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स्‍वयं को टी बैग की तरह समझ कर निखारें अपनी नेतृत्‍व क्षमता

केजीएमयू में दो दिवसीय ‘Soft Skill Course For Health Proffesionals’ कोर्स का समापन  

 

लखनऊ। हर व्‍यक्ति के अंदर लीडरशिप की क्‍वालिटी छिपी होती है, जरूरत है उसे निखारने की। यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ स्किल के निदेशक डॉ विनोद जैन ने इंस्‍टीट्यूट के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय ‘Soft Skill Course For Health Proffesionals’ में भाग लेने आये प्रतिभागियों को सम्‍बोधित करते हुए कही।  डॉ जैन ने प्रतिभागियों को लीडरशिप डेवलप करने के लिए आसान भाषा में समझाने के लिए लीडरशिप की तुलना टी बैग से की।

 

अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेंशन सेंटर स्थित सॉफ्ट स्किल इंस्टीट्यूट में डॉ विनोद जैन ने प्रोफेशनलिज्म एवं एथिक्स विषय पर सूक्ष्म एवं व्यवहारिक जानकारी देते हुए बताया कि एक सच्चे प्रोफेशनल व्यक्ति को अपनी विधा का सम्पूर्ण ज्ञान तथा उसके प्रयोग की त्रुटिहीन की जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही उसका व्यवहार विनम्र, उसकी विश्वसनीयता निसंदेह तथा उसमें सदैव सीखने की ललक होना अति आवश्यक है। उन्होंने कुल्हाड़ी-पेड़ का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार से पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी पर धार देना जरूरी होता है। चिकित्सा सेवा में नित नई विधाओं का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए सदैव प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेना आवश्यक है।

 

उन्‍होंने कहा कि लीडर को टी बैग की तरह होना चाहिये। जिस तरह बैग ठंडे पानी में असर नहीं दिखाता है उसी तरह लीडरशिप भी परेशानी पैदा होने पर ही निखरती है। इसी प्रकार टी बैग में अगर छिद्र न हों तो चाय कैसे बनेगी, उसी प्रकार लीडर में दूसरों की बात को सुनने और समझने की क्‍वालिटी होनी चाहिये। जिस तरह टी बैग को कप, गिलास, प्‍लेट किसी भी बर्तन में इस्‍तेमाल करो, उसी प्रकार नेतृत्‍व को किसी भी जगह, किसी भी समय कार्य करने के लिए तैयार रहना चाहिये। डॉ जैन ने कहा कि इसी प्रकार जैसे बड़े बर्तन में चाय बनाने के लिए एक टी बैग से काम नहीं चलता है उसी प्रकार अगर किसी बड़े कार्य के लिए नेतृत्‍व करना है तो एक व्‍यक्ति से काम नहीं चलता है, उसके लिए कई लीडर्स को लगाना पड़ता है। एक बात और जिस तरह चाय बनने के बाद टी बैग बदल दिया जाता है उसी प्रकार नेतृत्‍व को भी यह समझना चाहिये कि लोग उसे किसी भी समय हटाकर दूसरे नेतृत्‍व को चुन सकते हैं, इसके लिए उसे मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिये, और अगले मिशन के लिए लग जाना चाहिये।

क्रोध न करने को लेकर दी रोचक ढंग से जानकारी  

सम्पन्न इस दूसरे कोर्स में 30 प्रतिभागियों को सॉफ्ट स्किन के विभिन्न आयामों की जानकारी प्रयोगात्मक विधि द्वारा दी गई। इस अवसर पर प्रोफेसर अरुण चतुर्वेदी ने बताया कि क्रोध से स्वयं का ही नुकसान होता है और क्रोध आने पर हम लोग अनावश्यक क्रियाएं करते हैं, जो न अपने हित में होती हैं औन न ही दूसरों के हित में। इस कार्यशाला में क्रोध पर किस प्रकार से काबू पाए इसको लेकर विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। इनमें प्रतिभागियों को सिखाने के लिए उन्‍हें एक टॉपिक दिया गया कि मान लीजिये आपको पिकनिक पर जाना है और यह तय करना है कि कहां जायें तो आपस में इस तरह बात कीजिये कि आपकी चुनी हुई जगह ही सब जायें। प्रतिभागियों ने ऐसा ही किया तो आपस में लड़ने लगे और अपनी बात मनवाने का दबाव बनाने लगे, इसके बाद सबसे पूछा गया कि आपको कैसा लग रहा है तो प्रतिभागियों ने बताया कि हमें आपस में लड़ाई करके अच्‍छा नहीं लग रहा है कि छोटी सी बात मनवाने के लिए हम आपस में ही लड़ गये।

 

इसके बाद इन प्रतिभागियों से कहा गया कि अच्‍छा अब आपस में बात करके पिकनिक के लिए कोई एक स्‍थान स‍हमति से चुन लो, प्रतिभागियों ने ऐसा ही किया, फि‍र जब उनसे पूछा कि अब कैसा लग रहा है तो सभी ने कहा कि बहुत ही अच्‍छा लग रहा है। इस प्रकार प्रतिभागियों को क्रोध न करने के गुर सिखाते हुए इसके फायदे बताये गये।

 

डॉ भूपेन्द्र सिंह ने अपने अंदर छुपे हुए गुणों की पहचानने की विधि तथा उनको स्वयं के हित तथा जनहित के लिए परिवर्तित करने की विधि सिखाई। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला को लाभकारी बताया। इस दौरान सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।