Thursday , April 25 2024

समझदारी इसी में है कि दूसरों के अनुभव से सीखा जाये, खुद झेलकर नहीं…

‘सेहत टाइम्‍स’ का साप्‍ताहिक दृष्टिकोण

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

विदेशों के साथ ही अब देश के पांच राज्‍यों महाराष्‍ट्र, पंजाब, केरल, छत्‍तीसगढ़ और मध्‍य प्रदेश में कोरोना वायरस के नये केस बढ़ने लगे हैं, कुछ जगहों पर कर्फ्यू तो कुछ स्‍थानों पर लॉकडाउन की नौबत भी आ चुकी है। कोरोना वायरस की इस लहर पर केंद्र सरकार ने चिंता जतायी है। केंद्र सरकार की चिंता जायज है, क्‍योंकि कोरोना के फैलाव की एकाएक बढ़ी रफ्तार देश ने पिछले साल मार्च से देखी थी। इस त्रासदी की यादें ताजा करना जरूरी हैं, डरने के लिए बल्कि सम्‍भलने के लिए। किस तरह हम अपने ही घर में कैद होकर रह गये थे, जिन्‍हें आवश्‍यक सेवाओं के लिए निकलना पड़ता था, उनका और उनके परिजनों का दिल ही जानता है कि जान हथेली पर लेकर घूमना क्‍या होता है।

सरकार की सख्‍ती और लोगों के प्रयास का नतीजा यह हुआ कि हम कोरोना को अपने से दूर रखने में सफल हो पाये हैं। देश के जिन पांच राज्‍यों में कोरोना ने अपना सिर फि‍र से उठाया है, वहां से दूसरे राज्‍यों में पहुंचने में समय नहीं लगेगा, अगर हमने सावधानी न बरती। देखा यह जा रहा है कि केस कम निकलने से लोग बचाव के प्रति लापरवाह बन गये हैं, मास्‍क लगाना, हाथ धोना, लोगों से उचित दूरी बनाकर रहना जैसे बचाने वाले हथियारों को भुला दे रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं करना है। बचाव के कदम पूरे समुदाय के प्रति लाभप्रद होंगे। सरकार तो बराबर समझा रही है, लेकिन हममें से अधिकांश लोग इस बात को तवज्‍जो नहीं दे रहे हैं।

सोच कर देखिये बीते महीनों में काम-धंधा चौपट होने की वजह से आर्थिक मार हम आज तक झेल रहे हैं। पिछले साल जब कोविड का कहर टूटा और लॉकडाउन हुआ तो लोअर मीडियम क्‍लास के पास जो भी बचत थी उसके दम पर इस लॉकडाउन के पीरियड को झेल सके, गरीब वर्ग की बात करें तो सरकार ने उन्‍हें मुफ्त अनाज बंटवाया, लेकिन अब जब लोगों की अर्थव्‍यवस्‍था धीरे-धीरे पटरी पर लाने क प्रयास किया जा रहा है तो क्‍या फि‍र से लॉकडाउन वाली स्थिति आसानी से झेल पायेंगे  ? चिंता वाली बात यह है कि प्राइवेट कार्य करने वालों का एक वर्ग ऐसा भी है जो गरीबी की सरकारी परिभाषा में आता नहीं है, यानी सरकारी मदद से वंचित रहता है, उसकी निर्भरता तो अपने छोटे-मोटे व्‍यवसाय पर होती है, ऐसे में लॉकडाउन जैसी स्थिति इस वर्ग के लिए अत्‍यन्‍त मुसीबत भरी होती है। बेहतर है कर्फ्यू या लॉकडाउन जैसी स्थितियां पैदा न हों, क्‍योंकि संक्रमण फैला तो सिर्फ आर्थिक नुकसान ही नहीं, शारीरिक नुकसान भी तो होगा जिसकी भरपायी कैसे होगी ? कोविड का स्‍वरूप बदला हुआ है, यानी उसके बारे में अभी यह नहीं पता है कि यह किस तेजी से संक्रमण फैलाने की क्षमता रखता है।

समझदारी इसी में है कि जो हमारे पास घट रहा है, हम उससे सबक लें, तात्‍पर्य यह है कि कोविड को लेकर जो समाचार पांच राज्‍यों के बारे में बताये जा रहे हैं उसे देखकर, सुनकर सावधान हो जायें, समझदारी इसी में है कि दूसरों के अनुभव से सीखा जाये न कि उस अनुभव को झेलकर सीखने का इंतजार करें।

इन सभी बातों को ध्‍यान में रखते हुए सभी का टीकाकरण होने तक अभी सिर्फ और सिर्फ बचाव पर ध्‍यान देने की जरूरत है। जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं कि जब तक कम से कम 60 प्रतिशत लोगों को टीका न लग जाये त‍ब तक हर्ड इम्‍युनिटी की स्थिति नहीं पैदा होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि टीका लगवा चुके लोगों और लगवाने से बाकी बचे लोगों को एक-दूसरे से दूरी, सफाई और मास्‍क जैसी सावधानियों को अपनाना ही होगा। क्‍योंकि टीका लगवा चुका व्‍यक्ति स्‍वयं तो बच सकता है लेकिन कोविड वायरस का कैरियर बन कर बिना टीका लगवाये व्‍यक्ति के सम्‍पर्क में आने पर उसे संक्रमण दे सकता है। विशेषकर बच्‍चों को बचाना बहु‍त आवश्‍यक है क्‍योंकि उन्‍हें टीका लगाने की अभी कोई योजना नहीं तैयार है।