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प्रोफेशनल से ज्यादा सफल रहती है वोकेशनल ट्रेनिंग : डॉ वैभव खन्ना

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के स्कूल ऑफ वोकेशनल एजूकेशन के ट्रेनिंग सेंटर का उद्घाटन

लखनऊ। प्रोफेशनल और वोकेशनल ट्रेनिंग के बीच छोटा सा ही लेकिन बहुत महत्वपूर्ण फर्क है कि प्रोफेशनल ट्रेनिंग के तहत आप सिर्फ व्यवसाय करने के लिए प्रशिक्षण लेते हैं जबकि वोकेशनल ट्रेनिंग में आपकी रुचि का कार्य ही आपका व्यवसाय बन जाता है जिसकी सफलता का प्रतिशत निश्चित ही प्रोफेशनल से ज्यादा होता है।
यह बात रविवार 6 अगस्त को यहां कल्याणपुर में कंचना बिहारी मार्ग पर स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज टिस के तहत स्कूल ऑफ वोकेशनल एजूकेशन के ट्रेनिंग सेंटर के उद्घाटन अवसर मुख्य अतिथि क्रेनियो फेशियल एंड प्लास्टिक सर्जन डॉ वैभव खन्ना ने कही। उन्होंने कहा कि स्किल का महत्व हमेशा से काफी रहा है लेकिन इसे सामने लाने का कार्य यानी स्किल डेवलेपमेंट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद दिखा है। डॉ खन्ना ने कहा कि मेरा मानना है कि बेसिक एजूकेशन कक्षा 5 या कक्षा 8 तक ही जरूरी हो इसके बाद स्किल ऐजूकेशन होनी चाहिये जिससे वह अपनी रुचि के अनुसार अपना व्यवसाय चुनकर जीवन में आगे बढ़ सके। उन्होंने कहा कि विभिन्न कोर्स करने वाले करीब 95 फीसदी लोग डिग्री लेने के बाद भी बेरोजगार रहते हैं जबकि अगर बेसिक शिक्षा के बाद उन्हें स्किल ऐजूकेशन दी गयी होती तो वे बेरोजगार न होते। उन्होंने वोकेशनल ऐजूकेशनल इंस्टीट्यूट खोलने के लिए शुभकामनाएं दीं।

माइनस से जीरो और फिर जीरो से एक तक का सफर : डॉ वाईपी सिंह

माइनस से जीरो और फिर जीरो से एक तक का सफर तय करने वाले दिव्यांग डॉ वाईपी सिंह ने दिखा दिया कि उड़ान के लिए पंखों की नहीं हौसलों की जरूरत होती है तभी तो लखनऊ शहर को प्रतिष्ठित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज टिस के तहत स्कूल ऑफ वोकेशनल एजूकेशन का तोहफा दिया है डीम्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े इस संस्थान से कोर्स करने वालों को डिग्री और डिप्लोमा टिस से ही मिलेगा। व्हील चेयर पर बैठकर जिंदगी की ऊंचाइयों को छूने वाले डॉ सिंह ने बताया कि वह वे इलाहाबाद में एमएससी में पढ़ रहे थे तथा फुटबॉल व हॉकी के प्लेयर थे तभी 1994 में वह पैराप्लीजिया के शिकार होने के बाद तभी से व्हील चेयर उनके जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गयी। उन्होंने बताया कि 1996 में वह जब लखनऊ आये तो न तो उनके पास कोई सपोर्ट था न ही कोई उनका कोई गॉडफादर। उन्होंने कहा कि वह आम आदमी की तरह शून्य पर नहीं बल्कि दिव्यांग होने के कारण माइनस पर थे फिर उन्होंने माइनस से शून्य और फिर शून्य से एक तक का सफर उन्होंने अपनी हिम्मत और परिणाम की परवाह किये बिना तय किया। डॉ सिंह अब तक कई बड़े संस्थानों में उच्च पदों पर कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अपने संस्थान में चलाये जाने वाले कोर्स के बारे में बताया कि बी वोकेशनल सेल्स एंड मार्केटिंग की स्नातक डिग्री करने वाले छात्र के लिए स्पेशल फायदा यह है कि तीन साल के डिग्री कोर्स को यदि उसने फस्र्ट ईयर करने के बाद छोड़ दिया तो भी उसे डिप्लोमा का सार्टीफिकेट दिया जायेगा और यदि सेकेंड ईयर बाद छोड़ा तो उसे एडवांस डिप्लोगा का सार्टीफिकेट दिया जायेगा तथा तीनों साल पूरे करने पर उसे डिग्री दी जायेगी। इसके अलावा एक साल का पीजी डिप्लोमा कोर्स डिजिटल मार्केटिंग, एचआर एंड एडमिनिस्ट्रेशन मैनेजमेंट तथा सेल्स एंड मार्केटिंग में है जबकि इसके अलवा कई सार्टीफिकेट कोर्स भी हैं। उन्होंने बताया कि यूं तो इसकी फीस बहुत ही कम है लेकिन फिर भी कोई पैसे के अभाव में यदि कोर्स करने में असमर्थ है तो बैंक लोन भी प्रदान कर देता है। कार्यक्रम मेें आयीं विशिष्ट अतिथि विकलांग जन विकास विभाग की उप निदेशक अनुपमा मौर्या ने भी डॉ वाईपी सिंह के जज्बे की तारीफ करते हुए अपनी शुभकामनाएं दीं।

लखनऊ शहर के लिए यह गौरव का विषय : डॉ आदर्श

कार्यक्रम में शामिल हुए प्लास्टिक सर्जन डॉ आदर्श कुमार ने कहा कि टाटा इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठिïत संस्थान द्वारा अपनी इकाई यहां खोलने की सहमति देना पूरे लखनऊ के लिए गौरव की बाम हैं उन्होंने इसका श्रेय डॉ वाईपी सिंह को देते हुए कहा कि आज का दिन स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाने वाला है। यह लखनऊ के युवाओं के लिए एक बड़ा मौका लिये हुए है।
सेन्ट्रल एक्साइज एंड कस्टम में डिप्टी कमिश्नर पद से रिटायर्ड वीके मिश्र ने कहा कि दिव्यांग को हमेशा याचक नहीं दाता के भाव में होना चाहिये। वीके मिश्र भी दिव्यांग हैं तथा व्हील चेयर पर रहकर ही जिन्दगी को बड़ी शिद्दत से जीते हैं। उन्होंने कोर्स की फीस में दिव्यांगों के लिए पचास फीसदी छूट की मांग की। कार्यक्रम का संचालन मोहम्मद मुजम्मिल ने शायरियों के साथ किया।

 

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