष्ट्रवादी विचारक वीर चक्र विजेता कर्नल (सेवानिवृत्त) टीपी त्यागी ने कही। उन्होंने कहा कि लड़ाई में जोश और होश दोनों होना चाहिये, सिर्फ जोश से काम नहीं चलता है, जोश में आकर जान देने से क्या हासिल होगा। हमें सहनशीलता सिखायी जाती है, यह अच्छी चीज है लेकिन यह सहनशीलता घर में, परिवार में, समाज में तो ठीक है लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के सवाल पर सहनशीलता ठीक नहीं है। व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र में फर्क होना चाहिये। उन्होंने कहा कि सावरकर अत्यन्त वीर थे, अंग्रेजों ने लिखा था कि हिन्दुस्तान ने जो सबसे खतरनाक आदमी पैदा किया है उसका नाम वीर दामोदर सावरकर है।
कर्नल त्यागी ने कहा कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले रास बिहारी बोस जापान चले गये थे वहीं पर बस कर उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई के लिए काम शुरू किया, उन्होंने ही आजाद हिन्द फौज की स्थापना की थी। वीर सावरकर रास बिहारी बोस से परिचित थे। रास बिहारी बोस के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस को वीर सावरकर ने ही भेजा था, सुभाष चंद्र बोस जब रास बिहारी से सिंगापुर में मिले तो रास बिहारी बोस ने कहा था कि हिन्दुस्तान में जो भी युवा हैं, जो भी धवल चरित्र हैं, जो भी पूजने योग्य है, आज मैं आजाद हिन्द फौज की कमान उसके हाथ में दे रहा हूं, यह कहते हुए उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के हाथ में आजाद हिन्द फौज की कमान सौंप दी।
कुछ दिन ‘जयहिन्द’ से कीजिये अभिवादन
कर्नल त्यागी ने आह्वान किया कि हम लोग एक शब्द को हथियार बना लें, उन्होंने कहा कि मैं एक फौजी हूं, मैं आपके सामने एक प्रस्ताव रखता हूं कि क्या हम ईश्वर को साक्षी मानकर यह कह सकते हैं कि चूंकि आज हमारे पास कोई ऐसा बिन्दु नहीं है जिस पर हम सब एक हों, हर चीज में बंटे हुए हैं, भाषा हो, धर्म हो, जगह हो कुछ भी हो तो ऐसे में क्या हम यह नहीं कर सकते हैं कि कुछ समय के लिए अनिवार्य रूप से सामूहिक स्तर पर, सार्वजनिक स्थानों पर गुड मॉर्निंग, नमस्ते, सतश्रीअकाल, आदाब अर्ज इन चीजों को कुछ समय के लिए इज्जत के साथ अवकाश दे दें, और अभिवादन के लिए जब मिलें तब जयहिन्द बोलें और जयहिन्द बुलवायें, ऐसा करने से हिन्दुस्तान की एक नयी तस्वीर सामने आ सकती है।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति प्रो के रामा चन्द्रा रेड्डी, नेपाल सरकार के पूर्व मंत्री देवेन्द्र कंडेल एवं इंजीनियर शैलेन्द्र दुबे को आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सावरकर विचार मंच, उत्तर प्रदेश के संयोजक वैद्य अजय दत्त शर्मा ने की।


मुख्य अतिथि स्वांत रंजन ने कहा कि एक सुभाषित में विचार की महत्ता बताते हुए कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति विषपान करे तो जो व्यक्ति विषपान करेगा उसका स्वास्थ्य खराब होगा, हो सकता है उसकी मृत्यु भी हो जाये, अगर शस्त्र से प्रहार किया जाये तो जिस व्यक्ति पर शस्त्र से प्रहार किया जा रहा है, उसे नुकसान होगा, मृत्यु भी हो सकती है, लेकिन अगर किसी देश, समाज के लोगों के विचारों को भ्रमित कर दिया जाये तो सम्पूर्ण समाज दिग्भ्रमित होकर नष्ट हो जायेगा, इसलिए विचार बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने कहा था कि सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कि सम्पूर्ण विश्व के जो हिन्दूवादी हैं, जो राष्ट्रवादी हैं, जो हिन्दुत्व के मानने वाले हैं, ऐसे सभी हिन्दुओं को एक विचार दें, एक करें। उन्होंने कहा कि भारत को उपनिवेश बनाकर अंग्रेज यहां रह रहे थे। ऐसे तथाकथित अंग्रेज इतिहासकार, जो भारत आये ही नहीं, उन्होंने भारतवर्ष का इतिहास लिखा और इस इतिहास को विकृत किया। उन्होंने कहा कि 1857 एक विद्रोह नहीं था, यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार था, यह आजादी की लड़ाई थी, जिसमें 3 से 4 लाख लोगों ने अपना बलिदान दिया था, उनमें किसान, नौजवान, व्यापारी सभी शामिल थे। उन्होंने कहा कि भारत को स्वतंत्र करने के इतिहास को उजागर करने का काम वीर सावरकर