-समय का तकाजा है कि चारों विधाओं के चिकित्सक मिलकर मरीज को स्वस्थ करें
-आरोग्य भारती ने ब्लैक फंगस पर आयोजित किया वेबिनार
-लोहिया संस्थान, एसजीपीजीआई के विशेषज्ञ भी हुए शामिल

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोविड महामारी ने यह सिद्ध कर दिया है कि चिकित्सा की चारों विधाएं मॉडर्न, आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी विधाएं कोविड और इससे सम्बन्धित होने वाले रोगों का इलाज अकेले करने में सक्षम नहीं है, तो ऐसे में समय का यह तकाजा है कि चारों पैथी मिलजुल कर इससे निपटें, क्योंकि हमारा अंतत: उद्देश्य मरीज को स्वस्थ करना है।
यह बात ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) के साथ ही व्हाइट व अन्य फंगस को होम्योपैथिक दवाओं से पूरी तरह ठीक करने संबंधी सफल शोध करने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने आज 2 जून को लघु उद्योग भारती व आरोग्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए कही। वेबिनार का विषय ‘कोविड महामारी और उससे उत्पन्न संक्रमण, कारण, बचाव, समाधान तथा पोस्ट कोविड मैनेजमेंट’ था। ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्ता का फंगस पर सफल शोध 1995 में एशियन होम्योपैथिक जर्नल में प्रकाशित हो चुका है। यही नहीं केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने भी इसके इलाज के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी हैं।

मंत्रालय द्वारा सभी होम्योपैथिक प्रैक्टिशनर्स के लिए जारी इस सूचना में कहा गया है कि वे फंगस पर हुई सफल रिसर्च व स्टडी के बाद अनुशंसित दवाओं का प्रयोग सभी सावधानियां बरतते हुए लक्षणों के आधार पर ब्लैक फंगस के डायग्नोस्ड और सस्पेक्टेड केसेज के प्रबंधन में कर सकते हैं। जारी सूचना में राइनो ऑरबिटोसेरेब्रल म्यूकरमाइकोसिस, पल्मोनरी म्यूकरमाइकोसिस, क्यूटेनियस म्यूकरमाइकोसिस,, गैस्ट्रोइन्टस्टाइनल म्यूकरमाइकोसिस, सेप्टीसीमिया, रेस्टोरेटिव परपस के लिए विभिन्न प्रकार की होम्योपैथिक दवाओं को रिकमंडेड किया गया है, साथ ही यह भी कहा गया है कि इसके अतिरिक्त अलग-अलग लक्षणों के अनुसार दूसरी दवायें भी दी जा सकती हैं।


डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने सम्बोधन में आगे कहा कि ये फंगस का रोग नया नहीं है। यह पूरी तरह ठीक हो सकता है। फंगस पर उनकी पहली रिसर्च एनबीआरआई में वर्ष 1982 में हुई थी, इसके बाद दूसरी रिसर्च एनएलआरसी में हुई जिसका पेपर वर्ष 1995 में एशियन होम्योपैथिक जर्नल में प्रकाशित हुआ। उन्होंने कहा कि आजकल रोज ही ब्लैक फंगस से लोगों की मौत के समाचार सुनायी पड़ते हैं, जो काफी पीड़ादायक है, ऐसे समय दूसरी पैथी के डॉक्टरों से मेरी विनती है कि मिलजुल कर काम करें और मरीजों की जान बचायें, जहां मेरी सेवाओं की आवश्यकता हो, मैं देने को तैयार हूं। डॉ गुप्ता ने कहा कि मूल रूप से ऐलोपैथिक डॉक्टर होने के बाद भी होम्योपैथी के जनक डॉ सैमुअल हैनीमैन ने अपनी किताब ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन organan of medicine में लिखा है The physician’s high and only mission is to restore the sick to health, उन्होंने कहा कि डॉ हैनिमैन ने यह बात लिखते समय यह किसी पैथी का नाम नहीं लिखा, उनका साफ कहना था कि डॉक्टर का अकेला सबसे बड़ा ध्येय मरीज को स्वस्थ करना है। उन्होंने कहा कि कोविड पर मैंने इसीलिए आजतक कोई दावा नहीं किया क्योंकि यह रोग सभी के लिए नया है, चाहे वह होम्योपैथी हो या मॉर्डन पैथी, लेकिन चूंकि फंगस पर शोध करके लैब में स्टडी कर के सफलता पायी है तो ऐसे में इस बारे में मैं इलाज की बात कह रहा हूं।

