ट्रॉमा सेंटर में चिकित्सकों के अथक प्रयासों से बच सकी जान
लखनऊ। मनोरंजन के लिए शौक करना खराब नहीं है, लेकिन अगर शौक किसी की जान का दुश्मन बन जाये तो ऐसा शौक किस काम का। पतंगबाजी से होने वाली दुर्घटनायें कुछ इसी तरफ इशारा करती हैं। इसे उड़ाने में इस्तेमाल होने वाली डोर से दुर्घटनाएं सुनायी पड़ती रहती हैं। ऐसा ही एक हादसा पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में व्यस्ततम बर्लिन्गटन चौराहे पर हुआ जब बीएससी की छात्रा गरदन में मांझा (पतंग की डोर में आगे की ओर बंधा तागा) फंसने से उसकी सांस की नली और भोजन नली कट गयीं। केजीएमयू के चिकित्सकों के अथक प्रयास और युवती की दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते युवती की जान बच सकी। आपको बता दें रोक के बावजूद सड़क पर बेतहाशा भागते पतंगबाज, मांझे का चलन बंद करवा पाने में प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है।
ट्रॉमा सेंटर स्थित आरआईसीयू वार्ड के प्रभारी डॉ वेद प्रकाश ने आज एक पत्रकार वार्ता में इस युवती की उपस्थिति में इस केस के बारे में जानकारी दी। युवती स्थानीय बालागंज की रहने वाली सुरभि वर्मा ने स्वयं दुर्घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पिछली 25 दिसम्बर को वह करीब ढाई बजे बर्लिन्टन चौराहे होते हुए चारबाग स्टेशन एमएसटी बनवाने स्कूटी से जा रही थी कि चौराहे पर अचानक पतंग का मांझा उसके गले में फंस गया, जब तक वह गाड़ी रोकती तब तक गरदन में फंसा मांझा गरदन को काटता चला गया, उसने बताया कि उसने तुरंत गाड़ी छोड़ दी और हाथ से मांझे को हटाया इस चक्कर में उसकी उंगली भी कट गयी।
सुरभि ने बताया कि इसके बाद वह खून से लथपथ वहां से गुजरने वाले लोगों को देख्ती रही लेकिन अफसोस कोई रुका नहीं। उसने बताया कि तभी मेट्रो के कार्य में लगे कर्मचारी ने उसे उठाया और लेकर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी हॉस्पिटल पहुंचे जहां से उसे ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया गया। डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर पहुंचने के बाद देखा गया कि युवती की ट्रैकिया (सांस की नली) पूरी तरह कट गयी थी तथा उसके पीछे भोजन नली भी थोड़ी कट गयी थी। उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह थी कि कैरोटेड आर्टरी बच गयी थी अन्यथा जान बचना मुश्किल था। इसके बाद तुरंत ही डॉ अनीता सिंह के नेतृत्व में ट्रॉमा सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी की टीम ने ऑपरेशन किया जिसमें ट्रैकिया को जोड़ा गया तथा भोजन नली की भी सर्जरी की गयी।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि सांस नली और भोजन नली आपस में चिपक गयी थीं जिससे खून और भोजन के अंश फेफड़ों में चले गये थे, इसकी वजह से युवती को सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी। उन्होंने बताया कि उसे 28 दिसम्बर को आरआईसीयू में भर्ती किया गया जहां ब्रॉन्कोस्कोपी कर ट्रैकियोस्टॉमी करते हुए नलियों और फेफड़ों की सफाई की गयी। उन्होंने बताया कि तीन बार ब्रॉन्कोस्कोपी करनी पड़ी। डॉ वेद ने बताया कि 4 जनवरी को युवती को आरआईसीयू से हटाकर वार्ड में शिफ्ट किया गया है। उन्होंने बताया कि सांस लेना आसान बनाने के लिए युवती के गले में एक नली डाली गयी थी जिसे आज निकाला गया है। अब युवती स्वस्थ है और उसकी छुट्टी किये जाने की तैयारी है। उन्होंने बताया कि इस केस में ट्रॉमा सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी की टीम के साथ ही आरआईसीयू की टीम बधाई की पात्र है, जिसने अपने अथक प्रयासों से मरीज की जान बचाने का काम किया है। इस मौके पर मरीज के घरवाले भी उपस्थित थे।
ट्रॉमा सर्जरी विभाग के प्रभारी डॉ संदीप तिवारी, डॉ समीर मिश्र ने बताया कि चाइनीज मांझा से मुंह, गरदन, हाथ आदि कटने के केस अक्सर आते रहते हैं। उन्होंने बताया कि उस दिन दो केस मांझे से कटने के आये थे। इनमें एक की छुट्टी जल्दी हो गयी थी लेकिन इस युवती को प्रॉब्लम होने पर आरआईसीयू रेफर किया गया था। उन्होंने बताया कि अक्सर इस तरह घायल हुए मरीजों को गहन चिकित्सा के लिए विभिन्न आईसीयू वार्डों में भेजा जाता है।