-पैथोलॉजिकल टेस्ट की जानकारी की श्रृंखला में डॉ पीके गुप्ता ने जारी किया विटामिन डी जांच पर वीडियो
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। विटामिन डी का प्रचुर स्रोत सूर्य प्रधान देश भारत में दुर्भाग्य से विटामिन डी की कमी एक महामारी के रूप में शहरी आबादी विशेष रूप से इनडोर काम करने वाले लोगों में देखने को मिल रही है। इसकी जांच ब्लड टेस्ट से की जाती है, विभिन्न प्रकार के टेस्ट के बारे में वीडियो के माध्यम से जानकारी देने वाले आईएमए लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट डॉ पीके गुप्ता अब विटामिन डी टेस्ट के बारे में वीडियो जारी किया है।
डॉ गुप्ता बताते हैं कि जैसा कि हमें मालूम है कि विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत सूर्य की रोशनी होती है। विटामिन डी एक फैट सॉल्यूबल विटामिन होता है, जो कि ब्लड मे 25 hydroxy cholecalciferol के रूप में अधिक समय तक मौजूद होता है इसी की मात्रा को माप कर शरीर मे विटामिन डी की कमी अथवा सामान्य होने की जानकारी मिलती है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि शरीर द्वारा विटामिन डी को उपयोग करने के पहले यह विटामिन शरीर में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरता है जिसमें लिवर, किडनी तथा स्किन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसका सबसे पहला परिवर्तन लिवर में होता है जिसके बाद यह 25 कॉलेकैल्सिफेरॉल केमिकल के रूप में ब्लड में मौजूद रहता है। विटामिन डी टेस्ट में इसी केमिकल को मात्रा को measure किया जाता है।
डॉ गुप्ता बताते हैं कि विटामिन डी टेस्ट कब कराते हैं उससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि लेते हैं विटामिन डी की शरीर में उपयोगिता क्या है। विटामिन डी शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस को रेगुलेट कर हड्डियों, जोड़ों तथा मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। विटामिन डी आंतों के द्वारा कैल्शियम तथा फास्फोरस के अब्जॉर्प्शन में मदद करता है।
उन्होंने बताया कि विटामिन डी इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करता है, विटामिन डी डिप्रेशन को कम करने में मदद करता है, साथ ही शरीर के लिए उपयोगी तमाम हॉरमोंस को भी रेगुलेट करता है।
कब कराना चाहिये टेस्ट
डॉ गुप्ता का कहना है कि इनडोर काम करने वाले कामकाजी लोगों को तथा महिलाओं में विटामिन डी टेस्ट की सलाह दी जाती हैं यदि व्यक्ति हड्डियों, जोड़ों तथा मांसपेशियों में दर्द की शिकायत बता रहा है तो इस टेस्ट की सलाह दी जाती है। इसके अलावा व्यक्ति यदि थका हुआ महसूस कर रहा है, मोटापे से ग्रसित होने पर तथा अवसाद के लक्षण होने पर भी विटामिन डी टेस्ट की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त आंतों की बीमारी जैसे malabsorption सिंड्रोम तथा कोलाइटिस में भी इस जांच की सलाह दी जाती हैं।
बच्चों में बार-बार संक्रमण हो रहा हो तथा हड्डियों का विकास नहीं हो रहा है तो यह जांच करने की सलाह दी जाती हैं। वयस्क लोगों तथा पोस्ट मीनोपॉसल महिलाओं में विटामिन डी टेस्ट आवश्यक रूप से कराते हैं।
नमूना कैसे दें
विटामिन डी जांच का नमूना देने के लिए आदर्श तरीका है कि 6 से 8 घंटे का पेट खाली हो, लेकिन विशेष परिस्थितियों में हल्का खाने के 4 घंटे बाद भी नमूना दिया जा सकता है। इससे जांच की गुणवत्ता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके लिए 3 से 5 एमएल ब्लड रेड कैप ट्यूब में लिया जाता है।
क्या है विटामिन डी का नॉर्मल रेंज
लैब में विटामिन डी टेस्ट का नॉर्मल रेंज इस प्रकार है। विटामिन डी यदि 30 नैनोग्राम प्रति एमएल से अधिक है तो यह सामान्य की श्रेणी में आता है। लेकिन यदि विटामिन डी 20 नैनोग्राम प्रति एमएल से कम है तो यह शरीर में इसकी कमी की तरफ इशारा करता है। विटामिन डी यदि 20 से 30 नैनोग्राम प्रति एमएल के बीच है तो यह सामान्य से थोड़ा कम विटामिन डी की ओर इशारा करता है। उन्होंने बताया कि टेस्ट एलाइजा तथा सी एल आई ए मेथड से लैब में किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोशिश करनी चाहिए कि मरीज इसकी जांच के लिए रक्त का नमूना लैब में जा कर दिया जाए।
डॉ गुप्ता ने कहा कि एक बात यहां महत्वपूर्ण है कि विटामिन डी एक विटामिन के साथ-साथ हार्मोन भी होता है जो शरीर के मेटाबॉलिज्म में महत्वपूर्ण रोल निभाता है, इसलिए यदि ब्लड टेस्ट में विटामिन डी की कमी आ रही हैं तो उन्हें अपने फिजिशियन तथा लैब में मौजूद पैथोलॉजी चिकित्सक से मिलकर सलाह जरूर लेनी चाहिए तथा सलाह के मुताबिक विटामिन डी सप्लीमेंट लेना चाहिए, साथ ही फॉलो टेस्ट भी कराते रहना चाहिए जिससे विटामिन डी लेवल की जानकारी मिलती रहे। उन्होंने कहा कि विटामिन डी की कमी की दिक्कत काफी हद तक लाइफ़स्टाइल, धूप तथा खानपान से जुड़ी है। समय रहते जांच से पता लगाने पर हम विटामिन डी की कमी से होने वाली बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं।
देखें वीडियो