* केजीएमयू के प्रो विनोद जैन और प्रो सूर्यकांत फहरा रहे हिन्दी का परचम
* आम मरीजों को मिले उनकी भाषा में हर जवाब इसके लिए लिखीं हैं हिन्दी में किताबें
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। सिर्फ हिन्दी दिवस पर हिन्दी को याद करना ही नहीं, अपने उन कार्यों में हिन्दी को जीना जिनमें आम तौर पर हिन्दी का प्रयोग नहीं किया जाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं चिकित्सा जगत की। आम तौर पर चिकित्सक दवा, निदान से लेकर रोग तक का जिक्र अंग्रेजी में ही करते हैं। जिन चिकित्सकों का हम जिक्र कर रहे हैं वे सिर्फ चिकित्सक ही नहीं बल्कि चिकित्सा की शिक्षा देने वाले शिक्षक भी हैं, ये हैं किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के प्रो विनोद जैन और प्रो सूर्यकांत। प्रो सूर्यकांत ने तो अपना हिन्दी प्रेम डॉक्टरी की पढ़ाई के समय ऐसा दिखाया था जो कि इतिहास बन गया, उन्होंने अपनी एमडी की थीसिस हिन्दी में लिखी थी।
प्रो विनोद जैन
6 अक्टूबर 1957 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे डॉ विनोद जैन ने 1981 में उस समय के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (अब यूनिवर्सिटी) से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के उपरान्त 1985 में सर्जरी विषय की स्नातकोत्तर डिग्री भी यहीं से प्राप्त की। इसके बाद दो वर्ष से अधिक मूत्र-विज्ञान में प्रशिक्षण के बाद 16 वर्षो तक प्रख्यात बलरामपुर चिकित्सालय, लखनऊ में सर्जन के रूप में सेवा प्रदान की। पठन-पाठन और शोध में रुचि इन्हें पुनः अपने मातृ-संस्थान किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लौट आये। वर्तमान में वे प्रोफेसर, सर्जरी, निदेशक स्किल इंस्टीट्यूट एवं डीन पैरामेडिकल संकाय के पद पर कार्यरत हैं। अपने कार्यकाल में शल्य चिकित्सा के विभिन्न आयामों में अपने योगदान के लिए इन्हें अनेक राष्ट्रीय एव अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार तथा फेलोशिप से नवाज़ा गया है। इनमें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 2013 में बीरबल साहनी अवार्ड 40,000 नकद धनराशि के साथ तथा 2015 में 50,000 नकद धनराशि विश्वविद्यालय स्तरीय सम्मान के साथ दिये गये पुरस्कार शामिल हैं।
प्रो जैन बताते हैं कि मैंने नित्य-प्रति सुदूर क्षेत्र से आये हुए रोगियों एवं उनके तीमारदारों की व्यथा को बहुत पास से अनुभव किया है। मैंने देखा है कि रोगी एवं तीमारदारों के मानस-पटल पर रोग को लेकर बहुत सी आशंकायें उत्पन्न होती हैं। बहुधा उनकी सभी आशंकाओं का निराकरण नहीं हो पाता और रोगी मानसिक तनाव में रहता है।
एक चिकित्सक द्वारा अक्सर अस्पताल के व्यस्त कार्यक्रमों से समय निकालकर रोगी एवं तीमारदारों की समस्त जिज्ञासाओं का निराकरण करना संभव नहीं हो पाता। रोगी भी बार-बार चिकित्सक के पास जाने में सकुचाता है। अपनी शंकाओं का पूर्ण समाधान न पाकर वह तनावग्रस्त रहता है।
