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खाद्यान्न सुरक्षा कानून को और मजबूत किये जाने की जरूरत

हमारे खानपान का सीधा सम्‍बन्‍ध हमारे स्‍वास्‍थ्‍य से है, ऐसे में खाद्य पदार्थों की शुद्धता अत्‍यन्‍त अनिवार्य है। ये खाद्य पदार्थ शुद्धता के साथ ही सही मात्रा और निर्धारित मूल्‍य के अनुसार आमजन तक पहुंचें, यह सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण FSSAI है, लेकिन देखा जा रहा है कि प्राधिकरण को मजबूती के साथ अपना काम करने के लिए उसे और ज्‍यादा अधिकार दिये जाने की आवश्‍यकता है, इसके लिए मौजूदा खाद्य सुरक्षा कानून में बदलाव करने होंगे। इसी पहलू पर रौशनी डाल रहा है मुस्‍कान सक्‍सेना का यह लेख…

खाद्यान्न उद्योग भारत के प्रधान उद्योगों में एक है। भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने वह प्रगति में, कृषि क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। खाद्यान्नों के संदर्भ में बने कानून उन नियमों एवं शर्तों का समूह है जो खाद्य पदार्थों की पैदावार, रखरखाव, विक्रय एवं वितरण तथा उपयोग को नियंत्रित करते हैं। हमारे देश का संविधान जन स्वास्थ्य के देखभाल की मौलिक जिम्मेदारी भारत सरकार को सौंपता है। इस प्रकार देश के खाद्य विभाग को नियमित एवं नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कानूनों के निर्माण और उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है।

मुस्‍कान सक्‍सेना

भारत में खाद्य सुरक्षा मानकों को नई ऊंचाइयां देने में ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यों में कुछ प्रमुख कार्य हैं- खाद्य सुरक्षा लाइसेंस एवं प्रमाण पत्र जारी करना, खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं के लिए दिशा निर्देश और कार्यप्रणाली तय करना, नई नीतियों के निर्माण में सरकार की मदद करना, खाद्य पदार्थों में संभावित अशुद्धि से संबंधित आंकड़े एकत्रित करना, त्वरित अलर्ट सिस्टम का आह्वान करना आदि।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा निर्मित कानूनों ने सामान्य जन जागरूकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन खाद्य सुरक्षा मानकों का प्रभाव फूड प्रोसेसिंग इकाइयों, वितरण व्यवस्था, लॉजिस्टिक्स एवं उपभोक्ता हित आदि सभी पक्षों पर पड़ता है। यह मानक मानव स्वास्थ्य एवं जीवन सुरक्षा पर स्पष्ट प्रभाव डालते हैं। यह कानून खाद्य आधारित उद्योगों के राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर व्यापार के विविध मानकों को भी तय करते हैं। इन नियमों की आवश्यकता और प्रमाणिकता तब और बढ़ जाती है जब राष्ट्रीय मांग को कायम करने के लिए दूसरे देशों से खाद्य पदार्थों को आयात करने की बात आती है।

खाद्य सुरक्षा कानून उपभोक्ता तक खाद्य पदार्थों  की पहुंच को उसी रूप में सुनिश्चित करता है जैसा कि उसके  निर्माताओं ने विज्ञापन में दावा किया है क्योंकि यह कानून खाद्य पदार्थों के भार एवं पोषक तत्वों की जानकारी से संबंधित गलत सूचनाओं को प्रतिबंधित करता है, गलत लेबलिंग एवं मिलावट आदि को दंडनीय अपराध मानता है।

खाद्य सुरक्षा के लिए प्रयासरत संस्थाएं खाद्य सुरक्षा मानकों एवं कानूनों में एकरूपता लाने के लिए भी प्रयासरत हैं ताकि उपभोक्ता को सही और बेहतर निर्णय लेने में मदद हो सके तथा उपभोक्ता को बेहतर सुरक्षित जीवन के साथ साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी संतुष्टि मिले।

