-क्योंकि जब स्वास्थ्य के रोल मॉडल्स की ओर से …बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी…
-‘सेहत टाइम्स’ का दृष्टिकोण
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई इन्वेस्टर समिट का उद्घाटन करने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आये थे। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बहुत सी बातें कही थीं। इनमें एक खास बात मोटे अनाज के सेवन के प्रति जागरूकता फैलाना भी शामिल थी। उन्होंने मोटे अनाज को ‘श्रीअन्न’ नाम देते हुए इसके सेवन पर जोर दिया था। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने वाले प्रधानमंत्री ने पहले भी स्वच्छता जैसे अत्यन्त सामान्य लेकिन बेहद महत्वपूर्ण विषय पर अपने कार्यकाल के प्रथम वर्ष में ही लोगों का ध्यानाकर्षित किया था, उसी का नतीजा है कि आज पहले की अपेक्षा लोगों मे स्वच्छता के प्रति रुझान खासा बढ़ा है। कुछ ऐसी ही स्थिति एक दिन मोटे अनाज के महत्व की हो सकती है।
बहुत सी अच्छी बातों का लोगों को पता तो होता है लेकिन उसे आम आदमी के व्यवहार में कैसे शामिल कराना है, इसके क्रियान्वयन की कला न पता होने के कारण उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाता है और आमजन अच्छाई के लाभ से वंचित रहते हैं। मौजूदा समय में मौका भी है, दस्तूर भी है, क्योंकि मोटे अनाज का प्रमोशन इस पूरे साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी किया जा रहा है। मोटे अनाज का महत्व जानकारों को तो पहले से ही मालूम है, लेकिन इसके प्रति आम लोगों में अभी जागरूकता का अभाव है। क्योंकि इसका प्रमोशन उस तरह नहीं किया गया जैसा कि किया जाना चाहिये था, इसके विपरीत अनेक रोगों को जन्म देने वाला फास्ट फूड हम पर जरूर हावी हो गया। चाउमिन, पिज्जा, बर्गर, मोमो जैसे व्यंजनों का सेवन करने के आदी होने के चलते हमने अपने पूर्वजों के भोजन में शामिल रह चुके ‘श्रीअन्न’ को भुला दिया है।
हमारे लिए गर्व करने की बात यह है कि हमारी भारतीय संस्कृति, हमारे रहन-सहन, हमारे खानपान को पूरी तरह से वैज्ञानिक एवं लाभदायक बनाया गया है, इसका अहसास हमें तब होता है जब हमारी इन बातों पर विदेशों विशेषकर विकसित देशों में मुहर लग जाती है। चाहें वह नीम का महत्व हो या फिर योगा (योग) का। अब तो मोटे अनाजों को लेकर हुईं रिसर्च में भी यह साबित हो चुका है कि जिस टाइप-2 डायबिटीज को लाइलाज बताकर सिर्फ इसे मैनेज या कंट्रोल करने की बात कही जाती है, उस डायबिटीज को ठीक करने में मोटे अनाज की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण पायी गयी है।
‘सेहत टाइम्स’ का सुझाव
अपने 32 वर्ष के पत्रकारिता जीवन में मैंने संजय गांधी पीजीआई, केजीएमयू के साथ ही विभिन्न स्पेशियलिटी के चिकित्सकों की एसोसिएशंस द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले सैकड़ों स्वास्थ्य सम्मेलनों में भाग लिया है, एक दिवसीय से लेकर पांच दिवसीय तक की अवधि वाले इन सम्मेलनों में देश-विदेश के डेलीगेट्स हिस्सा लेते हैं। आयोजकों द्वारा उन लोगों के लिए दोनों समय का भोजन और नाश्ते की व्यवस्था की जाती है। मेरा यह विचार और सुझाव है कि क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि इन सम्मेलनों में परोसे जाने वाले व्यंजनों में कम से कम एक व्यंजन ऐसा भी शामिल किया जाये जो किसी भी मोटे अनाज से तैयार किया गया हो।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक अहम स्थान रखने वाले तथा रोल मॉडल माने जाने वाले चिकित्सक अगर ‘श्रीअन्न’ के प्रति जागरूकता फैलाने का दायित्व निभाने की सक्रिय जिम्मेदारी निभायें तो बड़ी संख्या में लोगों को मोटीवेट कर सकते हैं, मुझे पूरा विश्वास है कि यह एक अच्छा कदम होगा क्योंकि चिकित्सा और स्वास्थ्य से जुड़े सम्मेलनों से जब इस तरह की पहल होगी, तो उम्मीद है कि इसे अन्य क्षेत्रों के सम्मेलनों में भी शामिल करने की प्रेरणा मिलेगी।