-वित्तविहीन शिक्षकों के वेतन और मूल्यांकन के दौरान संक्रमण पर डॉ महेन्द्र नाथ राय ने उठाये गंभीर सवाल
-भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके वित्तविहीन शिक्षकों का दर्द बांटें न कि उन्हें डांटें
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके वित्तविहीन शिक्षक के साथ अब सभी शिक्षकों की जान जोखिम में डालकर सरकार मूल्यांकन कार्य को करवा रही है। सरकार को चाहिये कि इस तरफ ध्यान देते हुए तत्काल इन शिक्षकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराये न कि उनकी परेशानियां बढ़ाने के लिए दंडात्मक कार्यवाही का डर दिखाए। मूल्यांकन कार्य में लगाये गये शिक्षकों के बीमार होने के जोखिम के बारे में मेरे द्वारा उठाये गये बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार करे तो समझ में आ जायेगा कि सीबीएसई जैसे बोर्ड ने क्यों शिक्षकों से घर पर ही कॉपी जंचवाने का फैसला लिया है।
यह बात उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री व प्रवक्ता तथा लखनऊ खंड शिक्षक एमएलसी प्रत्याशी डॉ महेन्द्र नाथ राय ने यहां जारी एक बयान में कही है। एक तरफ सरकार सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को मदद पहुंचा रही है वहीं वित्तविहीन विद्यालय जो कम से कम 50 लोगों को रोजगार देते हैं उनके पास पैसा कहां से आएगा इसके बारे में सरकार का कोई विचार नहीं है।
उन्होंने कहा है कि इस सम्बन्ध में अनेक बार सरकार से मांग करने के बावजूद अभी तक इस ओर सरकार का ध्यान न जाना सरकार की संवेदनहीनता दर्शाता है। उन्होंने कहा कि वित्तविहीन शिक्षक जो 80% माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था को संभाल रहे हैं उनको फरवरी के बाद से वेतन नहीं मिला है। फीस न मिलने के कारण जुलाई तक वेतन मिलने के कोई आसार नहीं है। प्रबंधक भी अब हाथ खड़े कर रहे हैं। प्राइवेट ट्यूशन भी इस समय न पढ़ा पाने से भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके शिक्षकों को अब तक कोई भी तरह की राहत सरकार आखिर क्यों नहीं दे रही है।
उन्होंने कहा है कि अब समय आ गया है कि बिना समय गंवाये देश के भविष्य को शिक्षा प्रदान करने वाले इन शिक्षकों की तरफ भी सरकार ध्यान दे। सरकार को चाहिए कि वित्तविहीन शिक्षक चाहे वह प्राथमिक में पढ़ाता हो या माध्यमिक में या महाविद्यालयों में उनको तत्काल आर्थिक राहत प्रदान करने का कार्य करे।
उन्होंने कहा कि प्राथमिक से लेकर महाविद्यालय तक के वित्तविहीन शिक्षकों की आर्थिक दशा खराब होती जा रही है। उन्होंने कहा कि अब प्रबंधकों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि वह वेतन नहीं दे पाएंगे। महाविद्यालय प्रबंधक महासभा भी मई में वेतन नहीं दे पाने के लिए लिखित रूप से बता चुकी है।
संगठन द्वारा बार-बार पत्र लिखकर कर एवं मीडिया के माध्यम से शासन का ध्यान वित्तविहीन शिक्षकों की तरफ आकृष्ट कराने का प्रयास किया गया लेकिन सरकार शिक्षकों के प्रति संवेदनहीन हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि विश्व में फैली महामारी कोरोना के दौर में भुखमरी तक पहुंच चुके वित्तविहीन शिक्षकों के साथ अब सभी शिक्षकों की जान जोखिम में डालकर मूल्यांकन कार्य करवाने का प्रयास शासन द्वारा किया जा रहा है। संक्रमण के जोखिम के बारे में उन्होंने कहा कि बदायूं में मूल्यांकन केंद्र पर 4 शिक्षक कोरोना के संदिग्ध पाए गए, उन शिक्षकों के शरीर का तापमान अधिक था जिसके कारण संदिग्ध के रूप में उनकी पहचान हो सकी, लेकिन कोरोना तो ऐसे लोगों में पाया जा रहा है जिनमें कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहा है। मूल्यांकन केंद्रों पर सैकड़ों अध्यापकों की भीड़ है उनमें कौन कोरोना का वाहक हो जाएगा स्वयं अध्यापक को ही पता नहीं होगा।
डॉ राय ने कहा कि एक तरफ सीबीएसई बोर्ड अपने अवशेष परीक्षाओं को जुलाई में करवाने जा रहा है एवं जो परीक्षाएं हो गई हैं उन कापियों का मूल्यांकन शिक्षकों के घर भेजकर करवा रहा है तो हमारी उत्तर प्रदेश सरकार को रिजल्ट निकालने की जल्दी क्यों है?
डॉ राय ने कहा कि मूल्यांकन केन्द्रों पर प्रमुख सचिव शिक्षा द्वारा दिए गए आदेश में जो मानक निर्धारित किए गए है उनका पूरी तरह से पालन नही हो रहा।
*2 मीटर की दूरी का खुला उल्लंघन तथा केंद्रों पर मास्क और सेनेटाइजर का अभाव है।स्वच्छ ,शुद्धता पूर्ण जल तथा गुणवत्तापूर्ण खाने पीने की व्यस्थाओं का भी अभाव एवं लापरवाही दिख रही है। अनेक केंद्रों पर प्रकाश और पंखे की भी समुचित व्यवस्था नही की गई है।
*मेडिकल सुविधाओं का भी केंद्र पर अभाव है। शुगर ,बीपी और अन्य असाध्य रोगों से ग्रसित अध्यापकों के लिए कोई विशेष व्यवस्था न करके उनके जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
*शिक्षकों की एकता को तोड़ने के लिए जोन वाइज बांटकर के मूल्यांकन को शुरू कराया गया। ग्रीन जोन में सर्वप्रथम मूल्यांकन शुरू हुआ लेकिन बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनकी नियुक्ति तो ग्रीन जोन में है लेकिन रहते हैं ऑरेंज या रेड जोन में, वे मूल्यांकन केंद्र कैसे जाएंगे?
*परिवहन के साधन नहीं चल रहे हैं ऐसे में संसाधन विहीन शिक्षक मूल्यांकन केंद्र तक कैसे जाएगा? दो पहिया वाहन पर केवल एक व्यक्ति को जाने की छूट प्राप्त है, संसाधन विहीन शिक्षक किसी का सहयोग भी नहीं ले सकता है, विशेष रूप से वृद्ध और महिलाओं को अत्यधिक समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है।
*लॉकडाउन के कारण अत्यधिक शिक्षक गांव या अपने परिवार में कार्यस्थल से काफी दूर चले गए है उनका मूल्यांकन केंद्रों पर पहुंचना भी लॉकडाउन की वर्तमान व्यवस्था में लोहे के चने चबाना जैसा हो गया है।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों के सामने इस तरह से कई समस्याएं हैं जिसके कारण वे मूल्यांकन केंद्र पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। सरकार को जो भी शिक्षक मूल्यांकन के लिए नहीं जा रहे हैं उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। यदि सरकार उनके खिलाफ कोई कार्यवाही करेगी तो संगठन शिक्षक के साथ खड़ा रहेगा।