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मरीज के उपचार में अपनायी गयी ईमानदार मंशा का सबूत जरूर रखें सर्जन

-केजीएमयू के सर्जरी विभाग की स्‍थापना दिवस पर पढ़ाया गया कोड ऑफ मेडिकल एथिक्‍स का पाठ
प्रो विनोद जैन

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। कोई भी सर्जन नहीं चाहता है कि उसके इलाज से मरीज को कोई नुकसान पहुंचे, फि‍र भी कभी-कभी ऐसा हो जाता है। ऐसे में चिकित्‍सक होने के नाते सर्जरी करते समय आपको सावधानियां बरतनी हैं जिससे भविष्‍य में आप अपनी ईमानदार मंशा का सबूत भी दे सकें। इसी को ध्‍यान में रखते हुए इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्‍ट 1951 के तहत तैयार किये गये कोड ऑफ मेडिकल एथिक्‍स 2002 का पालन आप‍को करना है।

यह बात बुधवार को सर्जरी विभाग के स्‍थापना दिवस के मौके पर शैक्षणिक कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रो विनोद जैन ने अपने लेक्‍चर में बतायी। प्रो जैन जो कि 17 वर्षों से एथिक्‍स कमेटी में शामिल हैं, ने बताया कि कमेटी के समक्ष आने वाले केसों के मद्देनजर अपने अनुभव के आधार पर सावधानियां बरतने की सलाह उन्‍होंने दी।

डॉ जैन ने बताया कि सर्जन सर्जरी के बारे में, रोग की जटिलता, इलाज, संभावनाओं के बारे में जो भी बतायें उसे लिख लें और उस पर उसकी सहमति ले लें, बिना सहमति कुछ न करें। क्‍योंकि अगर भविष्‍य में कोई बात होती है तो आप लिखित सबूत प्रस्‍तुत कर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि मरीज या परिजन की सहमति के लिए निर्धारित प्रारूप पर जो भी लिखा है उसके बारे में चिकित्‍सक को भी चाहिये कि वह परिजन या मरीज को बता दे तब हस्‍ताक्षर कराये और मरीजों और परिजनों को भी चाहिये कि दस्‍तखत करने से पहले कागज पर लिखे हुए के बारे में अगर नहीं समझ पा रहे हैं तो पूछ लें कि इसमें क्‍या लिखा है, तभी दस्‍तखत करें। चिकित्‍सक अपनी तरफ से एक लाइन यह जरूर लिख दें कि इस दस्‍तावेज के बारे में बता दिया गया है और उससे सहमति ले ली गयी है।

उन्‍होंने बताया कि सर्जरी करने से पूर्व सर्जन इस बात का ध्‍यान रखें कि वे वही सर्जरी कर रहे हैं जो उन्‍हें करनी है, क्‍योंकि कई बार कन्‍फ्यूजन की स्थिति हो जाती है। जैसे एक ही नाम के दो मरीज होना या मरीज दूसरा, फाइल दूसरे की होना, नतीजा यह कि गलत अंग की सर्जरी होने की संभावना पैदा हो जाती है। उदाहरण के लिए उन्‍होंने बताया कि कभी-कभी सुनने में आया होगा कि बायें की जगह दायें अंग का ऑपरेशन कर दिया, ऐसा इन्‍हीं सब कारणों से होता है।

उन्‍होंने बताया कि जैसे लिवर की सर्जरी में अगर ब्‍लीडिंग हो रही है तो उसे रोकने के लिए स्‍पंज लगाया जाता है, जो कि नियम में है, लेकिन इसका उल्‍लेख फाइल में जरूर करना चाहिये, अन्‍यथा की स्थिति में अगर मरीज की मृत्‍यु हो गयी और उसका पोस्‍टमार्टम हुआ और वह स्‍पंज का टुकड़ा निकलेगा तो उसे डॉक्‍टर की लापरवाही बताया जा सकता है, और अगर उसका जिक्र फाइल पर किया गया है तो डॉक्‍टर के ऊपर कोई बात नहीं आयेगी। उन्‍होंने बताया कि इसी प्रकार कभी मरीज के पेट में तौलिया या कुछ और छूटने की खबर सामने आती हैं, इनमें होता यह है इसका ध्‍यान रखने की ड्यूटी नर्स की होती है कि ध्‍यान रखे लेकिन सर्जन भी टीम लीडर होने के कारण अपनी जिम्‍मेदारी से बच नहीं सकता।

उन्‍होंने बताया कि इसी प्रकार डॉक्‍टर को एक-दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिये। जरूरत पड़ने पर मरीज की सर्जरी के सभी रिकॉर्ड 72 घंटे के अंदर मरीज को उपलब्‍ध कराने पड़ेंगे, इसलिए इसे तैयार रखें।

उन्‍होंने बताया कि सर्जरी शीघ्रता और तार्किक तरीके से गंभीरता के साथ करें, विश्‍वास के साथ करें लेकिन अतिविश्‍वास के साथ नहीं करें क्‍योंकि अतिविश्‍वास में ही काम बिगड़ने की संभावना बनती है। इसी प्रकार ट्रीटमेंट के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिये। तीन साल तक रिकॉर्ड सम्‍भाल कर रखें। चिकित्सा परिषद द्वारा निर्धारित विज्ञापन नीति का पालन करें। उन्‍होंने बताया कि इन सभी बातों का ध्‍यान रखें क्‍योंकि यदि डॉक्टर पूछताछ और रिकॉर्ड के आधार पर दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ विभिन्न प्रकार की कार्रवाई की जा सकती हैं।