एक कटु सत्य यहां यह भी है कि देश के अन्य कानूनों और नियमावली की भांति ही खाद्य सुरक्षा कानून व नियमावली भी अपने आप में पूर्ण नहीं है और ना ही प्रश्नचिन्ह से रहित है। यह कानून खाद्य जनित खतरों के शत-प्रतिशत निराकरण की गारंटी नहीं देते। हां,  हमारे पास एक सुपरिभाषित कानूनी ढांचा जरूर है जो खाद्य सुरक्षा मानकों को प्रभावी रूप से लागू करवाने के अनवरत प्रयास कर रहा है। यह कानून अपने क्षेत्र अधिकार को हर उस व्यक्ति तक पहुंचाना चाहता है जो खाद्य कारोबार संचालक (FBO) की छत्रछाया में चल रहा है या आगे बढ़ना चाहता है।

खाद्य व्यापार संचालक कोई भी हो सकते हैं, सड़क के किनारे रेहड़ी लगाने वालों से लेकर बड़े खाद्य विक्रेताओं तक तथा मध्य में शामिल होने वाले बिचौलियों एवं अन्य जटिल प्रक्रियाओं तक सब इस संचालन प्रक्रिया का भाग होते हैं। व्यापकता, विविधता और जटिलता से युक्त होने के कारण इस पूरी संचालन प्रक्रिया पर नियंत्रण व निगरानी रखना एक चुनौती है। एक रिसर्च के अनुसार हर दस लाख लोगों पर गुणवत्ता परीक्षणशालाओं की संख्या हमारे देश में अन्य देशों जैसे चीन और अमेरिका की तुलना में काफी कम है। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की कमी के कारण एक समान मांगों को लागू करना व इस संदर्भ में आधारभूत संरचना एवं व्यवस्था को उन्नत करना आज समय की बहुत बड़ी चुनौती है।

खाद्यान्न सुरक्षा कानून के हस्तक्षेप का एक दिलचस्प केस है सन् 2015 का मैगी नूडल्स संकट जो नेस्ले इंडिया कंपनी के लिए एक बड़ी बाधा बन कर उभरा जिसके चलते लोकप्रिय 2 मिनट नूडल्स को प्रयोगशाला परीक्षणों के उपरांत मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक व असुरक्षित पाया गया, बाद में सन 2015 के उत्तरार्ध में मुंबई हाई कोर्ट ने FSSAI द्वारा नेस्ले मैगी नूडल्स पर लगाए गए प्रतिबंध को अमान्य करार देते हुए नेस्ले कंपनी को मैगी के हर प्रकार के ताजा नमूने लैब परीक्षण के लिए उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इस बार परीक्षण परिणाम नेस्ले ग्रुप के पक्ष में आए और कंपनी ने पुनः मैगी नूडल्स की बिक्री आरंभ कर दी। यद्यपि इस आदेश को FSSAI ने चुनौती दी क्योंकि वह इस परीक्षण को किसी अन्य निष्पक्ष एजेंसी द्वारा कराए जाने के पश्चात ही प्रतिबंध हटाने के पक्ष में थी। हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले के अनुसार 14 दिन के अंदर लिए गए नमूनों के विश्लेषण व रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी नामित अधिकारी की होगी जो खाद्य सुरक्षा कानून के तहत स्वीकार्य होगी।

वैश्विक खाद्य व्यापार में अन्य शीर्ष देशों की श्रेणी में स्वयं को लाने के लिए भारत को अपने खाद् उत्पादों का श्रेष्ठतम उपयोग करना होगा, साथ ही उसे निर्धारित मानकों की गुणवत्ता भी प्रदान करनी होगी। उद्योगों, नीति निर्माण एजेंसियों एवं उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को तुष्टि प्रदान करने के लिए केंद्र ,राज्य व स्थानीय सरकारों को सहयोग और समन्वय के साथ प्रयास करना होगा तथा उपभोक्ता वर्ग में जागरूकता भी उत्पन्न करनी होगी। बदलती परिस्थितियों में समय की आवश्यकता को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार कानूनों में बदलाव लाने का प्रयास करना होगा तभी हमारे देश में खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त करना आसान होगा व खाद्यान्न उद्योगअंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश की छवि को गौरव दिला पाएगा।

(लेखिका मुस्‍कान सक्‍सेना दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में विधि की दूसरे वर्ष की छात्रा हैं)

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