ने किया। जो साहित्य उन्होंने रचा, वह पुस्तक छपने से पूर्व ही प्रतिबंधित हो गयी, जैसे-तैसे उसे दूसरे देशों में छपवाया गया। जितने भी क्रांतिकारी रहे उनके लिए वह पुस्तक गीता थी, सभी ने उनका अध्ययन किया। कितने ही नौजवानों को आजादी की इस लड़ाई के लिए तैयार किया गया। वीर सावरकर की लिखी पुस्तक ‘भारत का स्वतंत्रता संग्राम’ की ही देन है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तात्या टोपे जैसे कितने क्रांतिकारियों का नाम आज हम जानते हैं, वरना न जाने कितने क्रांतिकारियों, महापुरुषों की तरह ये भी गुमनामी अंधेरों में खो जाते। उन्होंने कहा कि यह वीर सावरकर की ही देन है कि वर्ष 1857 का महत्व लोगों की समझ में आया। उन्होंने इस इतिहास को नयी पीढ़ी को सौंपा।
स्वांत जी ने कहा कि सावरकर ने हिन्दू की व्याख्या करते हुए कहा था कि सिन्धु नदी से लेकर कन्याकुमारी में समुद्र तक के भाग के बीच जो रहता है, जो इस मोक्ष भूमि को पूर्वजों की भूमि मानता है, पुण्य भूमि मानता है, ऐसा समाज जो यहां रहता है, वह हिन्दू है। उन्होंने कहा कि विविधताएं तो होंगी, यह हमारा सौन्दर्य है, विशेषता है, कोई आस्तिक है, कोई नास्तिक है, हम अलग-अलग मत, पंथ वाले हैं, लेकिन ये सभी मत, पंथ उसी ईश्वर तक जाते हैं, सभी उपासनाएं ईश्वर तक जाती हैं। हिन्दुत्व जो विषय है उसमें हिन्दूराष्ट्र की बात आती है। आरएसएस के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेगड़ेवार ने कहा था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, इसे हिन्दू राष्ट्र बनाने की जरूरत नहीं है। जब ईसाइयत, इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था उससे पहले भी तो कोई समाज रहता था, वह समाज हिन्दू समाज था तब से यह हिन्दू राष्ट्र है। उन्होेंने कहा कि इसे सनातन हिन्दू कहा जाता है, वर्तमान में कलयुग चल रहा है, इसका 5127वांं वर्ष चल रहा है, महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद कलयुग प्रारम्भ होता है, उसके पहले द्वापर युग था, उससे पूर्व त्रेता युग और उससे पहले सतयुग था। लगभग दो अरब वर्ष पूर्व का यह पूरा कालखंड है। उन्होंने कहा कि जब समाज धर्म का पालन करना छोड़ देता है तो धर्म की हानि होती है, इसलिए हमें धर्म का पालन करना है, इसी से धर्म मजबूत होगा।
उन्होंने कहा कि हिन्दू राष्ट्र एक जीवंत राष्ट्र है, इस जीवंत राष्ट्र का अनुभव हम समय-समय पर करते हैं। अभी जो ऑपरेशन सिंदूर चला इसके लिए पूरे भारत वर्ष में एक जबरदस्त उत्साह था, कोई मैच होता है, और उसमें जब हम हार जाते हैें तो इसका असर हम सभी पर पड़ता है, सभी उदास हो जाते हैं, और जब जीत जाते हैं तो पूरे देश में खुशी की लहर एकसाथ दिखायी पड़ती है, रात में दो बजे भी लोग पटाखे चलाते हैं। सोचिये, इन्हें कौन कहता है पटाखा चलाने के लिए, ये लोग स्वयं ही चलाने लगते है, भारत माता की जय के नारे लगने लगते हैं, ये सब जीवंतता के लक्षण हैं। उत्साह, उमंग, जोश एक जीवंत समाज का अनुभव करा देता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार शरीर जब कभी बीमार हो जाता है, तो कमजोर पड़ जाता है, और जब हम दवा करते हैं तो फिर से शरीर स्वस्थ हो जाता है, उसी तरह समाज के भी उत्साह का कई बार पतन हो जाता है, लेकिन उसके बाद फिर ऊंचाई पर चला जाता है। उन्होंने कहा कि भारत वर्ष के पतन का काल बीत गया है, और वह अब ऊंचाई की ओर उठ रहा है। भारत एक बार फिर अखंड होगा।
स्वांत रंजन ने कहा कि हिन्दुओं में एकता बनाये रखने के लिए वीर सावरकर ने लोगों को जातिवादी कट्टरता से बाहर निकलना भी सिखाया। इसके लिए उन्होंने 1931 में रत्नागिरि में पतित पावन मंदिर की स्थापना की और सभी जाति के लोगोें को मंदिर में एकसाथ प्रवेश कराया। उन्होंने अनेक प्रकार की बंदिशों को समाप्त कराया, वे बंदिशें जिन्हें सप्तबंदी कहा जाता है, उन्हेे समाप्त कराया। उन्होंने कहा कि आज नौजवानों को वीर सावरकर के साहित्य के बारे में बताने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मेरा सुझाव है कि सावरकर विचार मंच में एक सावरकर युवा मंच भी होना चाहिये।
हिन्दुत्व से ही हुई है आयुर्वेद की उत्पत्ति : डॉ रेड्डी
इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति प्रो के रामा चन्द्रा रेड्डी ने कहा कि हम लोग आयुर्वेद चिकित्सा में व्यस्त रहते हैं, आज वीर सावरकर के बारे में सुनने का अवसर मिला, इससे मैं धन्य हो गया। हिन्दुत्व के माध्यम से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। आयुर्वेद, योग और ज्योतिष शास्त्र जो हिन्दू सम्प्रदाय से उत्पन्न विधाएं हैं, ये आज भी जीवंत रूप में मिलती हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर का आर्किटेक्चर भी हिदुत्व की देन है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्य के प्रति लाभप्रद है। इसीलिए मंदिर में जब व्यक्ति प्रवेश करता है तो उसे एक प्रकार की मानसिक शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि मानसिक व्याधियां मंदिर जाने से दूर हो जाती हैं, जबकि शारीरिक व्याधियां हिन्दू समाज की देन आयुर्वेद में पंचकर्म के माध्यम से शोधन कर दूर कर दी जाती हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व में हमें सैकड़ों साल पूर्व जो सिखाया गया उसे हम नहीं मानते हैं, लेकिन जब वही बात अमेरिका का साइंटिस्ट कह देता है तो हम तुरंत मान जाते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व जब मजबूत रहेगा तो देश और हम सब मजबूत रहेंगे, हमें एक रहना होगा। उन्होंने कहा हमारे मुख्यमंत्री ने, जो अभी कुम्भ का सफल आयोजन किया, जिसकी वजह से हिन्दू समाज एकसाथ उपस्थित दिखा, कोई भेदभाव नहीं दिखा, इसी प्रकार हर जगह हिन्दुओं को एकजुट रहना होगा, यही सावरकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
नेपाल से आये वहां के पूर्व मंत्री देवेन्द्र कंडेल ने अपने सम्बोधन में कहा कि सावरकर सिर्फ क्रांतिकारी नहीं, कवि, लेखक, नाटककार जैसी बहुप्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कहा कि आजादी को हमें प्रेम से नहीं लड़कर लेना होगा। उन्होंने कहा कि जितना त्याग सावरकर ने किया था, उतना त्याग करना बहुत ही मुश्किल है। उन्होंने लोगों की हिन्दू धर्म में वापसी का कार्य किया। श्री कंडेल ने नेपाल में हुए माओवादियों के साथ संघर्ष की बात विस्तार से बतायी। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों हम धर्मनिरपेक्ष हो गये हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि हम एक दिन फिर हिन्दू राष्ट्र होंगे। उन्होंने कहा कि भारत में यहां उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर हमें गर्व है। इससे पूर्व इंजी.शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि सावरकर एक व्यक्ति का नाम नहीं, एक विचार हैं, उनका समर्थन भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद भी किया करते थे।
गोष्ठी में धन्यवाद प्रस्ताव वैद्य अजय दत्त शर्मा ने दिया। उन्होंने कहा कि राजनाथ सिंह ने जो लखनऊ में मिसाइल बनाने की फैक्टरी लगायी, उससे हम सब गौरवान्वित हैं। उन्होंने कहा कि सावरकर जी ने जो चेतना पैदा की, वह अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि सावरकर जी जब अंडमान से वापस लौटे तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु और उनके गुरु कोलकाता में सावरकर के स्वागत में खड़े थे। उन्होेंने कहा कि सावरकर विचार मंच 1935 के बाद के सावरकर द्वारा किये गये काम पर ज्यादा जोर देता है। उन्होेंने जो राजनीति छोड़कर हिन्दुत्व पर काम किया, हिन्दू महासभा की अध्यक्षता की और कहा कि राजनीति में कभी नहीं जाऊंगा, उनके इस विशुद्ध जीवन को भी देखना चाहिये। उन्होंने आये हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। ज्ञात हो वैद्य अजय दत्त शर्मा के पिता वैद्य सोमदत्त शर्मा और सावरकर ने एकसाथ कार्य किया था।
इस मौके पर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके विवेक मिश्र, जो वर्तमान में अवध विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, उन्होंने राष्ट्रवादी पुस्तकों का सम्पादन किया है, उन्होंने अपनी एक पुस्तक मंच पर अतिथियों को भेंट की। मंच का संचालन अनघ शुक्ला ने किया। कार्यक्रम का समापन वंदे मातरम गीत से हुआ।
