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आखिर ऐसा क्यों …? सेकुलर शब्द का अर्थ शब्दकोष में ‘लौकिक’, संविधान में ‘पंथनिरपेक्ष’ और बोला जा रहा है ‘धर्मनिरपेक्ष’

-सुनियोजित तरीके से हमारी भारतीय कालगणना समाप्त करने की रची गयी साजिश

-संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में संगोष्ठी में बोले सर्वेश चंद्र द्विवेदी

-नव वर्ष चेतना समिति ने आरआर इंस्टीट्यूट के सहयोग से आयोजित की संगोष्ठी

सर्वेश चंद्र द्विवेदी

सेहत टाइम्स

लखनऊ। कितनी अजीब बात है कि शब्दकोष में सेकुलर शब्द का अर्थ लौकिक है, संविधान में पंथ निरपेक्ष और बोला जा रहा है धर्मनिरपेक्ष। अफसोस इस पर विरोध नहीं जताया जाता है। यह जो अंग्रेजी का प्रभाव है इससे हम अपने ही ज्ञान को नकारने का काम करते हैं, और इसमें शिक्षण संस्थाएं भी आगे हैं। आज लोग आरएसएस को गाली देते हैं, लेकिन संघ चुपचाप बिना विरोध जताये अपना कार्य कर रहा है, कोई जवाब नहीं देता। विश्व शांति की अवधारणा मानने वाले संघ का कार्य भारत ही नहीं 56 देशों में किसी न किसी रूप में चल रहा है। अटल बिहारी ने अपना पहला भाषण हिन्दी में दिया, आज विश्व हिन्दी सम्मेलन मनाया जाने लगा, आज कई देशों में हिन्दी भाषा को पढ़ाया जाने लगा। आज जब प्रधानमंत्री मोदी विदेश जाते हैं तो वहां के प्रवासी मोदी-मोदी, भारत माता की जय बोलते हैं तो वहां के राजनेताओं, ज्ञानियों में खलबली मच जाती है, कि कहीं ऐसा न हो जाये कि पूरा विश्व हिन्दूमय हो जाये इसलिए इसका विरोध होता है। उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं विश्व में परिवर्तन लाइये।

यह बात राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड के प्रभारी निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने शनिवार 4 जनवरी को सीतापुर रोड स्थित आर आर इंस्टीट्यूट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोेजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए कही। संगोष्ठी का आयोजन नव वर्ष चेतना समिति एवं आरआर इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। संगोष्ठी का विषय ‘भारतीय कालगणना की वैज्ञानिकता एवं ऐतिहासिक महत्व’ था। उन्होंने कहा कि सतयु्ग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग के बाद सतयुग आयेगा, इस सतयुग को लाने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कार्य कर रहा है, और इसी को लोग गाली देते हैं।

उन्होंने कहा कि सुनियोजित तरीके से हमारी भारतीय कालगणना समाप्त करने और पश्चिमी कालगणना स्वीकार करने की चाल चली गयी। उन्होंने कहा कि हमारे यहां चार युगों की बात होती है कलयुग का कालखंड है 4,32,000 करोड़ वर्ष, द्वापर युग का था 8,64,000 करोड़ वर्ष उसके पहले त्रेता काल था, त्रेता काल में भगवान राम हुए और ये इतिहासकार कहते हैं कि ये बहुत बाद की बात है, ज्यादा से ज्यादा 2000 वर्ष की होगी। विज्ञान यह कह रहा है शोध से पता चला है कि रामसेतु 17 लाख वर्ष पूर्व का है, महाभारत 5000 वर्ष पूर्व, यानी हमारी कालगणना विज्ञान से पुष्ट हो रही है और सत्य की खोज विज्ञान कर रहा है, भगवान कृष्ण ने भी कहा है कि हमें ज्ञानी प्रिय हैं, और ज्ञानी से विज्ञानी प्रिय हैं, ज्ञान को जिसने क्रिया के रूप में करके दिखाया हो, वह विज्ञान है।

