नगर और ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में जायेगी टीम
लखनऊ. डायबिटीज रोग भारत सहित पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है. इस रोग की वृद्धि की दर की बात करें तो वर्ष 2001 में भारत में डायबिटीज के रोगियों के संख्या जहाँ 3 करोड़ 10 लाख थी वहीँ इस समय 2017 यह संख्या बढ़कर 7 करोड़ 20 लाख हो गयी है. विश्व में 42 करोड़ 50 लाख लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं. अब जागरूकता के लिए बच्चों पर विशेष रूप से फोकस किया जायेगा. क्योंकि बड़ों को जागरूक करने का खास फायदा नहीं दिख रहा है कि वह खुद और अपने बच्चों को जागरूक कर सकें. इसलिए बच्चों को सिखाने से उन्हें अहसास होगा वे सोचेंगे कि हम ऐसा न करें जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है.
रिसर्च सोसाइटी फॉर डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) के सचिव प्रो.नरसिंह वर्मा, नेशनल एग्जीक्यूटिव डॉ. अनुज महेश्वरी तथा एरा मेडिकल कॉलेज की डॉ. जलीस फातिमा ने विश्व मधुमेह दिवस (14 नवम्बर) पर पत्रकारों के साथ डायबिटीज विषय से सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां दीं.
उत्तर प्रदेश के किन शहरों में सबसे ज्यादा डायबिटीज के रोगी
प्रो. नर सिंह वर्मा ने कहा कि अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो यहाँ करीब 10 प्रतिशत लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं तथा 13 प्रतिशत लोग प्री डायबिटीज यानी डायबिटीज के मुहाने पर हैं. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में किये गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि लखनऊ, कानपुर तथा गाजियाबाद में सबसे ज्यादा 14 से 17 प्रतिशत मधुमेह रोगी हैं, जबकि देवरिया और फ़ैजाबाद में सबसे कम 4 से 5 प्रतिशत मधुमेह रोगी हैं.
उन्होंने बताया कि भयावह स्थिति यह है कि बड़ी संख्या में प्री डायबिटीज के मरीज हैं. इन मरीजों को कुछ कदम उठाकर डायबिटिक होने से रोका जा सकता है. इसी दिशा में हमारा सेंटर आरएसएसडीआई सतत प्रयत्नशील है. उन्होंने बताया कि हम लोगों ने मधुमेह विजय नामक एक बहुआयामी कार्यक्रम का प्रस्ताव किया है, इसे शीघ्र ही शुरू किया जायेगा. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में सभी सक्रिय सदस्य अपने जिले के नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में जाकर छात्रों के वजन तथा अन्य फिजिकल पैरा मीटर रिकॉर्ड करेंगे तथा उनके आने वाले जीवन में स्वस्थ रहने की शिक्षा तथा प्रेरणा प्रदान करेंगे. इस कार्यक्रम में किशोर छात्र-छात्राओं पर विशेष ध्यान दिया जायेगा.
प्रो अनुज महेश्वरी ने कहा कि यह देखा गया है कि डायबिटीज होने पर लोग पहले तो इलाज नहीं करते हैं सिर्फ इससे बचाव और रोकथाम के उपायों पर चलते रहते हैं, और फिर जब दवा शुरू करते हैं तो फिर भोजन पर नियंत्रण नहीं करते हैं और न ही शारीरिक श्रम पर ध्यान देते हैं.