-राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के डीजीएम ने कहा पॉलिसी बनायी जा रही, दवा कम्पनियां भी करें मदद
-वर्ल्ड रेअर डिजीज डे पर एसजीपीजीआई में आयोजित किया गया जागरूकता कार्यक्रम

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। थैलेसीमिया और हीमोफेलिया से ग्रस्त बच्चों के फ्री इलाज के लिए जिस तरह से सरकार मदद कर रही है, उसी तरह से अन्य रेअर डिजीज के लिए भी सरकार से मदद मिल जाये, इसका रास्ता निकाला जा रहा है, उम्मीद है कि जल्दी ही इस बारे में कुछ न कुछ फैसला होगा।
यह बात शनिवार को यहां संजय गांधी पीजीआई में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स और लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रेयर डिजीज अवेयरनेस समारोह में नेशनल हेल्थ मिशन के डीजीएम डॉ अमरेश बहादुर सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में कही। टेलीमेडिसिन हॉल में आयोजित हुये कार्यक्रम का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों खासतौर से एलएसडी जैसेकि गॉशर, फैब्री, एमपीएस आदि के बारे में जागरूकता फैलाना था। डॉ अमरेश ने कहा कि हम लोग भी चाहते हैं कि जो भी पॉलिसी आये वह ठीक से लागू हो सके, इसमें दवा कम्पनियों को भी सस्ती दवायें उपलब्ध कराकर अपना सहयोग करना चाहिये।

कार्यक्रम में शामिल सेन्ट्रल मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल एनएचएस फाउंडेशन की कन्सल्टेंट जेनेटिसिस्ट डॉ चारुलता देशपाण्डेय ने अपने प्रेसेन्टेशन में रेअर डिजीज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो आरके धीमान ने अपने सम्बोधन में कहा कि पहले के समय में जांच आदि की ऐसी सुविधा न होने से अनेक बीमारियों के बारे में पता ही नहीं चल पाता था, लेकिन आज नयी-नयी मशीनें आने और शोध के बाद रेअर बीमारियों की पहचान करना भी सम्भव हो गया है, उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए काम करने के जेनेटिक मेडिसिन विभाग की सराहना की।

मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की हेड व एक्जीक्यूटिव मेंबर, आईएपी डॉ शुभा फड़के ने कहा कि उनकी इच्छा है कि सरकार ने जिस तरह हीमोफीलिया और थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चों के फ्री इलाज की सुविधा की है, उसी तरह अन्य रेअर डिजीज से ग्रस्त लोगों के इलाज की सुविधा करे। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से की गयी पहल अच्छी है, इससे आशा की किरण दिखायी देती है। उन्होंने कहा कि मेरी चिकित्सकों से भी यह अपील है कि इस तरह के रेअर बीमारियों वाले केस जब उनके पास आयें तो वे उन्हें शीघ्र पहचान कर उच्च संस्थानों में रेफर करें जिससे जल्दी से जल्दी ऐसे बच्चों को इलाज मिल सके।

इस अवसर पर लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी के प्रेसीडेंट मंजीत सिंह ने लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स (एलएसडी) बीमारी के विभिन्न पहलुओं, परिवारों पर पड़ने वाले इसके असर, लंबे समय के प्रबंधन और चुनौतियों पर अपने विचार रखे। मंजीत सिंह ने कहा कि हम पिछले 10 वर्षों से एलएसडी से प्रभावित मरीजों और उनके परिवारजनों के लिए अनवरत रूप से कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने रेयर डिजीज को लेकर दो बार राष्ट्रीय नीति जारी की जिसमें उपचारयोग्या एलएसडी का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है। दुर्भाग्यवश, जो मरीज एलएसडी के शिकार हैं उनके इलाज के लिए कोई गंभीर बात सामने नहीं आयी है। हाल ही में जारी की गई रेयर डिजीज 2020 की राष्ट्रीय नीति में एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ईआरटी ) का उल्लेख है जिसके सार्थक परिणाम बताये गए हैं और मरीजों को सामान्य जीवन में सहायता करने और समाज के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में स्थापित करने की बात कही गई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने क्राउड-फंडिंग का जो सुझाव दिया है वह अस्थायी व्यवस्था है और उसको कैसे लागू किया जाएगा, यह साफ नहीं है।

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