उन्होंने कहा कि कालगणना को समझने के लिए तीन पुस्तकों को समझना होगा पहली है दुर्गा सप्तशती, इसमें ऋग वेद, यजुर्वेद और सामवेद तीनों विद्यमान हैं। प्रथम अध्याय ऋग वेद है, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ यजुर्वेद है और पंचम से लेकर अंत तक सामवेद हैं। वेद का ज्ञान करने के लिए दुर्गा सप्तशती को समझना होगा, आत्मसात करना होगा। दूसरी पुस्तक है रुद्रअष्टाधायी, जिसमें सृष्टि क्या है, काल क्या है और इसका प्रभाव क्या है, प्रकृति क्या है और प्रकृति का संरक्षण क्या है और जीव के लिए सुख शांति क्या है, यह इससे हमें पता चलेगा। तीसरी पुस्तक है भगवतगीता, इसमें ज्ञान, कर्म और भक्ति तीनों का विवेचन है। आज तीनों के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता है।

श्री द्विवेदी ने विक्रम संवत की स्थापना करने वाले सम्राट विक्रमादित्य के बारे में बोलते हुए कहा कि विक्रमादित्य शब्द का अर्थ वि से विस्तार भी है और वि से व्याप्ति भी है, व्याप्ति का क्रम यानी विक्रम, आदित्य का मतलब सूर्य, सूर्य के बिना शक्ति नहीं, और समय सूर्य ही है, इसलिए कालगणना की जब बात होगी तो सूर्य और चंद्र दोनों से कालगणना होती है। भारत ही ऐसा देश है जहां कालगणना सूर्य और चंद्र से की जाती है। काल का अर्थ है समय यानी समय की गणना। वर्ष काल की एक इकाई है। इसको समझने की व्यवस्था संस्कृत भाषा है। डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भी कहा था कि भारत की राष्ट्रभाषा संस्कृत होनी चाहिये।

श्री द्विवेदी ने कहा कि हम विश्वबंधुत्व में विश्वास रखते हैं। लोगोंं को भारतीय जीवन दर्शन में ही शांति मिलेगी। उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर को पढ़ने के लिए दत्तोपंत ठेंगरी, जो उनके साथ रहे भी हैं, की लिखी पुस्तक पढि़ये। डॉ भीमराव अम्बेडकर की राष्ट्रभक्ति को जानने की जरूरत है। डॉ अम्बेडकर ने चार पत्र निकाले पहला मूक पत्र उनके लिए, जो लोग अपनी आवाज नहीं उठा सकते थे, दूसरा वंचित पत्र शिक्षा, समाज, ज्ञान से वंचित लोगों के लिए, तीसरा जनता के लिए निकाला, चौथा पत्र प्रबुद्ध भारत के ​लिए निकाला। इस प्रकार उन्होंने पूरे भारत की संकल्पना को स्थापित करने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि डॉ अम्बेडकर को भी लगता था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ठीक कार्य कर रहा है, डॉ अम्बेडकर ने संघ से कहा भी था कि आपकी कार्यशैली बहुत धैर्य की है, इसलिए इसमें बहुत समय लगेगा। उन्होंने कहा कि संघ अपनी सौवी वर्षगांठ मना रहा है, उन्होंने अपील की कि हिन्दुत्व को जगाने के लिए अपने को कर्तव्यों के साथ समर्पित करें।

