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युवाओं में बढ़ रहा हार्ट अटैक का खतरा, रोका न गया तो…

-आईएमए में आयोजित चर्चा में विशेषज्ञों ने दी हृदय रोग से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारियां

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। युवाओं में हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा बढ़ रहा है, अगर इसे पहचानते हुए इसका जल्दी इलाज नहीं किया जाता है तो यह मृत्यु दर में वृद्धि का एक प्रमुख कारण बन जायेगा।

यह बात मेदांता अस्‍पताल के इंटरवेंशनल कार्डियालॉजी के डायरेक्टर डॉ नकुल सिन्हा ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) लखनऊ की ओर से शनिवार को रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में आयोजित एक इंटरेक्टिव सेशन में कही। उन्‍होंने कहा कि हार्ट अटैक में ईसीजी, ब्लड टेस्ट के साथ मरीज की हिस्ट्री मरीजों को बचने में बहुत मददगार है। इसके अलावा प्राइमरी एंजियोप्लास्टी यानी लक्षणों की शुरुआत के पहले कुछ घंटों में किया जाने वाला इलाज सबसे अच्छा तरीका है। डॉ. सिन्हा ने जानकारी दी कि मेदांता लखनऊ में हार्ट अटैक के मरीजों का प्रोसीजर करने के लिए एक सलाहकार डीएम कार्डियोलॉजी की टीम 24 घंटे उपस्थिति रहती है।

उन्होंने बताया कि अस्पताल में टीएवीआर यानी नॉन सर्जिकल एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट भी शुरू कर दिया है। यह तकनीक विशेष रूप से हाई रिस्क वाले मरीजों के लिए है। इस सर्जरी के बाद मरीज को कुछ ही दिनों में छुट्टी दे दी जाती है।

एडवांस इमेजिंग तकनीक पर डॉ. सिन्हा ने बताया कि हम नियमित रूप से एडवांस इमेजिंग तकनीकों जैसे आईवीयूएस यानी इंट्रावास्कुलर अल्ट्रासाउंड और ओसीटी यानी ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी का उपयोग सटीक इलाज के लिए कर रहे हैं। वहीं पेसमेकर की आमतौर पर प्रयोग की जाने वाली वैराइटी के अलावा हम हृदय गति नियंत्रित करने के लिए सीआरटी और शारीरिक पेसिंग जैसे विशेष उपकरण भी लगा रहे हैं। डॉ. सिन्हा बताते हैं कि एआईसीडी इम्प्लांटेशन गंभीर एरिथमिया को वापस लाकर जीवन भी बचाता है।

डॉ सिन्हा ने बताया कि कोरोना काल में हार्ट के मरीजों (हृदय रोगियों) को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि कोरोना के कई ऐसे मरीजों को भी हार्ट अटैक हुआ है, जो पहले से हार्ट पेशेंट नहीं है और ना ही उनको दिल से जुड़ी बीमारी थी। डॉ. सिन्हा ने कहा कम से कम 15 से 20 प्रतिशत रोगी हार्ट में वायरस के होने से प्रभावित हो रहे हैं। अधिकांश मामलों में मरीजों को सीने में दर्द की शिकायत होती है, हम उन्हें बचा भी लेते हैं, लेकिन कुछ मामलों में मरीज को सीने में इतनी तेज और तीव्र दर्द होता है कि उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। 10-15% तक उनका हार्ट काम करना बंद कर देता है, जिससे हमें पता चलता है कि उन्हें मृत्यु के गंभीर जोखिम का अंदाजा लगता है।

बीआईएमए बाईपास

मेदांता हॉस्पिटल के डॉ गौरांग मजूमदार ने जानकारी दी कि कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी (सीएबीजी) कोरोनरी आर्टरी डिजीज (हार्ट वैसल्स में ब्लॉकेज) और मल्टी वैसल्स सीवियर डिजीज के लिए वैन्स कॉन्डिट की पारंपरिक तकनीक से भी प्रभावी तकनीक है। दोनों आंतरिक मैमरी आर्टरी (बीआइएम, चेस्ट आर्टरी) बाईपास मरीजों के लिए बहुत अच्छा रिजल्ट देते हैं। बीआईएमए बाईपास से लंबे समय तक सर्वाइवल संभव है स्ट्रोक के बहुत कम आशंका होती है और आगे इलाज की भी कम जरूरत पड़ती है। पांच प्रतिशत से भी कम सर्जन इस तकनीक की सलाह देते हैं क्योंकि ये बहुत ही जटिल सर्जरी है। हम बीआईएमए बाईपास हर इलेक्टिव मरीजों को करने की सलाह देते हैं। मेदांता में 500 से ज्यादा मरीज इस तकनीक का लाभ उठा चुके हैं।

कार्डियोवैस्‍कुलर सिस्‍टम का सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण अंग होता है हृदय

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर मेदांता हॉस्पिटल के क्लीनिकल एंड प्रीवेंटिव कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ आर के सरन ने बताया कि हृदय कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है क्योंकि सारे शरीर में रक्त पंप करने की जिम्मेदारी इसी की होती है। यह एक मांसपेशियों से बना अंग होता है और इसे खुद के संचालन के लिए ऑक्सीजन युक्त रक्त की आवश्यकता पड़ती है। हृदय तक रक्त कोरोनरी धमनियों द्वारा पहुंचाया जाता है। उन्‍होंने कहा कि हृदय स्वस्थ रहे इसके लिए इन धमनियों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी हो जाता है। यदि ये धमनियां या इनसे निकलने वाली सह-धमनियां, किसी कारण से ब्लॉक हो जाती है, तो यह मायोकार्डियल इन्फार्क्शन या हार्ट अटैक का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि मेदांता हॉस्पिटल एक छत के नीचे सभी तरह केस को लेने के तैयार रहता है।

कार्यक्रम के अंत में आईएमए के अध्‍यक्ष डॉ मनीष टंडन और सचिव डॉ संजय सक्सेना ने मेदांता हॉस्पिटल के विशेषज्ञ चिकित्सकों को इस महत्‍वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्‍यवाद दिया।  इस मौके पर आईएमए लखनऊ के प्रेसीडेंट इलेक्‍ट डॉ जेडी रावत व निवर्तमान अध्‍यक्ष डॉ रमा श्रीवास्‍तव, डॉ मनोज अस्‍थाना भी उपस्थित रहे।

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