-हमें भोजन की आवश्यकता है, तम्बाकू की नहीं : डॉ सूर्यकान्त
-विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31 मई) पर विशेष
सेहत टाइम्स
लखनऊ। विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31 मई) 2023 की थीम है- ‘वी नीड फूड, नॉट टोबैको अर्थात हमें भोजन की आवश्यकता है, तम्बाकू की नहीं।‘ इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को तम्बाकू जैसे हानिकारक पदार्थो से बचाना एवं इसकी वजह से होने वाली मृत्यु के आंकड़ों को कम करना है। वर्तमान में फैल रहीं अधिकतर बीमारियों के पीछे तम्बाकू एक बड़ी वजह है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-2017 के अनुसार देश में करीब 27 करोड़ लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं। भारत में तम्बाकू के कारण प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु होती है। भारत में सेवन प्रारम्भ करने की औसत आयु 18.7 वर्ष है। महिलाओं की तुलना में पुरुष कम उम्र में तम्बाकू का सेवन शुरू कर देते हैं। तम्बाकू के कारण 25 तरह की बीमारियां व 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं- मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफडे का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्रेन ट्यूमर आदि।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि दुनिया भर में करीब 1.1 अरब धूम्रपान करने वाले और लगभग साढ़े तीन करोड़ धूम्रपान रहित तम्बाकू उपयोगकर्ता हैं। सेन्टर फॉर डिजीज कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन के अनुसार सामान्यतः स्मोकर्स की मृत्यु नान-स्मोकर्स की तुलना में दस साल पहले ही हो जाती है। भारत में लगभग 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं। विकसित देशों में धूम्रपान के विषय में जागरूकता के परिणाम स्वरूप धूम्रपान का औसत गिरता जा रहा है, लेकिन विकासशील देशों में अभी भी धूम्रपान के सम्बंध में चेतना की कमी है। ज्ञात रहे कि धूम्रपान से ही फेफड़े की कई बीमारियां पैदा होती हैं।
तम्बाकू के धुएं से से 500 हानिकारक गैस एवं 7000 अन्य रासायनिक पदार्थ निकलते हैं। इनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। शोध द्वारा 70 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाये गये हैं। सिगरेट की तुलना में बीड़ी पीना ज्यादा नुकसानदायक होता हैं। बीड़ी में निकोटीन की मात्रा कम होने के कारण निकोटीन की लत के शिकार लोगों को इसकी आवश्यकता बार-बार पड़ती है। हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरूष अधिक धूम्रपान करते हैं। जब कोई धूम्रपान करता है तो बीड़ी या सिगरेट का धुआं पीने वाले के फेफडे़ में 30 प्रतिशत जाता है व आस-पास के वातावरण में 70 प्रतिशत रह जाता है। इससे परिवार के लोग और मित्र प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूम्रपान कहते हैं। विश्व भर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौत का कारण धूम्रपान है। धूम्रपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित हो जाता हे, ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में भी अवरोध आने लगता हे। धूम्रपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं- ब्रॉन्काइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट-अटैक, फॉलिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना आदि। यदि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रुप से धूम्रपान करती हैं तो उनके होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना व पैदाइशी बीमारियाँ होने आदि का खतरा बना रहता हैं।
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि धूम्रपान बन्द करने के एक वर्ष के भीतर दिल की बीमारियों की सम्भावना 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। फेफडे का कैंसर होने की सम्भावना 10 से 15 वर्षों में 50 प्रतिशत तक कम हो जाती हैं। शरीर में रक्त का संचार सुचारू रुप से होने लगता है और शरीर में आक्सीजन की मात्रा अच्छी हो जाती है, ब्रान्काइटिस व श्वसन तंत्र के अन्य रोगों की सम्भावना भी काफी कम हो जाती हैं। थकान कम होती है और मन प्रसन्न रहता है।
तम्बाकू सेवन के दुष्प्रभावों को देखते हुए केंद्र सरकार ने व्यापक कदम उठाए हैं। इस श्रंखला में (सिगरेटस एण्ड अदर टोबैको प्रोडक्ट एक्ट) कोटपा एक्ट-2003 के अंतर्गत तम्बाकू या उससे बने पदार्थो का प्रचार-प्रसार, खरीद-फरोख्त (बिक्री) एवं वितरण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई है। 31 मई 2004 विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर इस कानून को कार्यान्वित किया गया। विश्व समुदाय के लोग भी इस गम्भीर विषय पर एकजुट हैं। इसके लिये वर्ष 1994 में विश्व संगोष्ठी में सुझाव दिया गया कि धूम्रपान वाले उत्पादों पर टैक्स की बढ़ोतरी कर देनी चाहिये, इससे तम्बाकू उत्पादों पर बढ़े कराधान से उपजी मूल्य वृद्धि से उनके उपभोग में कमी आयेगी। लोगों की सेहत पर मंडराता खतरा कुछ हद तक कम होगा। सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होगा जिसका प्रत्यक्ष उपयोग तम्बाकू के खिलाफ जागरूकता पैदा करने और तम्बाकू जनित रोगों से पीड़ित लोगों के उपचार और पुनर्वास पर किया जाना चाहिए।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि विश्वभर में तम्बाकू उत्पाद एवं उपयोग के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर है। तम्बाकू के दूष्प्रभावों को देखते हुए डा. सूर्यकान्त पिछले पांच वर्षो (सन 2018) से भारत के प्रधानमंत्री एवं स्वास्थ्यमंत्री को पत्र लिखकर तम्बाकू के उत्पादन, भण्डारण तथा ब्रिकी पर रोक लगाने की मुहिम चला रहे हैं। दूसरी ओर इसके लिए दो कुतर्क दिये जाते हैं कि तम्बाकू उत्पाद से करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है तथा इससे काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। राजस्व की प्राप्ति एक मिथक ही है क्योंकि भारतीय वित्त मंत्रालय भारत सरकार 2015-2016 के आंकड़ों के अनुसार तम्बाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 31,000 करोड़ रूपये अर्जित होते हैं जबकि हम 10,4500 करोड़ रूपये तम्बाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रमुख बीमारियों पर ही खर्च कर देते हैं जैसे- फेफड़े का कैंसर, मुहँ का कैंसर आदि। जहां तक रोजगार की बात है तो जैसा कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों से कहा था कि आप लोग अपने खेतों में तम्बाकू जैसे जहर की खेती बंद करिये व इसके स्थान पर फूलों की खेती करिये और दुनिया को महका दीजिये। इसी सिद्धान्त को हमें अपनाना पडे़गा और तम्बाकू से रोजगार में लगे लोग फूलों के रोजगार में लग जायेंगे। जिस प्रकार सन 2019 में भारत के तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री डा. हर्षवर्धन द्वारा ई-सिगरेट और हीटेड तंबाकू उत्पादों पर राष्ट्रीय कानून बनाकर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया उसी प्रकार तम्बाकू के उत्पादन, भण्डारण एवं व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।