वर्ल्ड ऑटिज्म डे पर देश भर में ऑटिज्म का उपचार कर रही टीमों की प्रतियोगिता, चुनी जायेगी सर्वश्रेष्ठ टीम
लखनऊ। यदि बच्चा तीन साल की उम्र तक भी सिर्फ अपने में ही मगन रहता है, आपकी कोई बात नहीं सुनता, लेकिन जब उसके अपने मन की बात हो तो झट से कर लेता है तो हो सकता है आपका बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो। ऐसे में आपको चाहिये कि न्यूरोलॉजिस्ट विशेषकर बच्चों के न्यूरोलॉजिस्ट से सम्पर्क करें। ऐसे बच्चे खास बच्चे होते हैं, और इनमें कुछ अलग कर गुजरने की ताकत होती है, ये ऐसा कार्य करने में सक्षम होते हैं जो सामान्य बच्चे नहीं कर पाते हैं। विदेशों में
यह जानकारी आज यहां होटल फॉर्च्यून में आयोजित पत्रकार वार्ता में एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड ब्रेन रिसर्च के संस्थापक कैम्ब्रिज यूके के पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ राहुल भारत ने दी। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में 3 फीसदी बच्चे ऑटिज्म का शिकार है जबकि भारत में आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि इनकी संख्या 1.6 फीसदी है, लेकिन माना यह जाता है कि भारत में इस तरह के लोगों की संख्या का प्रतिशत इससे कहीं ज्यादा है क्योंकि यहां ऐसे बच्चों के बारे में पता ही नहीं चल पाता है। ऐसे बच्चों के माता-पिता उनको बीमार न मानकर उसका स्वभाव मानकर चुप रहते हैं। वे यह ध्यान नहीं दे पाते हैं कि उनका बच्चा ऑटिज्म का शिकार है, वह उसे नियति खेल मानकर जिंदगी काटते रहते हैं, और फिर एक दिन ऐसा आता है जब बच्चा मानसिक विकार वाली स्थिति में पहुंच जाता है जबकि अगर उसे समय से आटिज्म का इलाज मिले तो वह कार्य करने में अन्य बच्चों की अपेक्षा आगे रह सकता है।
डॉ राहुल ने बताया कि ऑटिज्म का शिकार बच्चे दिमाग के बहुत तेज होते हैं, उन्होंने बताया कि भारत में ऐसे बच्चों के इलाज की सफलता का प्रतिशत मात्र 10 फीसदी है जबकि वह भारत में पिछले साढ़े चार साल से इसका उपचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा उपचार किये जा रहे ऑटिज्म के शिकार 1100 बच्चों पर की गयी स्टडी के नतीजे यह बताते हैं कि 60 फीसदी बच्चे बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि ये 60 फीसदी बच्चे काफी मात्रा में दवा खा रहे थे, उनके इलाज में आने के बाद इन बच्चों की दवायें बिल्कुल बंद कर दी गयीं, सिर्फ थैरेपी से इलाज किया गया। ऑटिज्म होने के कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि फिलहाल मोटे तौर पर यह समझ आया है कि यह जेनेटिक होता है। उन्होंने बताया कि भारतीय मुद्रा में बात करें तो करीब 2 करोड़ रुपये खर्च करके इसके कारणों के बारे में जानने के लिए रिसर्च की गयी लेकिन नतीजा सिफर रहा। डॉ राहुल ने बताया कि अभी तक ऑटिज्म का कारण ज्ञात न होने से न तो बचाव के तरीके और न ही दवा खोजी जा सकी है, अभी इसका इलाज बिहैवियर थैरेपी से किया जाता है।
वर्ल्ड ऑटिज्म डे (2 अप्रैल) को एसोसिएशन द्वारा लखनऊ स्थित एमबी क्लब में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। इस प्रतियोगिता के लिए भारत भर में इसका इलाज कर रहे प्रमुख केंद्रों से उनके उपचार के संबंध में व्याख्यान और इलाज करने की विधियां आमंत्रित की गयी थीं। इसके लिए 26 प्रसतुतियां आयीं थीं, इनमें से 7 प्रस्तुतियों और 10 मुख्य व्याख्यानों को चुना गया है, जबकि ऑटिज्म का इलाज करने वाली दस टीमों में से छह को चुना गया है। इन छह टीमों की मंगलवार को प्रतियोगिता की जायेगी जिसमें से सर्वश्रेष्ठ एक टीम को बेस्ट प्रैक्टिस अवॉर्ड के लिए चुना जायेगा। इस सर्वश्रेष्ठ टीम का चुनाव विशेषज्ञों की टीम करेगी। इन विशेषज्ञों में संजय गांधी पीजीआई के डॉ सुनील प्रधान, केजीएमयू की डॉ रश्मि कुमार, संजय गांधी पीजीआई की डॉ पियाली भट्टाचार्य, डॉ अशोक राय जैसे विशेषज्ञ शामिल हैं। पत्रकार वार्ता में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ एस निरंजन और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ टीआर यादव भी उपस्थित थे।
लखनऊ में बनेगा बच्चों की न्यूरो डिजीज का हॉस्पिटल
एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड ब्रेन रिसर्च शीघ्र ही लखनऊ में बच्चों के लिए एक अस्पताल खोलेगा जिसमें सामान्य बीमारियों के साथ ही सिर्फ बच्चों की न्यूरो संबंधी बीमारियों का इलाज किया जायेगा। इस अस्पताल के लिए नाबा फाउंडेशन ने एसोसिएशन को गोमती नगर में जमीन उपलब्ध करायी है। नाबा फाउंडेशन के संस्थापक हामिद ने बताया कि एसोसिएशन द्वारा किये जा रहे कार्यों से प्रभावित होकर यह फैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि नाबा फाउंडेशन की स्थापना उन्होंने अपनी बेटी की स्मृति में की है, जो असमय काल के गाल में समा गयी थी। डॉ राहुल ने बताया कि उनकी इच्छा है कि हर वर्ग के बच्चे को ऑटिज्म का इलाज मिल सके, इसके लिए वह योजना बना रहे हैं कि सप्ताह में दो दिन आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के ऑटिज्म के शिकार बच्चे का इलाज कम से कम खर्च में किया जा सके। इसके इलाज में करीब दो साल का समय लगता है।