डॉ गिरीश गुप्ता

नव संवत्सर पर सभी को बधाई संदेश भेजने का आह्वान किया डॉ गिरीश गुप्ता ने

इससे पूर्व माता सरस्वती की मूर्ति और सम्राट विक्रमादित्य के चित्र पर पुष्पों से नमन कर दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। सभी अतिथियों का पुष्प गुच्छ से स्वागत किये जाने के बाद नव वर्ष चेतना समिति के अध्यक्ष डॉ गिरीश गुप्ता ने आये हुुए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस परिसर में आकर बहुत पॉजिटिविटी महसूस हो रही है। आज के कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि नव वर्ष चेतना समिति की स्थापना वर्ष 2009 में लखनऊ के पूर्व मेयर डॉ एससी राय की पहल पर हुई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य आजादी मिलने के बाद भी सरकार द्वारा भुला दिये गये सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित किये गये विक्रम सम्वत के बारे में लोगों को बताने के लिए, तथा प्रतिवर्ष नवसंवत्सर के अनुसार नववर्ष मनाने के लिए प्रेरित करना था। उन्होंने बताया ​कि सम्राट विक्रमादित्य ने ग्रहों, नक्षत्रों के आधार पर एक वैज्ञानिक कैलेंडर का निर्माण किया जिसका नाम रखा गया विक्रम संवत कैलेंडर। इसकी गणना उन्होंने धरती के प्रादुर्भाव से करायी। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के समय भी विक्रम संवत कैलेंडर को भुलाया नहीं गया था, लेकिन आजादी के बाद एक साजिश के तहत शक संवत कैलेंडर को अपनाया गया, विक्रम संवत कैलेंडर को छोड़ दिया गया। जबकि आज भी हमारे त्यौहार, शादी-विवाह, मुंडन, जन्म, मृत्यु आदि के कार्यक्रम सभी विक्रम संवत की ति​थियों से तय किये जाते हैं।

उन्होंने कहा कि नव वर्ष चेतना समिति नवसंवत्सर पर 2009 से लगातार कार्यक्रम करती आ रही है। उन्होंने बताया कि नव वर्ष चेतना समिति के उद्देश्य को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर राम नाईक ने बहुत प्रोत्साहित करते हुए सराहा और उनके व्यक्तिगत प्रयास से 22 दिसम्बर, 2016 को सम्राट विक्रमादित्य पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उन्होंने उपस्थित विद्यार्थियों का आह्वान किया कि इस बार 30 मार्च, 2025 से नव संवत्सर प्रारम्भ हो रहा है, इस दिन सभी को बधाई संदेश अवश्य भेजें।

उन्होंने कहा कि लॉर्ड मैकाले ने मई 1835 में ब्रिटिश संसद में कहा था कि मैंने पूरा भारत घूमा है और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि भारत पर अगर राज करना है तो यहां के लोगों की मानसिकता को तोड़ने के लिए यहां की संस्कृति पर प्रहार करना होगा। यही बाद में भारतीयों के साथ हुआ हमारे गुरुकुल, भाषा, कपड़े सभी बदलने शुरू हुए, इसीलिए 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हम पॉलिटिकली आजाद हुए सामाजिक रूप से नहीं। भारतीय संस्कृति को जितना नीचा दिखाया गया, जितना नैतिक पतन हुआ, उतना अंग्रेजों के समय में भी नहीं हुआ।

डॉ सूर्य प्रकाश त्रिपाठी, डॉ रेखा त्रिपाठी, डॉ सुनील अग्रवाल, डॉ अर्चना मिश्रा, शोभित नारायण अग्रवाल (बायें से दायें)

आधे गिलास पानी की थ्योरी समझायी डॉ अर्चना मिश्रा ने

लाइफ कोच एवं मेंटर डॉ अर्चना मिश्रा ने कहा कि हमारे ऋषि भी किसी इंजीनियर, साइंटिस्ट से कम नहीं थे। मनुष्य का जीवन दूसरे जीवधारियों से जो अलग होने की वजह है वह है ज्ञान, लेकिन क्या हम अपने ज्ञान का सदुपयोग करते हैं ? क्या हम अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, हम अपने स्वधर्म यानी अपने कर्तव्य का पता है, इसके बारे में जरूर सोचें। उन्होंने कहा कि अथर्व वेद में पृथ्वी को माता कहा गया है, मानव उसका पुत्र, इसका खयाल हमें ऐसे रखना चाहिये जैसे कि हम अपनी माता का ध्यान रखते हैं। इसी में लिखा है कि इसका दोहन नहीं करना चाहिये। वैदिक ऋचाओें में लिखा है कि प्रकृति हम पर निर्भर नहीं है, हम प्रकृति पर निर्भर हैं। जो पश्चिमी देश आज पढ़ रहे हैं, वे हमारे डीएनए में है। उन्होंने कहा कि पानी की बर्बादी को रोकने के लिए हमारे घर में जो मेहमान आयें तो उन्हें आधा गिलास पानी दें क्योंकि ज्यादातर लोग दो घूंट पीने के बाद रख देते हैं, जो कि फेंका जाता है। उन्होंने कहा कि टिशू पेपर न प्रयोग करें क्योंकि ये पेड़ से बनते हैं, इससे पेड़ नष्ट होते हैं। अपनी कमियां ढूंढि़ये, उसे नोट करिये, फिर सुधार करिये। उन्होंने कहा कि यह नासा ने भी कहा है कि पढ़ने के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे अच्छा है। हमारे अंदर बहुत क्षमता है, इसे बाहर निकालने की जरूरत है। नव वर्ष चेतना समिति की संरक्षक रेखा त्रिपाठी ने विक्रमादित्य के इतिहास के बारे में बताते हुए उनके कहा कि विक्रमादित्य को भूलना ही हमारी भूल है।

