-दूरदर्शी इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एमएल सराफ के 121वें जन्मदिवस को घोषित किया नेशनल फार्मेसी एजूकेशन डे
-उत्तर प्रदेश के सभी अस्पतालों व फार्मेसी से जुड़े संस्थानों में आयोजित हुए समारोह
सेहत टाइम्स
लखनऊ। भारत में फार्मेसी की शिक्षा की शुरुआत ऐसे व्यक्ति ने की जिसने स्वयं फार्मेसी नहीं पढ़ी थी, लेकिन उनका आकलन था कि भारत में फार्मेसी की शिक्षा होनी चाहिये, यह व्यक्ति थे इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एमएल सराफ। देश में उस समय अंग्रेजी हुकूमत के दौर में प्रो सराफ ने यह शिक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शुरू करवायी। आज फार्मा की शिक्षा न सिर्फ फार्मेसिस्ट तैयार कर रही है बल्कि डॉक्टरी शिक्षा का भी एक अनिवार्य अंग बन गयी है। ऐसी दूरगामी सोच रखने वाले फार्मा शिक्षा के जनक प्रो सराफ के 121वें जन्मदिन को नेशनल फार्मेसी एजूकेशन डे के रूप में घोषित कर भारत की फार्मासिस्ट काउंसिल ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है। प्रो सराफ की जयंती आज पूरे उत्तर प्रदेश में सभी फार्मा शिक्षण संस्थानों, चिकित्सालयों, फार्मेसी संस्थानों, उद्योगों आदि में नेशनल फार्मेसी एजूकेशन डे के रूप में मनायी गयी। इस अवसर पर लखनऊ में फार्मासिस्ट फेडरेशन से जुड़े सभी संघों और फेडरेशन की यूथ विंग तथा वैज्ञानिक समिति, सेवानिवृत्त विंग आदि द्वारा वन विभाग मुख्यालय स्थित सभागार में एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें प्रो सराफ के जीवन और उनके संघर्षों पर विस्तृत चर्चा हुई।
यहां जारी विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए बताया गया है कि संगोष्ठी का प्रारंभ केक काटकर और चित्र पर माल्यार्पण के उपरांत हुआ। फेडरेशन द्वारा एम एल सराफ के बारे में लेख और पोस्टर ईमेल पर आमंत्रित किए गए जिस पर सैकड़ों लेख पोस्टर आए हैं, स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा परीक्षण उपरांत उसमें श्रेष्ठता क्रम निर्धारित कर सभी को प्रमाण पत्र दिया जायेगा।
स्टेट फार्मेसी काउंसिल उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन और फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने कहा कि फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया द्वारा प्रो सराफ के जन्मदिन 6 मार्च को “नेशनल फार्मेसी एजुकेशन डे” घोषित किया गया है। प्रोफेसर सराफ ने भारत में फार्मेसी शिक्षा को प्रारंभ कर उसे बढ़ाने में महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय योगदान दिया है, इसलिए आज उनके प्रयासों को याद करने का दिन है। लखनऊ में इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, एमिटी यूनिवर्सिटी के साथ ही सेठ विशंभर नाथ फार्मेसी संस्थान, हाइजिया, गोयल, हिंद, आजाद, टीएमसी, सरोज सहित सभी फार्मेसी संस्थानों में फार्मेसी छात्रों द्वारा पोस्टर प्रतियोगिता, डिबेट, सेमिनार सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
वन विभाग के कार्यक्रम में फेडरेशन के संयोजक और फीपो के राष्ट्रीय अध्यक्ष केके सचान ने भारत में फार्मेसी शिक्षा की दिशा पर विस्तृत व्याख्यान दिया। आईपीए की उत्तर प्रदेश शाखा के सचिव आरए गुप्ता ने कहा कि भारत में फार्मेसी शिक्षा के साथ ही इंडियन फार्मास्यूटिकल एसोसिएशन के गठन आदि में प्रोफेसर सराफ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने मानव समाज पर दवाओं के कुप्रभाव को रोकने के लिए pharmacovigilance बनाने के लिए अनुरोध किया।
जय सिंह सचान अध्यक्ष रिटायर विंग ने कहा कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रो. सराफ ने फार्मेसी को अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मिशन के रूप में अपनाया। 1931 में ड्रग्स इंक्वायरी कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई। सराफ ने ड्रग्स इंक्वायरी कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों को बहुत गंभीरता से लिया और इस विशाल देश में फार्मास्युटिकल उद्योग की उज्ज्वल संभावनाओं की कल्पना की।
यूथ विंग के अध्यक्ष आदेश ने कहा कि 1932 में, जब भारत में विज्ञान और संगठित पेशे के रूप में फार्मेसी लगभग न के बराबर थी, तब वे मालवीय जी को भारत में औषधि विज्ञान की महान संभावनाओं के बारे में समझा सके। महान दूरदर्शी मालवीय को इसके महत्व का एहसास होने में देर नहीं लगी और उनके संरक्षण में प्रो. सराफ ने भारत में फार्मास्युटिकल शिक्षा के आयोजन का अपना कार्य शुरू किया। यहां तक कि उन्होंने इस परियोजना के लिए धन इकट्ठा करना भी शुरू कर दिया और इस तरह 1932 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पहली बार फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री शिक्षा स्थापित करने में सफल रहे, जो बाद में फार्मास्यूटिक्स के पूर्ण विकसित विभाग के रूप में विकसित हुआ। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की शिक्षा प्रणाली के समतुल्य आधुनिक फार्मास्यूटिकल शिक्षा की शुरुआत थी। प्रो. सराफ ने इस प्रकार इस देश में औषधि शिक्षा की आधारशिला रखी।
दिसंबर 1935 में, उन्होंने संयुक्त प्रांत फार्मास्युटिकल एसोसिएशन की शुरुआत की, जिसके वे संस्थापक सचिव थे। इसके तुरंत बाद प्रो. सराफ का आंदोलन उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) की सीमाओं को पार कर गया। दिसंबर 1939 में यूपी फार्मास्युटिकल एसोसिएशन का विस्तार किया गया और अन्य राज्यों में शाखाओं के साथ इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन बन गया। उसी वर्ष के दौरान उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ़ फ़ार्मेसी का प्रकाशन शुरू किया और 1943 में बनारस छोड़ने तक लगभग चार वर्षों तक इसके प्रधान संपादक रहे।
1940 में ड्रग्स एक्ट पारित कराने में प्रो. सराफ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आज भारत में फार्मेसी में डिप्लोमा बैचलर मास्टर पीएचडी के साथ ही डी फार्मा की शिक्षा दी जा रही है हालांकि अभी भी भारत में फार्मास्यूटिकल केयर के अनुसार फार्मेसिस्टो का मानक नहीं बन सका है, इसलिए रोजगार के क्षेत्र में अभी बहुत कार्य किया जाना बाकी है। इस संबंध में फेडरेशन द्वारा सरकार को आवश्यक सुझाव भेजा जायेगा।
कार्यक्रम को मुख्य रूप से वरिष्ठ उपाध्यक्ष जेपी नायक, महामंत्री अशोक कुमार, उपाध्यक्ष ओपी सिंह, सचिव जीसी दुबे, यूथ विंग के प्रदेश अध्यक्ष आदेश, सेवानिवृत्त विंग के प्रदेश अध्यक्ष जय सिंह सचान, एस एन सिंह, जितेंद्र कुमार, प्रांतीय उपाध्यक्ष अनिल दुबे, अभिषेक शुक्ला प्रांतीय उपाध्यक्ष, अम्बरीष, आशीष, शुभेंद्र, सुधीर आदि ने संबोधित किया।