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क्या राज है 31 वर्षों से बिना बाधा चल रहे डॉ विवेक कुमार के फ्री कैम्प का

-‘लेप्रोसीमैन’ डॉ विवेक कुमार की सेवा यात्रा भाग-2

अभी तक आपने पढ़ा कि वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ विवेक कुमार पिछले 31 वर्षों से मोहनलालगंज में ज्योति नगर स्थित मदर टेरेसा की सोसाइटी द्वारा संचालित मिशनरी ऑफ चैरिटी 100 बिस्तरों वाले कुष्ठ पुनर्वास केंद्र (लेप्रोसी रिहैबिलिटेशन सेंटर) पर जाकर वहां भर्ती लेप्रोसी के मरीजों को दवा सहित अपनी विशेषज्ञ सेवा नि:शुल्क प्रदान करते हैं। डॉ विवेक यहां पर सप्ताह में दो दिन ओपीडी भी चलाते हैं, जिसमें वे आसपास के क्षेत्रों से आने वाले लोगों को सलाह के साथ ही फ्री दवाएं भी उपलब्ध करवाते हैं।

डॉ विवेक कुमार

किसी भी समाज सेवा, जिसमें समय, श्रम और धन तीनों ही शामिल हों, को 31 वर्षों से निरंतर चलाते रहना बहुत आसान नहीं होता है, लेकिन डॉ विवेक कुमार जिस प्रकार इसे चला रहे हैं इसका बहुत बड़ा श्रेय इनका कुशल प्रबंधन है। धन, समय, श्रम के प्रबंधन के साथ ही एक-एक मरीज के हित में छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर बनायी गयी व्यवस्था काबिले तारीफ है।

कैसे जुटाते हैं धन

पहले बात करते हैं धन प्रबंधन की, डॉ विवेक बताते हैं कि जब उन्होेंने प्रैक्टिस करना प्रारम्भ किया तो जहां उनका फोकस अपनी प्रैक्टिस पर था, वहीं पिता की समाज सेवा की दी हुई सीख भी मस्तिष्क में कौंध रही थी, चूंकि समाज सेवा करने के लिए समय और धन प्राथमिक आवश्यकता है, ऐसे में उन्होंने तय किया कि अपने कार्य के समय का करीब 30 प्रतिशत समय समाज सेवा के लिए रखेंगे, इसके लिए उन्होंने सप्ताह के दो दिन सोमवार और शुक्रवार चुने। अब बारी आयी धन जुटाने की, इसके लिए उन्होंने यह तरकीब निकाली कि क्लीनिक में आने वाले मरीजों के लिए एक दानपात्र रखवा दिया, जिसमें प्रति मरीज सिर्फ एक रुपया डालने की व्यवस्था बनायी। इन पैसों से उन्होंने लेप्रोसी की दवाएं खरीद कर मरीजों को देना शुरू किया। वे बताते हैं कि यह व्यवस्था कोरोना काल के पूर्व तक चली। कोरोना काल में जब इस व्यवस्था में व्यवधान पड़ा तो इसके बाद से वे अपने पास से प्रतिदिन सौ रुपये दान पात्र में डालते हैं उससे जो कलेक्शन हो जाता है उससे लेप्रोसी की दवा यहां सेंटर में रहने वाले मरीजों और ओपीडी में आने वाले लेप्रोसी के मरीजों के उपचार के लिए देते रहते हैं।

कैसे खोजे जाते हैं कुष्ठ रोग वाले मरीज

डॉ विवेक बताते हैं कि कुष्ठ रोग को शुरुआती स्तर पर पहचान कर उसे पूर्ण उपचारित करने के लिए मैं सप्ताह में दो दिन सोमवार और शुक्रवार को सभी तरह के त्वचा रोगों के लिए नि:शुल्क ओपीडी करता हूं, इन ओपीडी में बहुत सी वैरायटी वाले केस आते हैं, इनमें अनेक केस ऐसे भी होते हैं जिन्हें मेडिकल कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान नहीं देखा है। इन मरीजों में कुष्ठ रोग के शुरुआती लक्षण वाले रोगी भी मिल जाते हैं। इन लेप्रोसी वाले मरीजों को एक-एक माह की लेप्रोसी की दवा डॉ विवेक कुमार अपने पास से फ्री देते हैं, जबकि अन्य लेप्रोसी के अलावा वाले दूसरे रोगियों के दवा का इंतजाम वे दवा प्रतिनिधियों के माध्यम से करते हैं।