इन सभी पहलुओं पर दृष्टिपात करने पर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इन जिज्ञासाओं के शांत होने से रोगी के मस्तिष्क को शान्ति मिल सकेगी। रोगी और तीमारदार जहाँ एक ओर अनावश्यक डर से मुक्ति पायेंगे, वहीं दूसरी ओर रोग के गंभीर होने की दशा में रोग के प्रति और अधिक जागरुक हो जायेंगे। बस यहीं से शुरुआत हुई रोगों को लेकर हिन्दी में पुस्तकें लिखने की।
प्रो जैन द्वारा हिन्दी में लिखी गयीं विज्ञान (चिकित्सा) सम्बन्धी पुस्तकें
- गुर्दे की पथरी – 2010
- प्रोस्टेट के रोग – 2011
- गॉल ब्लैडर (पित्ताशय) की पथरी – 2012
- स्तन के रोग – 2014
- प्राथमिक उपचार – 2018
- सामान्य वार्ड प्रक्रियाएं – प्रेस में
- स्वास्थ्यकर्मियों में संक्रमण से बचाव तथा
- जैव अपशिष्ट प्रबंधन
अन्य –
9.अनुभूति (हिन्दी काव्य संग्रह) – 2013
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के लिए वर्ष 2018 में चिकित्सा क्षेत्र से सम्बन्धित पुस्तक (लेखन प्रक्रिया में) –
- ट्रॉमा – बचाव, उपचार एवं प्रबन्धन
प्रो सूर्यकांत
वर्तमान में केजीएमयू के रेस्परेटरी विभाग के विभागाध्यक्ष, इंडियन चेस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व चेयरमैन यूपी स्टेट टास्क फोर्स फॉर टीबी कंट्रोल प्रो सूर्यकांत का हिन्दी प्रेम अपनी पढ़ाई के समय से ही है। प्रो सूर्यकांत ने वर्ष 1991 में जब वह एमडी कर रहे थे, उस समय अपनी थीसिस हिन्दी में लिखी थी। हिन्दी में थीसिस लिखने पर सवाल खड़ा हुआ तो मामला विधानसभा तक पहुंचा, इसके बाद विधानसभा से विशेष अनुमति मिलने के बाद उनकी हिन्दी में लिखी थीसिस मान्य हुई।
प्रो सूर्यकांत बताते हैं कि हिन्दी में थीसिस पर हुई कवायद के बाद उनकी हिन्दी के प्रति जिद और बढ़ गयी, हिन्दी को चिकित्सा क्षेत्र में स्थापित करने के लिए एक साल बाद 1992 में जब वाराणसी में जब कॉन्फ्रेंस आयोजित हुई तो उन्होंने विश्व का पहला शोधपत्र हिन्दी में प्रस्तुत किया। प्रो सूर्यकांत ने एनएमओ जरनल में अपना सम्पादकीय हिन्दी में लिखा। प्रो सूर्यकांत का हिन्दी प्रेम वहीं पर नहीं थमा और उन्होंने रोगों को लेकर लोगों को जागरूक करने और आम आदमी तक आम आदमी की भाषा में रोगों की जानकारी पहुंचे, इसके लिए उन्होंने हिन्दी में पुस्तकें लिखीं हैं। प्रो सूर्यकांत को हिन्दी प्रेम के लिए हिन्दी संस्थान द्वारा 2013 में विश्वविद्यालय स्तर का सम्मान दिया जा चुका है, जबकि इलाहाबाद की एक संस्था द्वारा तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। हालांकि कुछ सम्मान और पुरस्कार की बात करें तो प्रो सूर्यकांत पुरस्कारों के शतक से आगे बढ़ चुके हैं।
प्रो सूर्यकांत की हिन्दी में लिखी पुस्तकें
- जानिये स्वाइन फ्लू को
- टीबी क्षय रोग : प्रश्न आपके उत्तर हमारे
- फ्लू से बचाव
- खर्राटे हैं खतरनाक
- टीबी एक सम्पूर्ण जानकारी
- एलर्जी
- टीबी मुक्त भारत
इन पुस्तकों को लिखने और हिन्दी के प्रति विशेष प्रेम देखकर ही पिछले साल मॉरीशस में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में विदेश विभाग द्वारा भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया था। प्रो सूर्यकांत का हिन्दी प्रेम साल भर चलता रहता है, अपने इस हिन्दी प्रेम और मरीज की आसानी के लिए उनके विभाग में आने वाले मरीजों को दवायें और उसे खाने का डोज हिन्दी में लिखा जाता है।