बिना संघर्ष किये कोई महान नहीं होता : शोभित नारायण

फ्यूचर ट्रस्ट के संस्थापक व काउंसलर शोभित नारायण अग्रवाल ने लखनऊ के अंदाज में शुरुआत करते हुए कहा कि ”जिंदगी बहुत हसीन है, कभी हंसाती है, तो कभी रुलाती है, लेकिन जो जिन्दगी की भीड़ में खुश रहता है, जिन्दगी उसी के आगे सिर झुकाती है।” उन्होंने कहा कि खुशियां हम अपने जीवन में कैसे लायें, इसके बारे में हमें समझना बहुत जरूरी है, खुश रहने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि जीवन का उद्देश्य क्या है। हमारे पेशा ही हमारा उद्देश्य नहीं होता है, इसके साथ ही आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यक्तिगत, शरीर के विकास से सम्बन्धित पहलू भी हैं इसके प्रति भी लक्ष्य बनाना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम सूरज की तरह नहीं चमक सकते हैं तो चंद्रमा की तरह चमकें, चंद्रमा नहीं तो तारे की तरह चमकें, तारे की तरह नहीं चमक सकते हैं तो दीपक की तरह चमकें, दीपक की तरह नहीं चमक सकते हैं तो जुगनू की तरह चमकें, लेकिन हमें चमकना जरूरी है। उन्होंने अपने सम्बोधन का अंत भी एक कविता से करते हुए कहा कि ”बिना संघर्ष किये कोई महान नहीं होता, बिना मेहनत किये जय जयकार नहीं होता, जब तक नहीं पड़ती है हथौड़ों की चोट, तब तक कोई पत्थर भी किसी के लिए भगवान नहीं होता।”

सचिव डॉ सुनील अग्रवाल ने नव चेतना समिति के बारे में जानकारी देते हुए विद्यार्थियों से कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप लोग जो पढ़ाई कर रहे हैं, उससे अलग आज आपको काफी जानकारी मिली होगी। जो भी ज्ञान प्राप्त हुए है उसे आप लेकर जायेेंगे और विश्व में जो भी भूमिका आपकी है उसमें यह ज्ञान सहायक होगा। आरआर इंस्टीट्यूट के चेयरमैन अनिल कुमार अग्रवाल ने सभी अतिथियों का स्मृति चिन्ह एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया।

धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए आरआर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ सूर्य प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि विक्रम संवत को जो हम लोग भूलते जा रहे थे, उससे परिचय कराने के लिए आयोजित की गयी इस गोष्ठी में भाग लेने वाले सभी लोगों का मैं धन्यवाद अदा करता हूं। इस मौके पर नव वर्ष चेतना समिति के सदस्य मुदित सिंघल, बाल संरक्षण आयोग के सदस्य श्याम जी, भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय की डॉ रंजना, पुनीता अवस्थी, एसके त्रिपाठी, कमलेन्द्र मोहन एवं राकेश कुमार यादव, एडवोकेट के अलावा अरुण कुमार मिश्रा, कार्यालय प्रभारी, आरआर इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर चित्रांशु अग्रवाल, संकाय सदस्य व बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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