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अब माहवारी पर चुप्पी तोड़कर भ्रांतियां दूर करने लगी हैं किशोरियां

-यूनिसेफ की मदद से यूपी सरकार ने हर जिले में खोला है एक-एक मॉडल विद्यालय

-माहवारी के प्रबंधन के लिए आवश्यक सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं इन स्कूलों में

सेहत टाइम्स

लखनऊ। माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों एवं चुप्पी को तोड़ने और उसके प्रभावी प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में एक-एक गरिमा विद्यालय विकसित किया गया है। यह प्रयास राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान उत्तर प्रदेश द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से किया गया है।

गरिमा विद्यालय ऐसे स्कूल है जिसमें किशोरियों द्वारा माहवारी के प्रबंधन के लिए आवश्यक सभी अनुकूल सुविधाएं और सेवाएं हैं। इन स्कूलों में माहवारी कक्ष हैं जहां किशोरियों के लिए पेट की सिंकाई एवं लेटने की व्यवस्था है, पैड वेंडिंग मशीन हैं, पैड निस्तारण के लिए इंसिनिरेटर, स्वच्छ शौचालय एवं पानी और साबुन की व्यवस्था है। सभी गरिमा विद्यालयों में माहवारी स्वच्छता क्लब बनाए गए हैं जिसके माध्यम से समय समय पर किशोरियों को माहवारी के समय साफ सफाई, पोषण, स्वास्थ्य आदि के विषय में बताया जाता है।

यूनिसेफ के WASH ऑफिसर कुमार बिक्रम ने बताया, “गरिमा विद्यालय पहल का उद्देश्य सभी स्कूलों में सुरक्षित माहवारी स्वास्थ्य प्रबंधन सुविधाएं और सेवाएं स्थापित करना है जहां किशोरियां अपनी माहवारी को प्रभावी ढंग से और गरिमा के साथ प्रबंधित कर सकें”।

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की संयुक्त निदेशक सांत्वना तिवारी ने कहा, “शुरुवाती चरणों में स्वच्छ गरिमा विद्यालय में लड़कियों एवं अध्यापकों को ट्रेंड कर हम लगभग 50,000 लोगों तक पहुँचने में सफल हुए हैं। लड़कियों ने खुल कर माहवारी के विषय में बातचीत करनी शुरू कर दी है। विद्यालय में उचित माहवारी प्रबंधन के साधन की उपलब्धता सुनिश्चित कर हमारा उद्देश लड़कियों में स्कूल ड्रॉप आउट को कम करना है”। अगले चरण में प्रदेश के 700 से अधिक माध्यमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों को गरिमा विद्यालय के रूप में विकसित किया जाएगा।

खुलकर दिए रिएक्शन

राजकीय बालिका विद्यालय बागपत के गरिमा क्लब की सदस्या क्लास 11 की निशा ने कहा “माहवारी संबंधी हमारे मन में बहुत से प्रश्न थे जिनके उत्तर कभी हमे अपने परिवार में नहीं मिले। उन सभी प्रश्नों पर हम अब खुल कर अपने क्लब में चर्चा करते हैं। यहाँ सीखी गई बातें हम घर जा कर अपने परिवार की अन्य महिलाओं को भी बताते हैं,”।

राजकीय बालिका विद्यालय की अध्यापिका छाया देवी ने कहा कि “बच्चियों को साफ सफाई का ध्यान रखते हुए सूती कपड़े का इस्तेमाल कर पैड बनाना भी सिखाया जाता है। बच्चियों को मटका विधि से पैड निस्तारण की ट्रेनिंग दी जाती है। समय समय पर डॉक्टर एवं विशेषज्ञों के साथ संवाद का आयोजन भी किया जाता है,” माहवारी केवल स्वास्थ्य से ही जुड़ा विषय नहीं है। इससे शिक्षा, स्वच्छता, पोषण, पर्यावरण आदि बहुत से विषय जुड़े हैं। अतः माहवारी पर सबको एक जुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है।

