फैमिली प्लानिंग ऑफ इंडिया के यूथ चैम्पियंस हुए मीडिया से रू-ब-रू, बतायी ग्राउंड रियलिटी
लखनऊ। यूथ के हित की योजनाओं को बनाने में और फिर उसे लागू कराने में हमें यूथ को साथ लेना होगा। परिवार नियोजन 2020 के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि युवा परिवार नियोजन 2020 का एजेंडा का नेतृत्व करें। क्योंकि परिवार नियोजन 2020 के लक्ष्य को प्राप्त करने में युवाओं की समझ और उनके विचार बहुत सहायक होंगें।
यह बात फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की लखनऊ शाखा द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस की पूर्व संध्या पर प्रेस क्लब में आयोजित एक मीडिया के साथ एफपीए के यूथ चैम्पियंस की वार्ता में सामने आयी। आज उपस्थित इन यूथ चैम्पियंस में नैना सिंह, सुप्रिया सिंह, राहुल तिवारी ने मीडिया से अपने अनुभव और सही दिशा में कार्य करने के लिए क्या करना चाहिये, इन विचारों को साझा किया। इन यूथ चैम्पियंस द्वारा जमीनी स्तर पर युवाओं के साथ बातचीत कर उनके विचार और दृष्टिकोण को सरकार तथा अन्य हितधारकों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा हैं।
माहवारी पर बात करने में शर्म न करें

मीडिया के साथ अपने वार्तालाप में इन यूथ चैम्पियंस ने बताया कि जब गांवों, शहरों में युवाओं से सम्पर्क कर बात की गयी तो कई ऐसे अवरोध दिखे जिन्हें दूर करने की जरूरत है। यूथ चैम्पियन सुप्रिया सिंह ने माहवारी पर शर्म और संकोच छोड़ कर खुलकर बात करने पर बल दिया। उनका कहना था कि इस प्राकृतिक स्थिति पर बात न कर हम कई बार किशोरियों और महिलाओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज भी महिलायें माहवारी के दौरान जिस साफ-सफाई की जरूरत होती है वह नहीं करती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है इस विषय पर बात न करना। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इसकी जानकारी न सिर्फ लड़कियों बल्कि लड़कों को भी देनी चाहिये जिससे वे भी लड़किेयों को माहवारी के दौरान होने वाली तकलीफ और भावनात्मक स्थिति को समझ सकें।
अपना माइन्ड सेट बदलें पुरुष

यूथ चैम्पियन नैना सिंह ने जेन्डर बेस्ड वॉयलेंस पर बात करते हुए कहा कि यह सही है कि लड़कियों की स्थिति में पहले से सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी उन्हें वह आजादी नहीं प्राप्त है जो उन्हें आत्मनिर्भर बना सके। उदाहरण के लिए लड़की को घर से अकेले निकलने की आजादी तो मिल गयी लेकिन फिर भी एक शर्त लगा दी जाती है कि 6 बजे से पहले वापस घर आ जाना, यहां तक कि कॉलेजों में भी यही हाल है, लड़कों को लाइब्रेरी में देर रात तक बैठकर पढ़ने की आजादी है लेकिन लड़कियों को हिदायत रहती है कि 9 बजे के बाद लाइब्रेरी में पढ़ नहीं सकतीं। उन्होंने कहा कि हम महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की बात तो करते हैं लेकिन फिर उसके लड़की होने का हवाला देते हुए कोई न कोई बैरियर लगा देते हैं। पुरुषों को अपना माइन्ड सेट बदलने की जरूरत है।


सेक्स से पहले जिम्मेदारी को समझना जरूरी

यूथ चैम्पियन राहुल तिवारी ने कहा कि आज जब हम किशोरों-युवाओं के समग्र स्वास्थ्य की बात करते हैं तो उसकी योजना बनाते समय, उसको लागू करने के तरीके तय करने के लिए उन युवाओं को साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सेक्सुअल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ की बात करें तो हम इसमें उन किशोरो-युवाओं से यह भी बतायें कि अपनी सेक्स की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्हें किस हद तक मैच्योर होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मान लीजिये कि सहमति से अविवाहित युवक और युवती ने शारीरिक संबंध तो बना लिये लेकिन जब लड़की गर्भवती हो गयी तो दोनों के आपसी संबंधों में दरार आ गयी, ऐसे इसलिए हुआ क्योंकि दोनों के रिश्तों में गहन सोच व समझदारी की परिपक्वता नहीं थी। अब इसके स्वास्थ्य के पहलू की बात करें तो लड़की जब गर्भपात कराने की सोचती है तो बात फंसती है दोनों की सहमति पर, क्योंकि गर्भपात के लिए दोनों की सहमति होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जब इस तरह की समझ लड़का और लड़की दोनों में डेवलप हो जायेगी तो निश्चित रूप से शारीरिक संबंधों की बुनियाद विश्वास की ईंटों से तैयार होगी।
इस मौके पर एफपीए इंडिया की लखनऊ शाखा के कमाल रिजवी, मिताश्री, राहुल द्विवेदी भी उपस्थित रहे।
