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आईआईटी बॉम्‍बे के अस्‍पताल में की जा रहीं पैथोलॉजी जांचों की रिपोर्ट संदेह के घेरे में

अस्‍पताल की पैथोलॉजी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप एक भी अधिकृत पैथोलॉजिस्‍ट नहीं

लखनऊ। मुंबई स्थि‍त भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (आईआईटी) स्थित हॉस्पिटल की पैथोलॉजी लैब में की जाने वाली जांचों की रिपोर्टों पर प्रश्‍नचिन्‍ह लग गया है। इसकी वजह इस रिपोर्ट को जारी करने देन वाले शख्‍स की योग्‍यता मानकविहीन होना है। पैथोलॉजिकल रिपोर्ट तैयार कर जारी करने वाले की योग्‍यता मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से निर्धारित की गयी है, ओर उसी के अनुसार कार्य करने के आदेश देश की सर्वोच्‍च अदालत ने दे रखे हैं। क्‍लीनिकल इस्‍टेब्लिशमेंट एक्‍ट में भी इसे साफ कर दिया गया है। लेकिन इस आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्‍थान के अस्‍पताल में ही इस आदेश की धज्जियां उड़ रही हैं। इसका खुलासा एक आरटीआई के जवाब से हुआ है।

 

निजी संस्‍थान में कार्य करने वाले पैथोलॉजिस्‍ट डॉ रोहित जैन ने भारत सरकार के मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के समक्ष सूचना के अधिकार के तहत इस बारे में जानकारी मांगी थी। इस आरटीआई के जवाब में आईआईटी मुंबई ने 5 अप्रैल के पत्र के अनुसार जो जवाब दिया है वह बहुत चौंकाने वाला है। इस जवाब से यह साफ हो गया है कि इस प्रतिष्ठित संस्‍थान के हॉस्पिटल में जांचें तो हो रही हैं लेकिन कितनी सही हो रही हैं इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्‍योंकि इन जांचों पर हस्‍ताक्षर करने वाले शख्‍स आवश्‍यक योग्‍यता ही नहीं रखते है।

 

डॉ रोहित जैन

डॉ जैन द्वारा मांगी गयी सूचना के जवाब में कहा गया है कि संस्‍थान के अस्‍पताल की पैथोलॉजी में हेमेटोलॉजी, क्‍लीनिकल पैथोलॉजी, बायोकेमिस्‍ट्री, सीरोलॉजी संबंधी 27 तरह की जांचें हो रही हैं। पैथोलॉजी में कुल मिलाकर 14 तरह के उपकरणों का इस्‍तेमाल हो रहा है।

 

इसी प्रकार पैथोलॉजी में कार्यरत स्‍टाफ के बारे में बताया गया है कि कुछ छह स्‍टाफ इन सभी जांचों को कर रहा है इन छह स्‍टाफ में पांच स्‍थायी और एक अस्‍थायी कर्मचारी है। इन छहों कर्मचारियों की शैक्षिक योग्‍यता बीएससी डीएमएलटी है,  जबकि भारतीय चिकित्‍सा परिषद यानी एमसीआई के नियम और सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के अनुसार पैथोलॉजिकल रिपोर्ट पर हस्‍ताक्षर करने के लिए एमडी पैथोलॉजी या उसके समकक्ष की डिग्री आवश्‍यक है। जाहिर है जब संस्‍थान के अस्‍पताल की पैथोलॉजी में कार्य करने वाले छहों कर्मचारियों की शैक्षिक और तकनीकी योग्‍यता बीएससी डीएमएलटी है, तो रिपोर्ट पर दस्‍तखत भी इन्‍हीं लोगों के हो रहे हैं, यानी ये रिपोर्ट आवश्‍यक योग्‍यताधारक विशेषज्ञ की देखरेख में नहीं तैयार हो रही हैं। ऐसे में इन रिपोर्ट्स को गुणवत्‍तापूर्ण जांच रिपोर्ट नहीं कहा जा सकता है।

 

आपको बता दें कि दरअसल खून की जांच मशीन करती है लेकिन उस मशीन से रिपोर्ट तैयार करने में एमडी पैथोलॉजी या इसके समकक्ष माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट या फि‍र बायोकेमिस्‍ट की निगरानी आवश्‍यक है। इसीलिये जांच रिपोर्ट को जारी करने, उस पर दस्‍तखत करने का अधिकार मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में पंजीकृत पैथोलॉजिस्‍ट, माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट व बायोकेमिस्‍ट को ही है। इस तरह की स्थितियां सिर्फ आईआईटी मुंबई के अस्‍पताल में तो हैं ही, देश भर में विशेषकर निजी क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्‍या में हैं। अनेक स्‍थानों पर सिर्फ मशीन के सहारे अयोग्‍य ‘झोलाछाप’ पैथोलॉजिस्‍ट बन कर रिपोर्ट जारी कर रहे हैं और लोगों की जिन्‍दगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।

 

विशेषज्ञों के अनुसार जांच रिपोर्ट का महत्‍व इसी से समझा जाता है कि किसी रोग के विशेषज्ञ जब मरीज का उपचार करते हैं उसके उपचार की दिशा उसकी पैथोलॉजी रिपोर्ट के अनुसार ही तय करते हैं, यानी रिपोर्ट गलत तो इलाज गलत नतीजा मरीज की जान का नुकसान। आरटीआई के जरिये सूचना मांगने वाले डॉ रोहित जैन अयोग्‍य व्‍यक्तियों द्वारा तैयार की जा रही पैथोलॉजी जांच रिपोर्ट को एमसीआई और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार योग्‍य व्‍यक्ति द्वारा जारी किये जाने की दिशा में लम्‍बे समय से कार्य कर रहे हैं।