माहवारी स्वच्छता दिवस पर यूनिसेफ उत्तर प्रदेश के प्रमुख डॉ ज़कारी ऐडम ने कहा, “प्रत्येक लड़की को स्वस्थ रहने और माहवारी के दौरान स्वच्छ सुविधाओं का इस्तेमाल करने का अधिकार है। सरकारी विभागों, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरी और ग्रामीण विकास आदि को एकीकृत योजना बना कर किशोरियों एवं महिलाओं के लिए माहवारी स्वच्छता पर कार्य करने की आवयशकता है। किशोरियों की स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच, उनके उचित उपयोग और सही निस्तारण की व्यवस्था के लिए मिल कर योजनाएँ बनानी होंगी और माहवारी से जुड़ी भ्रांतियाँ मिटाने और चुप्पी तोड़ने के लिए लगातार जन जागरूकता अभियान चलाना होगा। इससे माहवारी स्वच्छता के लिए अनुकूल वातावरण बनेगा जहां हर लड़की को बिना तनाव, शर्म या बाधा के खुल कर जीने, आगे बढ़ने , खेलने व पढ़ने का अवसर मिलेगा”। उन्होंने कहा कि पुरुषों और लड़कों सहित समुदायों और स्थानीय प्रभावशाली लोगों को माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों को खत्म करने और चुप्पी को तोड़ने के लिए मिलकर काम करने पर जोर दिया।

यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने बताया कि माहवारी स्वच्छता पर जागरूकता के लिए यूनिसेफ़ द्वारा रेड डॉट चैलेंज किया जाता है जिसमें पुरुषों एवं लड़कों सहित सभी से अपनी हथेली पर लाल गोला बना कर सोशल मीडिया पर साझा करने का आह्वान किया जाता है। इसका उद्देश्य एक ऐसे समाज को विकसित करना है जहां महिलायें एवं लड़कियां अपनी माहवारी का प्रबंधन सुरक्षित एवं सम्मानजनक तरह से कर सकें। कोई भी एक संदेश के साथ अपनी हथेली पर रेड डॉट के साथ तस्वीर #PeriodFriendlyWorld के साथ साझा कर सकता है।

ताकि मासिक धर्म आगे बढ़ने में बाधा न बने

माहवारी स्वच्छता दिवस मासिकधर्म के कारण महिलाओं और लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इन चुनौतियों के समाधानों को उजागर करने के लिए एक वार्षिक वैश्विक कार्यक्रम है। यह प्रति वर्ष 28 मई को मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत 2014 में की गई थी। चुप्पी तोड़ना,जागरूकता बढ़ाना और माहवारी से जुड़ी नकारात्मक सामाजिक विचारधारा को बदलना इस दिन का मुख्य उद्देश्य है। इस दिन का लक्ष्य 2030 तक, एक ऐसी दुनिया बनाना है जहां मासिकधर्म के कारण कोई महिला या लड़की पीछे न रहे— एक ऐसी दुनिया, जिसमें हर महिला और लड़की को अपने मासिक धर्म को सुरक्षित, स्वच्छ तरीके से, आत्मविश्वास के साथ और बिना शर्म के प्रबंधित करने का अधिकार हो ।

माहवारी के दौरान पोषण ज़रूरी

NFHS 5(2019-2021) के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की हर दूसरी किशोरी एनीमिक है। माहवारी में रक्तस्त्राव होता है और अधिक रक्तस्त्राव से एनीमिया हो सकता है। अतः विशेषज्ञों का मानना है की माहवारी के दौरान पोषण पर ध्यान देना आवश्यक है। माहवारी के दौरान रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए भोजन में अलसी, तिल के लड्डू, सहजन, मछ्ली, पालक एवं हरी पत्तेदार सब्जी, तरबूज, खरबूज, खीरा आदि फल जैसी चीजों को शामिल करना चाहिए । साथ ही कम से कम 8 ग्लास पानी, गरम पानी , अदरख/ सौफ की चाय, मेवे आदि को भी आहार में शामिल करना उचित है। माहवारी के दौरान अधिक नमक युक्त भोजन करने से बचना चाहिए क्योकि इससे बदन दर्द एवं सूजन होने की संभावना बढ़ जाती है । साथ ही अधिक तेल युक्त पदार्थों से भी बचना चाहिए क्योकि इससे हॉर्मोन का संतुलन बिगड़ता है और स्त्राव अधिक हो सकता है।

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