मरीजों के आक्रोश का प्रबंधन

डॉ विवेक बताते हैं कि कई बार ऐसा भी होता है कि यहां आने वाले लोग इस नि:शुल्क ओपीडी को सरकार की व्यवस्था जानकर जबरदस्ती करने की भी कोशिश करते हैं,। एक उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक ओपीडी में लगभग 40 मरीजों को देखने की व्यवस्था बनायी हुई है, इसके लिए उनका पंजीकरण उसी दिन किया जाता है। एक बार बार मरीजों की संख्या लगभग तीन गुना हो गयी, जब सभी मरीजों को देखने से मना किया गया तो नारेबाजी होने लगी। वे लोग कहने लगे कि सरकारी डॉक्टर हैं, आप कैसे मना कर सकते हैं, यह हमारा अधिकार है, आपको देखना ही होगा।

इस घटना के बाद उन्होंने प्रत्येक ओपीडी वाले दिन फार्मा कम्पनी के प्रतिनिधि, जो डॉ ​विवेक के इस सेवा कार्य में भागीदारी निभाते हैं, के द्वारा वहां उपस्थित मरीजों के समूह में बताया जाता है कि डॉक्टर साहब अपना निजी क्लीनिक चलाते हैं, यहां वे समाज सेवा के लिए मरीजों को नि:शुल्क देखने आते हैं। यहां के बाद उन्हें अपने निजी क्लीनिक पर जाना होता है, इसलिए सीमित एक सीमित संख्या में मरीजों को देखना मजबूरी है, जो लोग आज नहीं दिखा पा रहे हैं, वे अगली ओपीडी में आकर दिखा लें।

ये चुनौतियां भी कम नहीं

डॉ विवेक कुमार बताते हैं कि कुष्ठ रोग आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम लेप्रे या माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस बैक्टीरिया के कारण होता है। इस रोग में हाथ-पैर में चट्टे पड़ जाते हैं, जिनमें पहले झनझनाहट होती है, इलाज न किया जाये तो थोड़े दिनों बाद सुन्नपन हो जाता है जिससे चोट, जलने आदि का अहसास मरीज को नहीं हो पाता है, धीरे-धीरे 10-15 वर्षों में उंगलिया कट कर गिरने लगती हैं।

डॉ विवेक बताते हैं कि कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज समझते नहीं हैं, और जब थोड़ा ठीक होने लगते हैं तो यह सोचकर कि अब वे ठीक हो गये हैं, अपने मन से दवा छोड़ देते हैं, कोर्स पूरा नहीं करते हैं, इससे होता यह है कि कुछ दिनों बाद उनके शरीर पर पड़े लेप्रोसी के चट्टे गायब हो जाते हैं और पूरा बदन लेप्रोसी के बर्साइटिस से भर जाता है जब वह हाथ-पैर में आता है तो हाथ पैर कट-कट कर गिरने लगते हैं, और अगर असर आंख में पहुंचा तो रोशनी चली जाती है।

ज्ञात हो इस मोहनलाल गंज के इस सेंटर पर वे मरीज रहते हैं, जिनकी उंगलिया नहीं हैं, पैर नहीं है, और बहुत से मरीजों की आंख भी चली गयी है। इनमें से ज्यादातर वे मरीज होते हैं जिन्हें उनके अपनों ने अपने से दूर कर दिया है। डॉ विवेक बताते हैं कि दरअसल गांवों में कुष्ठ रोग का फोबिया है, ऐसे मरीजों को उनके अपने घरवाले भी त्यागने में अपनी भलाई समझते हैं, इन त्यागे हुए लोगों को पुनर्वासित करने के नेक कार्य में लगे इस सेंटर पर रहने वाले मरीजों को खाना-रहना फ्री दिया जाता है साथ ही इनका उपचार भी नि:शुल्क किया जाता है। डॉ विवेक बताते हैं कि इन मरीजों की त्वचा का उपचार मैं नि:शुल्क करता हूं। जारी…

(‘लेप्रोसीमैन’ डॉ विवेक कुमार की सेवा यात्रा भाग-1 पढ़ने के लिए क्लिक करें)

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