संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने बुजुर्गों को दी नयी जिन्दगी, वाल्व का खर्च भी नहीं हुआ
लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई के चिकित्सकों ने एक बार फिर उपलब्धि हासिल करते हुए दो उम्रदराज मरीजों के दिल का वाल्व बिना सीना खोले बदल दिये। वॉल्व को कैथेटर में डालकर नस के सहारे दिल के रास्ते तक पहुंचकर सफलतापूर्वक वाल्व ट्रांसप्लांट किया गया। दोनों मरीज स्वस्थ हैं।
विभागाध्यक्ष डॉ पीके गोयल ने बताया कि वाराणसी के रहने वाले 76 वर्षीय जुगुल प्रसाद और कुशी नगर के निवासी 75 वर्षीय केदार कुशवाहा के दिल का वॉल्व सिकुड़ गया था। सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे दोनों मरीज एयरोटिक स्टोनोसिस की समस्या से ग्रस्त थे। इसके अलावा उनके फेफड़े और गुर्दे में भी दिक्कत थी। डॉ गोयल ने बताया कि 70 साल की उम्र के बाद ओपन सर्जरी में जोखिम रहता है, लेकिन अगर वाल्व न बदले जाते तो भी मरीजों के लिए दिक्कत थी, इसलिए हमने फैसला किया कि दोनों के वाल्व ट्रांस एरोटिक वाल्व इम्प्लांट तकनीक से बदले जायेें, इसके बाद बीती 26 अगस्त को दोनों के वाल्व इस तकनीक से चेंज कर दिये।
इस तकनीक के बारे में डॉ गोयल ने बताया कि ट्रांस एरोटिक वाल्व इम्प्लांट तकनीक के तहत वॉल्व बदलने में एंजियोप्लास्टी की ही तरह कैथेटर के जरिये हार्ट तक पहुंचा जाता हैै, इसके लिए 6 मिलीमीटर का छेद बनाकर कैथेटर में ही हार्ट का वाल्व रखकर उसे हार्ट तक पहुंचाकर लगा दिया जाता है। उन्होंने बताया कि वाल्व 29 मिलीमीटर का होता है लेकिन इस वाल्व की खासियत यह है कि यह पानी में सिकुड़ जाता है और शरीर के तापमान में फैल जाता है इसीलिए इसे कैथेटर के जरिये 6 मिलीमीटर के छेद से भेजना संभव हो पाता है, हार्ट में पहुंचने के बाद तापमान पाकर यह वाल्व फैलकर 29 मिलीमीटर का हो जाता है।
यह पूछने पर कि इस तरह की दिक्कत के लक्षण क्या हैं, इस पर डॉ गोयल ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति को चलने में, सीढ़ी चढऩे में या बैठे-बैठे सांस फूले, कभी सीने में दर्द हो तो हार्ट की जांच अवश्य करानी चाहिये।
डॉ गोयल ने बताया कि भारतीय कम्पनी द्वारा बनाये जाने वाले इस वॉल्व की कीमत 20 लाख रुपये है लेकिन उनसे कहा गया तो उन्होंने वॉल्व फ्री में उपलब्ध करा दिया।