-किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष योग सत्र आयोजित
-गर्भ संस्कार की दी गयी विस्तृत जानकारी, प्रसवपूर्व किये जाने वाले योगासन भी सिखाये
सेहत टाइम्स
लखनऊ। ‘गर्भस्थ शिशु से बात करनी चाहिये, इसका शिशु पर बहुत अच्छा असर पड़ता है, अपनी मां और अन्य परिवारजनों की आवाज बच्चा गर्भ में ही पहचानने लगता है, मां के बात करने पर बच्चा सुरक्षित महसूस करता है।’ कुछ इसी तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग ने गर्भवती महिलाओं के लिए आज 20 जून को आयोजित एक विशेष योग सत्र के दौरान दीं।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह के हिस्से के रूप में गर्भवती महिलाओं के लिए एक विशेष योग सत्र आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गर्भ संस्कार के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना था। इसके तहत उन प्रसवपूर्व योगासनों को शामिल किया गया है जो माँ और बच्चे दोनों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
सत्र के दौरान, प्रतिभागियों ने गर्भावस्था-सुरक्षित योग अभ्यासों में भाग लिया और गर्भ संस्कार के महत्व पर शैक्षिक मार्गदर्शन प्राप्त किया। जागरूकता को और बढ़ाने के लिए, उपस्थित सभी माताओं को गर्भ संस्कार से सम्बन्धित सूचनात्मक पुस्तिकाएँ वितरित की गईं।
इस कार्यक्रम का संचालन प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख और वर्तमान में विश्वविद्यालय की कार्यवाहक प्रो-वाइस चांसलर प्रोफेसर अंजू अग्रवाल के मार्गदर्शन में किया गया।

क्या है गर्भ संस्कार
गर्भ संस्कार, गर्भावस्था के दौरान गर्भ आहार (पौष्टिक भोजन), गर्भ योग (विशेष योग अभ्यास) और गर्भसंवाद (बच्चे से सकारात्मक बातचीत) के माध्यम से माँ और बच्चे के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास को बेहतर बनाने की प्राचीन विधि है।
गर्भ आहारः
संतुलित व पौष्टिक भोजन ही स्वस्थ माँ और बच्चे के विकास का आधार है।
दालें और अनाज, हरी सब्जियां, फल, गुड और तिल, दूध और दही, पानी खूब पियें, बाहर का खाना न खायें।
थोड़ा-थोड़ा 5 से 6 बार में खायें।
सुबह का नाश्ता जरूर करे।
दिन में फल और मेवे खायें। 10-12 बादाम / मूंगफली
रात में हल्का खाना खायें।
उपवास न करें, बच्चे को ताकत आपके आहार से ही मिलती है अगर उपवास जरूरी हो तो फल और दूध जरूर लें।
साफ-सुथरा भोजन ही करें।
गर्भ योग
माँ के विचार और भावनायें सीधे बच्चे पर असर डालती हैं। यदि माँ खुश और स्वस्थ है तो बच्चा भी शांत और स्वस्थ्य होगा।
चिंतित और उदास माँ के बच्चे पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भस्थ शिशु माँ के तनाव को महसूस करता है, इससे उनके दिल की धड़कन और दिमाग का विकास प्रभावित हो सकता है।
गर्भ में शिशु माँ की आवाज और भावनाएँ पहचानने लगता है इसलिए सकारात्मक सोचें व खुश रहें।
खुश व सकारात्मक रहने से बच्चे का मस्तिक और भावनात्मक विकास बेहतर होता है।रोज सुबह एवं शाम को 20-30 मिनट की हल्की सैर करें, थकान लगने पर रुक कर आराम कर लें। अपने पति या किसी सहेली के साथ जायें, कोई गीत या धार्मिक संगीत सुनते हुए ही टहलना अच्छा होता है।
दिन में 2-3 बार 10-15 बार आँखे बंद करके गहरी साँस लें और छोड़ें
थोड़ा समय निकाल कर धार्मिक ध्यान करें। आपके द्वारा बोले गये मंत्र या धार्मिक श्लोक मन शांत करते हैं और बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
इसके अलावा सिलाई, बुनाई, चित्रकला, बागवानी आदि कार्य जो मन को शान्ति दे अवश्य करें।
मधुर संगीत सुनें, पुस्तक, धार्मिक ग्रन्थ पढ़ें, हर काम को करते वक्त खुश रहने का प्रयास करें।
विश्राम भी जरूरी है आठ घंटे की नींद व दिन में 2 घंटे का विश्राम आवश्यक है।
किसी भी जानकारी के लिए अवश्य पूछें, अन्य गर्भवती महिलायें, सहेलियां व पारिवार के साथ जुड़े रहे व अपनी आशंकायें साझा करें।
गर्भ संवाद
गर्भस्थ शिशु से बात करने का शिशु पर बहुत अच्छा असर पड़ता है, गर्भ मे ही बच्या माँ, व अन्य परिवारजनों की आवाज सुनता है और पहचानता है। जब माँ बच्चे से बात करती है तो वह सुरक्षित महसूस करता है।
स्वयं व परिवारजनों से कहें कि वह कुछ देर बच्चे से बात करें, शुभकामनायें दें, इसका बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।डॉक्टर से अवश्य मिलें व अपनी समस्या, आशंका व परेशानी अवश्य साझा करें।
