-वैज्ञानिक सबूतों पर आधारित उपचार का पूर्ण विवरण दिया है डॉ गिरीश गुप्ता ने अपनी पुस्तक में
-अमेरिका में हुई पुस्तक की समीक्षा के लिए ऑनलाइन आयोजित हुआ कार्यक्रम
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। यूट्राइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्ट लीजन्स, नेबोथियन सिस्ट, सर्वाइकल पॉलिप जैसे स्त्री रोगों के होम्योपैथिक दवाओं से उपचार पर की गयी रिसर्च का विस्तार से वर्णन करने वाली पुस्तक एवीडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन गाइनीकोलॉजी (Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology) की प्रशंसा अमेरिका और ब्राजील के चिकित्सक भी कर रहे हैं। अमेरिका में डॉ कविता कुकुनूर ने इसे यूनीक बुक करार दिया है। वहीं ब्राजील की प्रो रेजीना रियानेली ने इसे चिकित्सकों के साथ ही विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी बताया है। आपको बता दें कि लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (GCCHR) पर हुई स्टडी से रूबरू कराने वाली इस पुस्तक के लेखक GCCHR के संस्थापक वरिष्ठ होम्योपैथिक विशेषज्ञ डॉ गिरीश गुप्ता हैं।
मिशिगन (यूएसए) में कविता होलिस्टिक एप्रोच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में इस पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ कविता कुकुनूर ने कहा कि इस किताब को पढ़कर पता चलता है कि होम्योपैथिक में क्लासिकल तरीके से इलाज करना नॉन क्लासिकल तरीके से इलाज करने की अपेक्षा कितना ज्यादा लाभप्रद है। डॉ कविता ने कहा कि यह उपयोगी पुस्तक उनके केएचए होम्योपैथी स्टडी ग्रुप के लिए नये वर्ष में इतनी मिलने वाले उपहार की तरह है, उन्होंने बुक के कवर पेज से लेकर अंदन प्रत्येक बीमारी के बारे में पृथक चैप्टर और उसके लिए पृथक रंग के पेज की तारीफ करते हुए कहा कि आकर्षक स्वरूप में जानकारी प्रदान करने वाली यह किताब यूनीक है इसमें लेखक ने अपने क्लीनिकल और रिसर्च अनुभव का विवरण दिया है।
डॉ कविता के प्रश्नों के जवाब में डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि डॉक्यूमेंटेशन का महत्व 1993 में उन्हें पहली बार तब पता चला जब उनके सीनियर डॉ नरेश अरोरा के द्वारा ठीक किये गये फायब्रायड के चार केस के बारे में एशियन होम्योपैथिक जर्नल में छपा, इसके बाद मैंने डॉक्यूमेंटेशन शुरू किया। जब ट्यूमर के 72 केस हो गये तो इन्हें कम्पाइल करके इसका पेपर मई 1995 में ऑस्ट्रेलिया में हुई इंटरनेशनल होम्योपैथिक कांग्रेस में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि स्त्री रोगों से सम्बन्धित इस समय लगभग 3000 केसेज के डॉक्यूमेंट मौजूद हैं।
उन्होंने कहा कि होम्योपैथी के जनक डॉ सैमुअल हैनीमैन के द्वारा की गयी सिफारिश के अनुसार क्लासिकल तरीके से इलाज करने के परिणाम नॉन क्लासिकल तरीके से इलाज करने से कहीं ज्यादा बेहतर आये, इसी का नतीजा है कि जिन रोगों का इलाज मॉडर्न पैथी में सिर्फ सर्जरी है, उन रोगों को होम्योपैथिक की सिंगल दवा से दूर किया गया। इस बारे में उन्होंने बताया कि वर्ष 1995 से पहले तक वह स्वयं मरीजों का ट्रीटमेंट नॉन क्लासिकल तरीके से रोग विशेष के लिए चुनी हुई दवाओं से करते थे।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1995 के बाद जब उन्होंने क्लासिकल यानी साइकोसोमेटिक तरीके से इलाज करना शुरू किया तो इसके परिणाम पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा अच्छे मिले। क्लासिकल तरीके से इलाज करने में होलिस्टिक एप्रोच यानी शरीर और मन:स्थिति के साथ ही मरीज की प्रकृति को ध्यान में रखकर मरीज से पूछी गयी हिस्ट्री के बाद रोग विशेष की सैकड़ों दवाओं में एक दवा का चुनाव किया जाता है और उसी से मरीज को लाभ हो जाता है। डॉ गुप्ता ने बताया कि किस तरह उनकी यह पुस्तक प्रैक्टिस करने वाले होम्योपैथिक चिकित्सकों, पीएचडी या एम डी करने वाले छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
डॉ कविता ने कहा कि यह पुस्तक जो दूसरी पुस्तकों से बिल्कुल अलग है, प्रत्येक रोग और उसके इलाज से जुड़ी रिसर्च तथा अल्ट्रासाउंड की तस्वीर, उसकी रिपोर्ट, ग्राफिक्स के द्वारा उसके परिणाम पृथक-पृथक तरीके से इस प्रकार दिये हुए है कि लोगों के मन में उठने वाले प्रत्येक प्रश्न का उत्तर बहुत आसानी से मिलता है। उन्होंने कहा कि सबसे बाद में एपेन्डिक्स में डॉ गुप्ता को मिले पुरस्कार व सम्मान के बारे में जानकारी दी गयी है। उन्होंने कहा कि मेरी एक मित्र जो भारत में बड़ी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, उन्हें मैं इस किताब के महत्व के बारे में बताउंगी, मेरा मानना है कि वह भी जरूर इससे प्रभावित होंगी।