उन्होंने कहा कि फंगस यूं तो हर जगह मौजूद है, लेकिन यह अटैक उन्हीं पर करती है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, उन्होंने कहा कि फंगस शुगर में तेजी से ग्रो करती है, इसलिए जिन लोगों को डायबिटीज है और कोरोना होने पर उन्होंने स्टरॉयड का सेवन किया जिससे इम्युनिटी कमजोर होने पर फंगस का शिकार हो गये। उन्होंने कहा कि इससे बचने का एक ही तरीका है अपनी इम्युनिटी मजबूत रखें और बिस्तर, तकिया, कंघा आदि की सफाई रखें। उन्होंने बताया कि इसका अटैक मुंह, नाक, आंख पर ज्यादातर होता है।
वेबिनार में विशिष्ट अतिथि डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ ज्योत्सना अग्रवाल ने कहा कि म्यूकरमाइकोसिस जिसे ब्लैक फंगस का नाम दिया है, यह हर जगह पाया जाता है, इसके पार्टिकल्स नंगी आंखों से नहीं दिखायी देते हैं। यह कोविड की तरह संक्रामक रोग नहीं है, यह उन्हीं पर अटैक करती है जिनकी इम्युनिटी कमजोर होती है। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में इसके ज्यादा केस आने की वजह दूसरी लहर में जान बचाने के लिए स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल होना है। उन्होंने कहा कि यही नहीं लोगों ने सोशल मीडिया पर मैसेज के आधार पर भी इसका सेवन किया है, जिसे जरूरत नहीं थी उसने भी चिकित्सक की सलाह के बगैर भी ले लिया है, और दूसरी वजह भारत में डायबिटीज से ग्रस्त लोगों की ज्यादा संख्या का होना है। इसके अतिरिक्त एक और कारण है कोविड में आयरन की गोलियों का दिया जाता है, और आयरन भी फंगस को बढ़ाने में सहायक है। उन्होंने सलाह दी कि इसकी सटीक जांच के लिए टिश्यू से नमूना लेना चाहिये।

वेबिनार के दूसरे विशिष्ट अतिथि डॉ अमित केसरी ने कहा कि साइंटिफिक नाम म्यूकरमाइकोसिस होने के साथ इसे ब्लैक फंगस का नाम देने के पीछे की वजह इसके कारण चेहरे पर आने वाला कालापन होता है, यह कालापन फंगस के चलते टिश्यू के डेड होने के कारण आते हैं। उन्होंने कहा कि पोस्ट कोविड बीमारियों के रूप में आयी फंगस के बहुत कम केस पहली लहर के बाद भी देखे गये थे लेकिन वे सिर्फ महाराष्ट्र और गुजरात में ही थे, इसलिए इसके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि दूसरी लहर के बाद केस बहुत ज्यादा सामने आये हैं, पहले साल भर में 10 से 15 केस आते थे।

डॉ केसरी ने कहा कि इससे बचने के लिए जल नेति क्रिया करें, या फिर नॉर्मल सेलाइन या नमक के पानी से नाक की अच्छी तरह सफाई करना चाहिये। इसके लक्षणों के बारे में उन्होंने कहा कि चेहरे का एक हिस्सा कहीं पर अगर सुन्न हो जाये, पलकें झुकने लगे तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद 10 दिनों से लेकर 30 दिनों के अंदर यह बीमारी हो सकती है। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर में कोशिश यही हो कि स्टेरॉयड का अधिक प्रयोग न किया जाये, विशेषकर इसे दवा की दुकानों पर बिना परचे के न दिया जाये, अभी यह बिन पर्चे के भी मिल जाती है।

वेबिनार के मुख्य अतिथि आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ अशोक कुमार वार्ष्णेय ने कहा कि लोगों को धैर्य रखना चाहिये, सफाई पर ध्यान दें, हल्का व्यायाम करें, मौसमी चीजों का सेवन करें, रात्रि का भोजन सोने से ढाई घंटे पूर्व कर लेना चाहिये। कार्यक्रम की अध्यक्षता लघु उद्योग भारती के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष जनक भाटिया ने की तथा इसका संचालन प्रांत संगठन सचिव डॉ सुनील अग्रवाल ने किया। डॉ सुनील अग्रवाल ने कहा कि किसी भी पैथी में प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिये, सभी पैथी अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं।
