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सिर्फ दो बार का आईवी डोज़ पूरी करेगा आयरन की कमी

-कन्वेंशन सेंटर में आयोजित उत्तर प्रदेश हेमेटोलॉजी ग्रुप के दो दिवसीय एनुवल कॉन्क्लेव में दिए गए कई व्याख्यान

सेहत टाइम्स

लखनऊ। भारत वर्ष में बड़ी संख्या में लोग खून की कमी यानि एनीमिया के शिकार हैं, इस कमी को दूर करने के लिए मरीज गोलियां खाता है, लेकिन यदि इस आयरन को आई वी (नसों के माध्यम) से दें तो इसका लाभ जल्द सामने आता है, क्योंकि गोलियों के माध्यम से आयरन को खून तक पहुँचने में पेट से होकर रास्ता तय करने के कारण समय लगता है जबकि आई वी के माध्यम से चढ़ाया गया आयरन सीधे ब्लड में पहुंच जाता है।

यह महत्वपूर्ण जानकारी उत्तर प्रदेश हेमेटोलॉजी ग्रुप के तत्वावधान में 28 अप्रैल को यहां अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेंशन सेंटर के जी एम यू , लखनऊ में प्रथम एनुवल कॉन्क्लेव के द्वितीय दिवस मुम्बई से आये अभय भावे ने एनीमिया विषय पर व्याख्यान में दी। उन्होंने बताया कि आयरन की कमी एक सामान्य समस्या है। गर्भावती महिलाओं में 40 से 50 प्रतिशत को तथा दूसरे लोगों में लगभग 30 प्रतिशत लोगों में आयरन की कमी पायी जाती है। इसके उपचार में आयरन की गोली का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि नस के द्वारा आयरन देना भी उचित होता है और यह सुरक्षित भी होता है। उन्होंने बताया कि अब भी अनेक चिकित्सकों में यह धारणा बैठी हुई है कि नस के द्वारा आयरन चढ़ाने में कहीं रिएक्शन न हो जाये।

उन्होंने बताया कि जबकि अब ऐसा नहीं है, अब Ferric carboxymaltose और Iron isomaltoside जैसे नए-नए मॉलिक्यूल्स आ गए हैं जिन्हें दो बार मरीज को चढ़ाया जाता है, इसमें मात्र 30 मिनट का समय लगता है। उन्होंने बताया कि इसमें रिएक्शन होने की संभावना न के बराबर है। जबकि अगर आयरन की गोली दी जाती है तो करीब 60 फीसदी मरीजों को गोली खाने में उबकाई, उल्टी जैसी समस्याएं आती हैं। इसके अतिरिक्त अगर मरीज को आंतों की कोई बीमारी है तो गोली खाना संभव नहीं होता है। ऐसे में उनके लिए नस के माध्यम से आयरन चढ़ाना किसी वरदान से कम नहीं है।

आयोजन सचिव डॉ एस पी वर्मा ने बताया कि सेमिनार के द्वितीय दिन प्रथम सत्र में राज्य के संस्थानों में हेमेटोलॉजी में पी जी कर रहे चिकित्सकों ने क्विज प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें बी एच यू की टीम ने प्रथम स्थान प्राप्त किया आर एम एल लखनऊ की टीम ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया तथा एम एल एन प्रयागराज की टीम ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। विजेताओं को कुलपति प्रो सोनिया नित्यानंद द्वारा पुरस्कृत किया गया।

आज द्वितीय सत्र में पी जी आई चंडीगढ़ से आयी डॉ रीना दास ने बताया ने बताया कि रक्त टूटने वाले रोग जन्मजात होते हैं। उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। उनका व्याख्यान ऐसे रोगों में जांचों से संदर्भित रहा। उड़ीसा से आये डॉ आर के जेना ने बताया कि थैलेसीमिया के मरीजो में आयरन ओवरलोड होने की समस्या होती है। ऐसा बार बार रक्त चढ़ाने से होता है। ऐसे मरीजों का उपचार कैसे किया जाए इस विषय पर विस्तार से बताया।

दिल्ली से आये डॉ दिनेश भूरानी ने बताया कि एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) को पहचानना वृद्ध लोगों मे मुश्किल होता है। उन्होंने बीमारी की पहचान और उपचार के लिए विशेष जांचों के बारे में बताया, साथ ही बढ़ती उम्र में उपचार में आने वाली समस्याओं के बारे में विस्तार से चर्चा की। फरीदाबाद से आये डॉ तथागत चटर्जी ने एएमएल जैसी बीमारियों में आधुनिक विधि जैसे NGS यानी नेक्स्ट जेनरेशन सिक्विनसिंग की उपयोगिता के बारे में बताया।

अंतिम सत्र के दौरान कुलपति प्रो सोनिया नित्यानंद ने शोध की गुणवत्ता पर जोर देते हुए कहा कि शोध से निकले निष्कर्ष रोगियों के उपचार की दिशा निर्धारित करते हैं। रोगी के उपचार में विभिन्न विभागों का सामूहिक प्रयास उपचार को समग्रता एवम संपूर्णता प्रदान करता है। कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव डॉ एस पी वर्मा ने सभी अतिथियों, फैकल्टी मेम्बेर्स, कर्मचारियों, फार्मा सेक्टर एवम पूरी टीम को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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